बातचीत के दौरान ही उन्होंने अचानक पूछ लिया, ''भैया, क्या आपको इस बारे में कोई जानकारी है कि गणेश जी के जिस सिर को काट कर शिशु हाथी का सिर लगाया गया था; फिर उस असली सिर का क्या हुआ ?''
प्रश्न अप्रत्याशित था ! ना हीं कभी इस बारे में कभी मेरे कुछ पढ़ने या सुनने में आया था ! मैंने कहा, ''हो सकता है कि उसका अग्निदाह कर दिया गया हो ! वैसे मुझे इस बारे में कोई भी जानकारी नहीं है !''
#हिन्दी_ब्लागिंग
लॉकडाउन के इस कालखंड में दूरभाष ही एकमात्र मेल-जोल का साधन बचा रह गया है। इसी माध्यम पर कुछेक दिन पहले मित्र ठाकुर जी ने सम्पर्क किया। बातचीत के दौरान ही उन्होंने अचानक पूछ लिया, ''भैया, क्या आपको इस बारे में कोई जानकारी है कि गणेश जी के जिस सिर को काट कर हाथी का सिर लगाया गया था; फिर उस असली सिर का क्या हुआ ?''
प्रश्न अप्रत्याशित था ! ना हीं कभी इस बारे में मेरे कभी कुछ पढ़ने या सुनने में आया था ! मैंने कहा, ''हो सकता है कि उसका अग्निदाह कर दिया गया हो ! वैसे मुझे इस बारे में कोई भी जानकारी नहीं है !''
मेरे इंकार करने पर ठाकुर जी ने बताया कि पता चला है कि उत्तराखंड में पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट से 14 किलोमीटर दूर भुवनेश्वर नामक गांव में एक गुफा है, जिसे पाताल भुवनेश्वर के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस गुफा में गणेश जी का असली सिर भगवान शिव द्वारा स्थापित किया गया था ! आप इस बारे में विस्तृत जानकारी का कुछ पता कीजिए।
हमारे ग्रंथों में पौराणिक काल की असंख्य कथाएं, उपकथाएं ऐसे हमारे मानस में रच-बस गयी हैं कि हम सब धर्मभीरुता के तहत सब पर आँख मूँद कर विश्वास कर लेते हैं। यह बात तकरीबन हर धर्म में लागू होती है। इन सब का चतुरों द्वारा फ़ायदा भी उठाया जाता रहा है। खैर ! वह एक अलग विषय है। ठाकुर जी से इस नई बात का पता चलते ही लॉकडाउन में कुछ सुस्त पड़ा ब्लॉगर जागा और चल दिया गुगलिया सागर को खंगालने ! जिससे कुछ ऐसा संज्ञान मिला -
कथा कुछ इस प्रकार है कि जब शिव जी द्वारा उद्दंड बालक का सिरच्छेद कर उस पर शिशु हाथी का मस्तक आरोपित कर दिया गया तब यह सवाल उठा कि उस कटे हुए सिर का क्या किया जाए ! वहां सभी उपस्थित लोगों का मत था कि उसका ससम्मान अग्निदाह कर दिया जाना चाहिए। परन्तु माँ गौरी ममतावश इस राय से सहमत नहीं थीं ! बालक का शरीर तो पुनर्जीवित हो चुका था ! समस्त देवी-देवताओं की सहमति से उसे गणपति बना, प्रथम पूजित होने का सम्मान भी प्रदान कर दिया गया था ! पर माँ का ह्रदय किसी प्रकार की तसल्ली से भी शांत नहीं हो पा रहा था। तब भोलेनाथ ने उनकी ममता को सर्वोपरि मान, शरीर की भाँति मस्तक को भी आदरांजलि देते हुए, उसमें जीवनी शक्ति प्रतिरोपित कर उसे एक गुफा में स्थापित कर उसे आदि गणेश नाम दिया और अंबे को आश्वासन दिया कि उसकी देख-भाल-रक्षा वे सदा खुद तो करेंगे ही, बाकी देवी-देवता भी पूजा-अर्चन के लिए वहां आते रहेंगे। ऐसा विवरण स्कंदपुराण में मिलता है। इस गुफा को पाताल भुवनेश्वर के नाम से जाना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि सबसे पहले इस गुफा का पता त्रेता युग में सूर्य वंश के अयोध्यापति राजा ऋतुपर्ण के द्वारा लगाया गया था। कलयुग में जगत गुरु आदिशंकराचार्य ने 722 ई. के आसपास इस गुफा की खोज की और यहां तांबे के शिवलिंग की विधिवत स्थापना की। वैसे यह कोई एक गुफा नहीं है ! गुफा के अंदर गुफा और उसके अंदर फिर गुफा; जैसे गुफाओं का जाल बिछा हो। कोई भी दर्शनार्थी बहुत अंदर तक नहीं जा सकता। फिसलन होने से गिरने का डर, उमस और आक्सीजन की कमी कुछ भी अघटित घटा सकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह जगह अभी भी निर्माण के दौर में है।
पाताल भुवनेश्वर चूना पत्थर से बनी प्राकृतिक गुफा है। जिसमें चूने और पानी के मिलन से विविधरूपा आकृतियां बन गई हैं। धार्मिक तथा ऐतिहासिक दृष्टि से भी कई महत्वपूर्ण प्राकृतिक कलाकृतियों के दर्शन होते हैं। यह गुफा भूमि से 90 फ़ीट की गहराई में लगभग 160 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैली हुई है। इसकी दीवारों से पानी रिसने के कारण रास्ता काफी रपटीला है, इसलिए अंदर जाने के लिए लोहे की जंजीरों का सहारा लेना पड़ता है। इस गुफा की सबसे खास बात तो यह है कि यहां एक ऐसा शिवलिंग है जो लगातार बढ़ रहा है। वर्तमान में शिवलिंग की ऊंचाई 1.5 फिट की है और ऐसी मान्यता है कि जब यह शिवलिंग गुफा की छत को छू लेगा, तब दुनिया खत्म हो जाएगी। गुफा के अंदर कई कलाकृतियों के साथ ही एक हवनकुंड भी बना हुआ है; जिसके बारे में कहा जाता है कि इसी हवनकुंड में राजा जनमेजय ने सर्पों का नाश करने के लिए नाग यज्ञ किया था। पुराणों के मुताबिक पाताल भुवनेश्वर दुनिया भर में एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां एकसाथ चारों धाम के दर्शन का पुण्य प्राप्त हो जाता है। यह पवित्र व रहस्यमयी गुफा अपने आप में सदियों का इतिहास समेटे हुए है।
@अंतर्जाल का हार्दिक आभार
4 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर।
अच्छी जानकारी।
पर्यावरण दिवस की बधाई हो।
शास्त्री जी
हार्दिक आभार
सुन्दर जानकारी।
सुशील जी
आभार ! यूं ही स्नेह बना रहे
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