हमारे देश में सबसे तीखी मिर्च असम की भूत जोलोकिया मानी जाती है, जिसे घोस्ट पेप्पर, यू मोरक या लाल नागा भी कहा जाता है ! शायद इसके तीखेपन के कारण ही इसका नाम भूतिया पड़ गया हो ! आम मिर्चों से जिनका ''एसएचयू'' तकरीबन 5000 के आस-पास होता है, इसका तीखापन है, करीब चार सौ गुना ज्यादा होता है। जबकि इस जाति की सबसे शरीफ मिर्च है हमारी शिमले वाली, जिसके नाम में ही सिर्फ मिर्च है, उसका आंकड़ा शून्य ही होता है, है ना गजब..........!
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मिर्च, हमारे ग्रंथों में वर्णित षटरसों में से एक का प्रमुख स्रोत, हमारी रसोई और खान - पान में मौजूद रहने वाले पहले पांच अहम कारकों में से एक ! जिसके बिना भोजन में जायके की शायद कल्पना भी नहीं की जा सकती ! जिसकी दसियों तरह की किस्मों का देश के विभिन्न हिस्सों में उत्पाद किया जाता है। वैसे इस बेरी की झाडी जैसे पौधे का मूल स्थान तो दक्षिण अमेरिका है पर आज यह सारे संसार में जायके का पर्याय बन लोगों की रसना पर राज करता हुआ पाया जाने लगा है। हमारे यहां भी इसकी दसियों तरह की किस्मों की खेती देश के विभिन्न हिस्सों में की जाती है। जिनमें से कइयों को अपने स्वाद और तीखेपन के कारण गिनीज बुक में स्थान पाने का गौरव भी प्राप्त हो चुका है। विटामिन ''ए'' से भरपूर इसके फलों की कुछ किस्में, जैसे शिमला मिर्च जो अपने जो एकाधिक रंगों में उपलब्ध होती है, को सब्जी के रूप में; लाल, काली और सफ़ेद मिर्च को मसालों या दवा की तरह तथा हरी मिर्च को चटनी, अचार, सलाद या अन्य सब्जियों के साथ मिला पका कर खाया जाता है। मिर्च के तीखेपन का कारण इसमें मौजूद कैप्सेसिन और इसकी लालिमा इसमें पाए जाने वाले एक पदार्थ केप्सेन्थिन के कारण होती है।
हमारे देश में सबसे तीखी मिर्च आसाम की भूत जोलोकिया मानी जाती है, जिसे घोस्ट पेप्पर, यू मोरक या लाल नागा भी कहा जाता है ! शायद इसके तीखेपन के कारण ही इसका नाम भूतिया पड़ गया हो ! आम मिर्चों से इसका तीखापन करीब चार सौ गुना ज्यादा होता है। इसीलिए इसका उपयोग खाने की बजाय दवा बनाने में, सूखी मछलियों सुरक्षित रखने में, फ्यूम बम बनाने में अधिक किया जाता है। असम और उत्तर-पूर्वीय राज्यों के स्थानीय लोग हाथियों के उत्पात से बचने के लिए अपने घर की दीवारों पर इसका लेप चढ़ा देते हैं। 2007 में दुनिया की सबसे तीखी मिर्ची के रूप में इसका नाम गिनीज बुक में शामिल किया गया था ! वैसे हर साल यह सम्मान किसी ना किसी अन्य प्रजाति के नाम होता रहता है।
दुनिया की सबसे तीखी मिर्च की बात करें तो यूनाइटेड किंगडम में पाई जाने वाली ड्रेगन्स ब्रेथ नाम की मिर्च का तीखापन इतना प्रलयंकारी माना जाता है कि उसके खाने से पहले चेतावनी ज्ञापित की जाती है कि इस मिर्च का सेवन जानलेवा हो सकता है। इसीलिए इसका प्रयोग दवा बनाने के लिए ही किया जाता है। इनके अलावा दुनिया की अन्य तीखेपन में सिरमौर मिर्चियों में कैरोलिना रीपर, जो आजकल गिनीज रेकॉर्ड में सबसे तीखी होने का गौरव हासिल किए बैठी है. के साथ-साथ नागा वाइपर, सेवन पॉट डुगलाह और ट्रिनीडेड स्कॉर्पियन जैसे नाम प्रमुख हैं।
