गुरुवार, 18 जून 2020

कुनबा-परस्ती, स्वजन पक्षपात, भाई-भतीजावाद के गह्वर में सुशांत सिंह

रही बात नेपोटिस्म की ! तो यह बुराई है तो जरूर, पर किसी के संरक्षण से कोई बुलंदियां नहीं छू पाता ! फिल्म हो, खेल हो, व्यवसाय हो या राजनीति ! इनमें किसी की सहायता से ''इंट्री'' भले ही मिल जाए, टिकाव और सफलता तो अपनी लियाकत से ही मिल पाती है। यदि ऐसा ना होता तो एकता कपूर के भाई तुषार के पास आज काम की वजह से दम लेने तक की फुरसत न होती। अभिषेक बच्चन से ज्यादा पॉवर-फुल और कौन होता ! दो साल से इंडस्ट्री पर राज करने वाला शाहरुख, जिसके बारे में यही जौहर कहा करता था कि उसके बिना वह फिल्म ही नहीं बनाएगा, आज घर बैठा हुआ है। गोविंदा, जिसके पीछे लोग चिरौरियां करते घूमते थे, उसे आज कोई पूछ नहीं रहा ! बहुत से ऐसे कलाकार हुए हैं जिनके पास बहुत दिनों तक काम नहीं होता ! ऐसे लोगों पर लिखने बैठें तो ग्रंथ बन जाए ! पर इन लोगों ने आत्महत्या तो नहीं कर ली ....................!      
 
#हिन्दी_ब्लागिंग
टी.वी. से फिल्मों में आए सुशांत सिंह ने किन्हीं अज्ञात कारणों से ख़ुदकुशी कर ली। एक हसमुख उभरते कलाकार का ऐसा अंत सभी को हिला कर रख गया ! पर साथ ही यह मार्मिक व दुखद घटना हमारे फिल्म जगत की चकाचौंध के पीछे छिपी उसकी व्यवस्था, उसकी मानसिकता, उसकी संवेदनशीलता पर भी कई प्रश्न चिन्ह लगा गई ! उनकी मृत्यु के दिन से ही लोगों की प्रतिक्रियाओं की बाढ़ सी आई हुई है। हर कोई विशेषज्ञ बना अपनी राय, अपने विचार थोपे जा रहा है ! जिनमें संवेदनाएं कम अपनी पसंद-नापसंद के लोगों पर कुंठायुक्त पूर्वाग्रही आक्षेप ज्यादा सामने आने लगे हैं। कुछ अपने नाम को सुर्ख़ियों में रखने के लिए इस पर शोध की बातें करने लगे हैं !
 
यह बात बिल्कुल सही है कि मुंबईया फ़िल्मी जगत में स्वजन-पक्षपात बहुत ज्यादा है ! वहां अपनी-अपनी पसंद है !अपने-अपने गिरोह हैं ! अपने-अपने खेमे हैं ! जिसके खोल में हर कोई सुरक्षित रहना चाहता है। फिल्म निर्माण इतना खर्चीला हो गया है कि अधिकांश फिल्मों की लागत भी नहीं निकल पाती। एक फिल्म का पिटना कई घरों का दिवाला निकाल देता है ! इसीलिए सभी निरापद और सक्षम घोड़े पर दांव लगाना पसंद करते हैं। पर इसके साथ-साथ यह भी सच है कि यहां रिश्ते तभी तक निभाए जाते हैं जब तक अपना फ़ायदा हो रहा हो। दुनिया में इतना निष्ठुर, मतलबी, बेमुरौवत, बेवफा, तोताचश्म व्यवसाय शायद ही कोई और हो ! यहां सदा से ही चढ़ते सूरज को सलाम ठोका जाता रहा है। पर यह तो सदा से ही रहा है। कोई नई बात नहीं है।

कहा जा रहा है कि सुशांत की करण जौहर गाहे-बगाहे बेइज्जती करता, करवाता रहता था ! उसके एक कॉफी वाले शो में भी उसका काफी मजाक वगैरह बनाया गया था ! जौहर और उसके दोस्त उसे काम देने में भी काफी टाल-मटोल किया करते थे ! तो ऐसा क्या था जो इस ''गैंग'' को ना छोड़ पाने को उसे मजबूर कर रखा था ! इतने सबके बावजूद फिर क्यों उसकी ही स्तर हीन फिल्म ''ड्राइव'' में काम करने का लोभ संवरण नहीं हो पाया ! ऐसे कई सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं !  
   
इधर आज फिर कुछ लोग भाई-भतीजा वाद को लेकर कुछ लोगों को निशाना बना रहे हैं। आज फिर कुछेक को मौका मिल गया है अपनी नापसंदगी पर आक्रोषित होने का ! जिन पर आरोप लग रहे हैं वे कोई बहुत महान फिल्मकार नहीं हैं ! ना हीं उन्होंने इस विधा का कुछ भला किया है । वे कला के बल पर नहीं सिर्फ अपने रिश्तों और भाग्य के कारण मशहूर हो पाए हैं। जो पांच-छह नाम लिए जा रहे हैं, उनमें कोई एक भी अपनी ऐसी उपलब्धि दिखा दे जिसे गौरव के साथ फिल्मों के इतिहास में जगह मिल सकती हो। जिसे लोग वर्षों बाद भी याद रख सकें। फिर ऐसा भी नहीं है कि मुंबई में सिर्फ यह लोग फिल्म बनाते हों ! ये लोग सत्यजीत रे, हृषिकेश मुखर्जी या राजकपूर के पासंग भी नहीं हैं कि इनकी फिल्म में काम कर के गौरवान्वित महसूस किया जाए या इनके साथ काम कर के कोई विशेष सम्मान या पहचान बन जाती हो ! तो फिर यदि ऐसे लोग किसी का बहिष्कार करते हैं तो करें, क्यूँ मरे जाना उनके ही साथ काम करने को ! लियाकत है, खुद पर विश्वास है तो काम देर-सबेर खुद चल कर आता है और सफलता मिलते ही ऐसे लोग आगे-पीछे घूमते हुए दुम हिलाने लगते हैं। दर्जनों ऐसे उदाहरण हैं ! 

