आज के वेदव्यास अपने से ज्यादा दूसरे को विद्वान समझने की गलतफहमी नहीं पालते ! इसलिए सिर्फ अपना पढवाने की होड़ है ! इक्के-दुक्के अपवादों को छोड़, पढ़ता भी कौन है ! बस सब लिखे जा रहे हैं ! लिख्खाड़ों की भरमार हो गई है ! विश्वास ना हो तो कोई भी पत्रिका उठा उसमें पैवस्त रचनाओं को देख लें ! दौड़ में बने रहने की मारम-मार है ! अब थोक के प्रोडक्शन में माल कहां से आ रहा है इसकी चिंता नहीं है ! ऑरिजिनल मिलता नहीं ज्यादातर असेम्बलिंग होती है ! ऐसे में गुणवत्ता का क्या काम ! कोई अपेक्षा भी नहीं करता.............! ऐसी ही एक असेम्बल्ड गल्प; अब यह आप पर है कि आप इस गल्प को किस तरह लेते हैं
#हिन्दी_ब्लागिंग
कुछ दिनों पहले मुल्ला नसीरुद्दीन की एक कहानी को साझा करने चला तो अचानक आड़े-टेढ़े ख्यालों ने भरमा कर दिमाग को मुख्य पटरी से लूप लाइन पर धकेल दिया ! सो कहानी वहीं की वहीं रह गई। अब ख्याल भले ही आंके-बांके हों पर कुछ ना कुछ सच्चाई तो होती ही है उनमें भी, जो यह बता रही थी कि इस सीधी-सादी गल्प का भी आजकल के विद्वान कुछ का कुछ अर्थ निकाल इसको कहीं के कहीं ले जाएंगे ! फिर सोचा अपने यहां खुद को छोड़ बाकियों को कुछ भी समझने-समझाने की आजादी है..........! अब यह आप पर है कि आप इस गल्प को किस तरह लेते हैं। तो कहानी कुछ इस प्रकार है कि -
एक दिन मुल्ला नसीरुद्दीन को बैठे-बैठे यह ख्याल आया कि जैसे मैं सांझ-सबेरे छत पर चढ़ कर दुनिया-जहान का लुत्फ़ उठाता हूँ, उसका जायजा लेने का हक़ उसके प्यारे गधे को भी है ! सो दूसरे दिन अल-सुबह वह गधे को छत पर चढ़ाने को तैयार हो गया। गधे के लिए यह एक नई मुसीबत थी, वह सीढ़ी पर पैर रखने तक को तैयार नहीं था ! काफी मेहनत-मशक्कत, लाड-प्यार, धक्कम-धुक्की, खींच-तान के बाद किसी तरह मुल्ला ने गधे को छत पर ला खड़ा कर ही दिया। अब गधा तो गधा वह इस मुकाम की अहमियत जाने बिना वहां भी सर झुकाए चुपचाप खड़ा रहा ! कुछ देर बाद जब मुल्ला ने देखा कि उसके गधे को छत से दिखती नियामतों में कोई रूचि नहीं है तो उसने नीचे उतरने के लिए जब गधे को पुचकारा तो वह अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ। मुल्ला ने हर तरकीब आजमा ली पर गधे को हिलना तक गवारा नहीं था। जैसे बदला ले रहा हो अपने को छत पर चढाने का ! थक-हार कर मुल्ला उसको वहीं छोड़ नीचे चला आया। पर कुछ देर बाद ही ऊपर से अजीब सी आवाजें आने लगीं जैसे कोई कुछ तोड़ रहा हो ! मुल्ला जब दौड़ कर ऊपर पहुंचा तो उसने देखा कि उनका प्यारा गधा अपनी दुलत्तियों से छत तोड़ने को आमादा है ! छत कच्ची थी, कहीं टूट ही ना जाए इस डर से मुल्ला ने गधे को हटाना चाहा तो उसने दुलत्ती मार उसी को नीचे गिरा दिया ! जब तक मुल्ला संभले तब तक गधा भी छत तोड़ नीचे आ गिरा !
