सोमवार, 15 जून 2020

गुलाबो-सिताबो खूब लड़े हैं, आपस मा

किसी समय घुमंतू जातियों के लोगों के उपार्जन के विभिन्न जरियों में कठपुतली का तमाशा भी एक करतब हुआ करता था। इसमें ज्यादातर दो महिला किरदारों के आपसी पारिवारिक झगड़ों के काल्पनिक रोचक किस्से बना अवाम का मनोरंजन किया जाता था। किरदारों को कभी सास-बहू, कभी ननद-भौजाई, कभी देवरानी-जेठानी या फिर कभी सौतों का रूप दे दिया जाता था। उन किरदारों को ज्यादातर गुलाबो-सिताबो के नाम से बुलाया जाता था..........!


#हिन्दी_ब्लागिंग  

अभी पिछले दिनों अमिताभ-आयुष्मान की एक फिल्म प्रदर्शित हुई है, नाम है गुलाबो-सिताबो। फिल्म चाहे जैसी भी बनी हो पर उसने दो महत्वपूर्ण कार्यों को तो अंजाम दिया ही है। इस फिल्म ने OTT (Over The Top) पर प्रदर्शित होने वाली पहली हिंदी फिल्म के रूप में अपना नाम तो दर्ज करवाया ही साथ ही साथ गुमशुदगी के अंधेरे में विलोपित होती उस कठपुतली कला का नाम भी आमजन को याद दिलवा दिया, जिसे कम्प्यूटर गेम्स जैसे साधनों के आने के बाद लोग तकरीबन भूल ही गए थे। गुलाबो-सिताबो इसी कला की दो महिला दस्ताना कठपुतलियों (Glove Puppets) के नाम हैं, जिन्होंने एक समय उत्तर प्रदेश में धूम मचा रखी थी और वहां की कला व संस्कृति में पूरी तरह रच-बस गयी थीं।   

गुलाबो-सिताबो, किसी समय घुमंतू जातियों के लोगों के उपार्जन के विभिन्न जरियों में कठपुतली का तमाशा भी एक करतब हुआ करता था। इसमें ज्यादातर दो महिला किरदारों के आपसी पारिवारिक झगड़ों के काल्पनिक रोचक किस्से बना अवाम का मनोरंजन किया जाता था। किरदारों को कभी सास-बहू, कभी ननद-भौजाई, कभी देवरानी-जेठानी या फिर कभी सौतों का रूप दे दिया जाता था। उन किरदारों को ज्यादातर गुलाबो-सिताबो के नाम से बुलाया जाता था। इनके किस्से प्रदेश में एक लम्बे अरसे तक छाए रहे थे। 

निरंजन लाल श्रीवास्तव और उनकी कठपुतलियां 

नवाब वाजिद अली शाह के समय ये कठपुतलियां कला का पर्याय बन गईं थीं। गुलाबो-सिताबो का सफर भले ही आजादी से पहले शुरू हुआ था, लेकिन इन्हें पुख्ता पहचान 1950 के दशक में जा कर मिल पाई, जब प्रतापगढ़ निवासी राम निरंजनलाल श्रीवास्तव, बी.आर. प्रजापति और जुबोध लाल श्रीवास्तव सरीखे कलाकारों ने कठपुतली कला का भलीभांति प्रशिक्षण ले उसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचा, उसका देश के विभिन्न नगरों में प्रदर्शन कर उसे व्यापक ख्याति दिलवाई। हालांकि इनकी कठपुतलियों के पहरावे, रंग-रोगन में काफी बदलाव आया था पर उन किरदारों का नाम स्थाई रूप से गुलाबो-सिताबो कर दिया गया। कारण भी था, इन नामों की प्रसिद्धि और लोकप्रियता लगातार बढ़ती ही जा रही थी। लोग उन्हीं नामों को देखना-सुनना पसंद करने लगे थे। इनकी प्रसिद्धि इतनी बढ़ गई थी कि गुलाबो-सिताबो के जरिए सरकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार होने लगा था। यहां तक कि अग्रिम मोर्चों पर तैनात जवानों के मनोरंजन के लिए भी इनको भेजा जाने लगा था।


शूजित सरकार द्वारा निर्देशित इस फिल्म का नाम गुलाबो-सिताबो प्रतीतात्मक है, क्योंकि इसमें झगड़ने वाले पात्र महिला न हो कर पुरुष हैं और उनकी भाषा भी व्यंग्यात्मक होने के बावजूद बहुत संयमित और सधी हुई है। पर क्या यह मात्र एक संयोग है या कुछ और कि उत्तर प्रदेश के जिस प्रतापगढ़ जिले के एक कायस्थ परिवार ने गुलाबो-सिताबो को देश-विदेश में व्यापक पहचान और प्रसिद्धि दिलवाई; उन्हीं किरदारों के नाम से जब एक फिल्म बनी तो उसमें मुख्य किरदार निभाने वाले कायस्थ कलाकार के पूर्वजों का संबंध भी उसी जिले से है ! चलो चाहे जो हो मतलब तो गुलाबो-सिताबो की नोक-झोंक और उनकी तनातनी से है, -

''जहां साग लायी पात लायी और लायी चौरैया, दूनौ जने लड़ै लागीं, पात लै गा कौआ'' 

13 टिप्‍पणियां:

Nitish Tiwary ने कहा…

फिल्म का विषय अच्छा था पर बहुत स्लो फ़िल्म है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

अच्छी समीक्षा।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नीतीश जी
जी हाँ ¡शायद हॉल में सफल भी ना हो पाती, फिर भी एक बार तो देखी जा सकती है, मिर्जा के लिए

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी
बहुत-बहुत धन्यवाद

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

फिल्म तो देखी नहीं है लेकिन यह लेख रोचक लगा। गुलाबो सिताबो का अर्थ मुझे मालूम नहीं था। जानकारी का शुक्रिया।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

विकास जी
''कुछ अलग सा'' पर आपका सदा स्वागत है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मीना जी
रचना को सम्मान देने हेतु अनेकानेक थन्यवाद

Rakesh ने कहा…

सटीक जानकारी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

hindiguru
हार्दिक आभार, आपका

मन की वीणा ने कहा…

बहुत उत्कृष्ट शोधमय जानकारी युक्त सार्थक पोस्ट
अच्छी जानकारी दी आपने और कठपुतलियों पर रोचक सामग्री जुटाई।
बहुत बहुत बधाई।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुसुम जी
प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार

कदम शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आभार,
कदम जी

विशिष्ट पोस्ट

"मोबिकेट" यानी मोबाइल शिष्टाचार

आज मोबाइल शिष्टाचार पर बात करना  करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो ! अधिकाँश लोग इन सब ...