आज कोरोना की भयावकता को देख युद्ध स्तर पर इसके खिलाफ मुहीम छेड़ी जा चुकी है ! जिसके तहत कई मंदिरों को बंद कर दिया गया है तो कुछ में अत्यधिक सावधानी बरती जा रही है। इस पर कुछ अति बुद्धिमान तथा आत्मश्लाघी विद्वान भगवान का मजाक उड़ाने से भी बाज नहीं आ रहे ! इसी पर एक पुरानी कहानी याद आ गयी...............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
देश के एक हिस्से में बरसात के दिनों में तूफ़ान आ जाने से हाहाकार मचा हुआ था ! सैलाब ने हर ओर तबाही मचा दी थी ! बड़े-बड़े घर जमींदोज हो गए थे ! धन-जन की बेहिसाब क्षति हुई थी। इंसान-पशु-मवेशी सब बाढ़ की चपेट में आ जान गंवा रहे थे। ऐसे में भगवान में गहरी आस्था रखने वाला एक आदमी किसी तरह खुद को बचाते हुए एक पेड़ पर बैठा प्रभु से खुद को बचाने की गुहार लगा रहा था। उसे पूरा विश्वास था कि भगवान् उसकी रक्षा जरूर करेंगे। तभी उधर से एक नाव गुजरी और उसे देख उन्होंने पुकार कर कहा कि नौका में आ जाओ ! पर उसने जवाब दिया कि आप जाओ, मुझे मेरे भगवान बचा लेंगे। उसे ना आता देख नाव आगे बढ़ ली। कुछ देर बाद वहां से लोगों को पानी से बचा सुरक्षित जगह तक ले जाता हुआ एक स्टीमर गुजरा, उसमें बैठे कर्मियों के उसे बुलाने पर उसने उनको भी वही जवाब दिया, कि उसे उसके प्रभु बचा लेंगे ! उसको समझाने का कोई असर ना होते देख वे भी आगे चले गए। इधर शाम घिरने लगी थी, ऐसे में कुछ देर बाद उधर से सेना के जवान अपनी मोटर बोट से निकले और इसे देख बोले कि इधर के सभी लोगों को बचा लिया गया है, यह अंतिम प्रयास है ! तुम ही बचे हो आ जाओ ! पर इस भोले भक्त ने फिर वही राग अलाप कर ईश्वर की दुहाई दी ! लाख समझाने पर भी उसके ना मानने और अपने राहत कार्य में विलंब होता देख वे लोग भी आगे बढ़ गए।
रात घिर आई, पानी का वेग बढ़ गया और वह पेड़ जिसका सहारा उस आदमी ने लिया था उखड कर पानी में जा गिरा ! दिन भर के भूखे-प्यासे, थके-हारे उस आदमी की पानी से संघर्ष ना कर पाने से मौत हो गयी। मरणोपरांत जब वह ऊपर भगवान के सामने हाजिर हुआ तो गुस्से से भरा हुआ था ! उसने चिल्ला कर शिकायत की कि मैं तुम्हारा भक्त, मुसीबत में पड़ा, गहरी आस्था से तुम्हें पुकार रहा था ! मुझे पूरा विश्वास था कि तुम मुझे बचा लोगे ! पर तुमने तो मेरी एक ना सुनी और मुझे मार ही डाला, ऐसा क्यों ?
प्रभु बोले, अरे मुर्ख ! मैंने तो तेरी हर पल सहायता करनी चाही ! पहले एक नाव भेजी, तूने उसे नकार दिया ! फिर मैंने स्टीमर भेजा, तू उसमें भी नहीं चढ़ा ! फिर मैंने सेना के जवानों को तुझे बचाने भेजा, पर तू कूढ़मगज तब भी नहीं माना ! तो क्या मैं खुद गरुड़ पर सवार हो तुझे बचाने आता ? चल जा अपने लेखे-जोखे का हिसाब होने तक अपने अगले जन्म का इंतजार कर !