मुल्ला नसीरुद्दीन ने इस हादसे पर काफी दिमाग लड़ाया और इस नतीजे पर पहुंचे कि कभी भी गधे को ऊँचे मकाम पर नहीं ले जाना चाहिए ! ऐसा करने पर वह उसी जगह को बर्बाद करता है ! ले जाने वाले को भी लतिया कर गिरा देता है और सबसे बड़ी बात खुद भी सर के बल नीचे आ गिरता है। यानी दान, ज्ञान और सम्मान सुयोग्य पात्र को ही देना चाहिए।
@संदर्भ - भास्कर
#हिन्दी_ब्लागिंग
कुछ दिनों पहले मुल्ला नसीरुद्दीन की एक कहानी को साझा करने चला तो अचानक आड़े-टेढ़े ख्यालों ने भरमा कर दिमाग को मुख्य पटरी से लूप लाइन पर धकेल दिया ! सो कहानी वहीं की वहीं रह गई। अब ख्याल भले ही आंके-बांके हों पर कुछ ना कुछ सच्चाई तो होती ही है उनमें भी, जो यह बता रही थी कि इस सीधी-सादी गल्प का भी आजकल के विद्वान कुछ का कुछ अर्थ निकाल इसको कहीं के कहीं ले जाएंगे ! फिर सोचा अपने यहां खुद को छोड़ बाकियों को कुछ भी समझने-समझाने की आजादी है..........! अब यह आप पर है कि आप इस गल्प को किस तरह लेते हैं। तो कहानी कुछ इस प्रकार है कि -
एक दिन मुल्ला नसीरुद्दीन को बैठे-बैठे यह ख्याल आया कि जैसे मैं सांझ-सबेरे छत पर चढ़ कर दुनिया-जहान का लुत्फ़ उठाता हूँ, उसका जायजा लेने का हक़ उसके प्यारे गधे को भी है ! सो दूसरे दिन अल-सुबह वह गधे को छत पर चढ़ाने को तैयार हो गया। गधे के लिए यह एक नई मुसीबत थी, वह सीढ़ी पर पैर रखने तक को तैयार नहीं था ! काफी मेहनत-मशक्कत, लाड-प्यार, धक्कम-धुक्की, खींच-तान के बाद किसी तरह मुल्ला ने गधे को छत पर ला खड़ा कर ही दिया। अब गधा तो गधा वह इस मुकाम की अहमियत जाने बिना वहां भी सर झुकाए चुपचाप खड़ा रहा ! कुछ देर बाद जब मुल्ला ने देखा कि उसके गधे को छत से दिखती नियामतों में कोई रूचि नहीं है तो उसने नीचे उतरने के लिए जब गधे को पुचकारा तो वह अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ। मुल्ला ने हर तरकीब आजमा ली पर गधे को हिलना तक गवारा नहीं था। जैसे बदला ले रहा हो अपने को छत पर चढाने का ! थक-हार कर मुल्ला उसको वहीं छोड़ नीचे चला आया। पर कुछ देर बाद ही ऊपर से अजीब सी आवाजें आने लगीं जैसे कोई कुछ तोड़ रहा हो ! मुल्ला जब दौड़ कर ऊपर पहुंचा तो उसने देखा कि उनका प्यारा गधा अपनी दुलत्तियों से छत तोड़ने को आमादा है ! छत कच्ची थी, कहीं टूट ही ना जाए इस डर से मुल्ला ने गधे को हटाना चाहा तो उसने दुलत्ती मार उसी को नीचे गिरा दिया ! जब तक मुल्ला संभले तब तक गधा भी छत तोड़ नीचे आ गिरा !
मुल्ला नसीरुद्दीन ने इस हादसे पर काफी दिमाग लड़ाया और इस नतीजे पर पहुंचे कि कभी भी गधे को ऊँचे मकाम पर नहीं ले जाना चाहिए ! ऐसा करने पर वह उसी जगह को बर्बाद करता है ! ले जाने वाले को भी लतिया कर गिरा देता है और सबसे बड़ी बात खुद भी सर के बल नीचे आ गिरता है। यानी दान, ज्ञान और सम्मान सुयोग्य पात्र को ही देना चाहिए।
@संदर्भ - भास्कर
13 टिप्पणियां:
हार्दिक आभार, शास्त्री जी
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04 मई 2020) को 'बन्दी का यह दौर' (चर्चा अंक 3691) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
रवीन्द्र जी
सम्मिलित कर मान बढाने का हार्दिक आभार
गगन जी ।, यदि इस पोस्ट पर प्रतिक्रिया दूँ तो मैं शायद इस योग्य नहीं। पर नसीरुद्दीन का ये ज्ञान कथित गुरुओं को तब समझ आता है जब अल्पज्ञानी शिष्य उन गुरुओं के पैरों के नीचे से जमीन खींच चुके होते हैं। और लिखने वालों की तादाद इतनी हो चुकी है कि अच्छा बुरा सब गटक कर पाठक बेसुध होने वाले हैं या फिर अपच का शिकार हो चुके हैं। आपका ब्लॉग सचमुच कुछ अलग सा एहसास कराता है। सादर 🙏🙏
कहानी भी लाजवाब और सीख भी लाजवाब... बहुत सुन्दर सृजन सर .
रेणु जी
वही तो, सभी आत्ममुग्धता के शिकार होते जा रहे हैं ¡गुड़ से ज्यादा चीनी की महत्ता है भले ही नुकसान दायक हो
मीना जी
मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
व्यंग्यात्मक वृत्तांत के माध्यम से गंभीर विषय की ओर इशारा करती प्रस्तुति.
सादर.
अनीता जी
हार्दिक धन्यवाद
वाह ! व्यंग्य का व्यंग्य और सीख की सीख। मनोरंजक कहानी भी। ये हुआ ना कुछ अलग सा!!!
मीना जी
हौसलाअफजाई के लिए हार्दिक आभार
गगन भाई,सुंदर सीख से सुसज्जित कथा। सच कुछ अलग ही प्रस्तूति।
ज्योति जी
मान बढ़ाने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
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