रही बात नेपोटिस्म की ! तो यह बुराई है तो जरूर, पर किसी के संरक्षण से कोई बुलंदियां नहीं छू पाता ! फिल्म हो, खेल हो, व्यवसाय हो या राजनीति ! इनमें किसी की सहायता से ''इंट्री'' भले ही मिल जाए, टिकाव और सफलता तो अपनी लियाकत से ही मिल पाती है। यदि ऐसा ना होता तो एकता कपूर के भाई तुषार के पास आज काम की वजह से दम लेने तक की फुरसत न होती। अभिषेक बच्चन से ज्यादा पॉवर-फुल और कौन होता ! दो साल से इंडस्ट्री पर राज करने वाला शाहरुख, जिसके बारे में यही जौहर कहा करता था कि उसके बिना वह फिल्म ही नहीं बनाएगा, आज घर बैठा हुआ है। गोविंदा, जिसके पीछे लोग चिरौरियां करते घूमते थे, उसे आज कोई पूछ नहीं रहा ! बहुत से ऐसे कलाकार हुए हैं जिनके पास बहुत दिनों तक काम नहीं होता ! ऐसे लोगों पर लिखने बैठें तो ग्रंथ बन जाए ! पर इन लोगों ने आत्महत्या तो नहीं कर ली !!

सुशांत ! काश तुमने कर्मठ लोगों के जीवन से सबक लिया होता ! तुम्हारे सामने तो सबसे बड़ा उदाहरण अमिताभ बच्चन का था ! क्या-क्या नहीं सहा, देखा, उन्होंने यहां ! काम मिलना बंद हो गया था ! कर्ज के मारे दिवालिया होने तक की नौबत आ गई थी ! पर अगले ने हर समस्या का सामना किया और आज इस उम्र में उनको केंद्र में रख फ़िल्में रची जा रही हैं। उसी एकता कपूर, जिसने तुम्हें अपने सीरियल में काम दिया और तुम उसके इस एहसान के बदले पता नहीं क्या-क्या सहते रहे, उसी के पिता को जब यहां सबने नकार दिया था तो उसने हार ना मानते हुए मद्रास का रुख किया और बाद की बात सभी जानते हैं ! काश तुम देखते कि तकरीबन हर बड़े कलाकार ने कैसी-कैसी मुसीबतों का सामना करने के पश्चात अपना मुकाम हासिल किया ! ऐसे एक नहीं दर्जनों नाम हैं, जिन्हें इस निष्ठुर नगरी ने दुत्कारा पर जब उनने अपनी जीजीविषा की बदौलत सफलता पाई तो यही उनके चरणों में लोटने को मजबूर हो गई। काश ! तुम देखते कि आज अपनी चमक बिखेरने वाले सितारों को कभी किसी ''गॉड फादर'' की जरूरत महसूस नहीं हुई। उन्होंने जो हासिल किया अपने बलबूते पर किया। काश ! तुमने अपने पर, अपनी लियाकत पर और विश्वास किया होता ! कुछ और धैर्य रखा होता ! लोगों के जीवन से सबक लिया होता ! भावनाओं से निकल यथार्थ को स्वीकार किया होता !

8 टिप्‍पणियां:

ANIL DABRAL ने कहा…

बहुत सुन्दर लेख... कुनबा परस्ती को जनता जरूर आईना दिखाएगी .......

Rakesh ने कहा…

आवेग क्षणिक होता है सर उस में लिए निर्णय सैदेव भारी पड़ते है
अच्छा लेख

Jyoti Dehliwal ने कहा…

विचारणीय आलेख।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनिल जी
यह बिमारी तो हर जगह है, चाहे खेल हो. फिल्म या राजनीति ! यह ख़त्म होनी मुश्किल है ! इस पर सिर्फ लियाकत से ही पार पाया जा सकता है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

hindiguru
ऐसे में दृढ इच्छाशक्ति और मानसिकता की जरुरत होती है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ज्योति जी
अनेकानेक धन्यवाद

मनीषा ने कहा…

बहुत ही सही बात बताई आपने। भाई भतीजा वाद ने भारत को कहीं का नहीं छोड़ा, हर क्षेत्र में यही समस्या है।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मनीषा जी
पर एक बात तो है इससे सिर्फ इंट्री मिल पाती है टिक पाने के लिए लियाकत जरूरी है

विशिष्ट पोस्ट

"मोबिकेट" यानी मोबाइल शिष्टाचार

आज मोबाइल शिष्टाचार पर बात करना  करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो ! अधिकाँश लोग इन सब ...