#हिन्दी_ब्लागिंग
देश के एक हिस्से में बरसात के दिनों में तूफ़ान आ जाने से हाहाकार मचा हुआ था ! सैलाब ने हर ओर तबाही मचा दी थी ! बड़े-बड़े घर जमींदोज हो गए थे ! धन-जन की बेहिसाब क्षति हुई थी। इंसान-पशु-मवेशी सब बाढ़ की चपेट में आ जान गंवा रहे थे। ऐसे में भगवान में गहरी आस्था रखने वाला एक आदमी किसी तरह खुद को बचाते हुए एक पेड़ पर बैठा प्रभु से खुद को बचाने की गुहार लगा रहा था। उसे पूरा विश्वास था कि भगवान् उसकी रक्षा जरूर करेंगे। तभी उधर से एक नाव गुजरी और उसे देख उन्होंने पुकार कर कहा कि नौका में आ जाओ ! पर उसने जवाब दिया कि आप जाओ, मुझे मेरे भगवान बचा लेंगे। उसे ना आता देख नाव आगे बढ़ ली। कुछ देर बाद वहां से लोगों को पानी से बचा सुरक्षित जगह तक ले जाता हुआ एक स्टीमर गुजरा, उसमें बैठे कर्मियों के उसे बुलाने पर उसने उनको भी वही जवाब दिया, कि उसे उसके प्रभु बचा लेंगे ! उसको समझाने का कोई असर ना होते देख वे भी आगे चले गए। इधर शाम घिरने लगी थी, ऐसे में कुछ देर बाद उधर से सेना के जवान अपनी मोटर बोट से निकले और इसे देख बोले कि इधर के सभी लोगों को बचा लिया गया है, यह अंतिम प्रयास है ! तुम ही बचे हो आ जाओ ! पर इस भोले भक्त ने फिर वही राग अलाप कर ईश्वर की दुहाई दी ! लाख समझाने पर भी उसके ना मानने और अपने राहत कार्य में विलंब होता देख वे लोग भी आगे बढ़ गए।
रात घिर आई, पानी का वेग बढ़ गया और वह पेड़ जिसका सहारा उस आदमी ने लिया था उखड कर पानी में जा गिरा ! दिन भर के भूखे-प्यासे, थके-हारे उस आदमी की पानी से संघर्ष ना कर पाने से मौत हो गयी। मरणोपरांत जब वह ऊपर भगवान के सामने हाजिर हुआ तो गुस्से से भरा हुआ था ! उसने चिल्ला कर शिकायत की कि मैं तुम्हारा भक्त, मुसीबत में पड़ा, गहरी आस्था से तुम्हें पुकार रहा था ! मुझे पूरा विश्वास था कि तुम मुझे बचा लोगे ! पर तुमने तो मेरी एक ना सुनी और मुझे मार ही डाला, ऐसा क्यों ?
प्रभु बोले, अरे मुर्ख ! मैंने तो तेरी हर पल सहायता करनी चाही ! पहले एक नाव भेजी, तूने उसे नकार दिया ! फिर मैंने स्टीमर भेजा, तू उसमें भी नहीं चढ़ा ! फिर मैंने सेना के जवानों को तुझे बचाने भेजा, पर तू कूढ़मगज तब भी नहीं माना ! तो क्या मैं खुद गरुड़ पर सवार हो तुझे बचाने आता ? चल जा अपने लेखे-जोखे का हिसाब होने तक अपने अगले जन्म का इंतजार कर !
16 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 18 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
यशोदा जी
हार्दिक आभार
सुन्दर और रोचक
शास्त्री जी
प्रभु की थाह कौन ले पाया है
भगवान के रूप को और उनके सहयोग को ना पहचानना ही तो हमारी सबसे बड़ी मूर्खता हैं ,भगवान कब किस रूप में अपने होने का प्रमाण देते हैं ये हम समझ ही नहीं पाते ,बहुत ही सुंदर कहानी ,सादर नमन आपको
कामिनी जी
एक बात और भी है कि सर्वे सुलभ की हम कदर भी तो नहीं करते¡हवा,पानी और अग्नि को भी देव स्वरुप माना जाता है पर हमने क्या हालत बना दी है
शिक्षाप्रद कहानी ।
मीना जी
आज का इंसान खुद को उससे भी बडा समझने लग गया है
यहीं तो होता हैं कि इंसान ईश्वर की कृपा को समझ नहीं पाता और दुखी हो जाता हैं। सुंदर प्रस्तुति।
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२१-०३-२०२०) को "विश्व गौरैया दिवस"( चर्चाअंक -३६४७ ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
ज्योति जी,
जो सर्वसुलभ हो जाता है हम उसकी ऐसी की तैसी भी तो कर देते हैं !
अनीता जी,
पोस्ट साझा करने का हार्दिक आभार
सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुन्दर शिक्षाप्रद कहानी....।
ओंकार जी
हार्दिक आभार !
सुधा जी,
''कुछ अलग सा'' पर आपका सदा स्वागत है
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