अब सवाल यह उठता है कि इस तीखे, चरपरे और कड़वेपन की पहचान कैसे की जाती है ! तो इस विधि की खोज सबसे पहले 22 जनवरी 1865 को जन्मे अमेरिकी फार्मासिस्ट विल्बर स्कोविल ने 1912 में विकसित कर दुनिया को तीखेपन की विभिन्न श्रेणियों से अवगत कराया। इस विधि से मिर्च में स्थित स्पाइसनेस को मापा जाता है और इस स्पाइसनेस या तीखेपन का स्कोविल हीट यूनिट यानी एसएचयू से पता कर उन्हें श्रेणीबद्ध किया जाता है। आज किसी चीज के तीखेपन को मापने के लिए यही तरीका इस्तेमाल किया जाता है। इससे पहले तक मिर्च के तीखेपन का पता लगाने का कोई तरीका मौजूद नहीं था। एसएचयू जितना ज्यादा होगा उस चीज का तीखापन भी उतना ज्यादा होगा। वैसे आम मिर्च का एसएचयू तकरीबन 5000 के आस-पास होता है। जबकि आज की सिरमौर मिर्च कैरोलिना रीपर का एसएचयू करीब 1569300 पाया गया है ! वहीं इस जाति की सबसे शरीफ मिर्च हमारी शिमले वाली है जिसका आंकड़ा शून्य ही होता है।
किसी मिर्च का एसएचयू जानने के लिए उसका Capsaicinoid अलग कर उसे तब तक डायल्यूट करते हैं जब तक टेस्ट में भाग लेने वाले पांच लोगों को चरपरापन लगना बंद ना हो जाए। उदहारण स्वरुप एक कप Capsaicinoid को विरल करने में जितने कप पानी लगेगा वही उस मिर्च का एसएचयू होगा। पर कुछ लोगों को यह विधि पूरी सटीक नहीं लगती ! क्योंकि परीक्षण करने वाले हर इंसान की जीभ की क्षमता अलग-अलग होती है, इसलिए एक जैसा परिणाम तो नहीं पाया जा सकता।फिर हर मिर्च का द्रव्यांक अलग-अलग होता है जो उसकी विरलता को प्रभावित कर सकता है। पर जो भी हो आज संसार यह जानने में सक्षम तो है कि किसी चीज का तीखापन क्या होता है।
जो भी हो पता नहीं मुझे कुदरत की यह अनोखी दें कभी भी रास नहीं आई ! कोई भी मिर्च हो, मुझे ना के बराबर पसंद है फिर वह चाहे दुनिया की सबसे कम तीखी शिमला मिर्च ही क्यूँ ना हो ! काली मिर्च कभी-कभार जरूर काम में ले लेता हूँ, वह भी औषधि के रूप में। इधर घर में कमोबेस सभी हरी मिर्च का उपयोग करते हैं। कभी-कभी मुझसे भी कहा जाता है कि खा कर देखो यह वाली बिल्कुल घास की तरह की है, और वाकई वह होती भी वैसी ही है ! तब लगता है कि कैसे और कितनी विविधता से भरपूर है यह मिर्ची रानी। गुगलिया सागर खंगाला तो कई बातें साझा करने को सामने आईं। आशा है रोचक लगेंगी।
@अंतर्जाल का हार्दिक शुक्रिया
14 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 12 जून जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बढ़िया ज्ञानवर्धक लेख सर।
विभिन्न प्रकार के मिर्चों का स्वभाव मनुष्य की तरह होता है शायद।
सादर।
यशोदा जी
सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
श्वेता जी
कड़वाहट इंसान की बदनाम बेचारी मिर्च :)
Adbhut aur rochak jankari, dhanywad
बहुत सुन्दर और सार्थक आलेख।
अच्छी जानकारियाँ।
कदम जी
"कुछ अलग सा पर सदा स्वागत है आपका
शास्त्री जी
हार्दिक आभार
गूगल से साभार रोचक और ज्ञानवर्द्धक लेख, जिसमें ... लौंगिया मिर्ची, जो अपने तीखेपन के लिए बदनाम है और राजस्थानी (जोधपुरी) मिर्च , जिसके पकौड़े बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं और इसका झाल शिमला मिर्च की तरह ही होता है; .. के सौतेला बर्ताव करने के लिए , वे दोनों आपको खोज रहीं हैं ... मैंने आपका पता बतला दिया है ..
बढ़िया जानकारी।
सुशील जी
अनेकानेक धन्यवाद
सुबोध जी
उद्देश्य तो सिर्फ़ तीखेपन के पैमाने का विवरण था|पर मोटी-मोटी जानकारियों की वजह से आकार बढता जा रहा था ¡ तो सभी को समेटना मुश्किल था। वैसे इस नेमत का सेवन मैं खुद बहुत कम करता हूं, पर आपने उन्हें जिस कारणवश भी भेजा है तो उनका स्वागत जरूर होगा, आपका मान तो रखना ही पडेगा
बढ़िया जानकारी।
बहुत-बहुत आभार, ओंकार जी
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