गुरुवार, 12 मार्च 2020

केरल यात्रा का पहला पड़ाव, त्रिवेंद्रम ! पहला दिन

जब हम पद्मनाभ मंदिर की ओर उन्मुख हुए, उस समय पांच बजा चाहते थे ! मंदिर पहुंच, वस्त्र बदल, लंबी लाइनों में लग करीब डेढ़ घंटे बाद गर्भ-गृह तक पहुंचे ! पर एक तो घिरते अन्धकार और दूसरे अंदर सिर्फ दीए के प्रकाश के कारण प्रतिमा के होने का आभास ही पाया जा सका। वहां से निकलते-निकलते रात के आठ बज गए थे ! थकान पूरी तरह सबको अपनी गिरफ्त में ले चुकी थी और दूसरी सुबह फिर कन्याकुमारी के लिए एक लंबी यात्रा करनी थी, तो जल्द उठना लाजिमी था............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

RSCB के सौजन्य से केरल यात्रा, 29 फ़रवरी से सात मार्च, का सुयोग प्राप्त हुआ। जिसमें त्रिवेंद्रम, कन्याकुमारी, अलेप्पी, थेकाड्डी, मुन्नार और कोचीन जैसे पड़ाव शामिल थे। मेरे सपत्नीक शामिल होने का सबसे बड़ा आकर्षण थे, पद्मनाभ मंदिर और कन्याकुमारी, जहां जाने का सपना वर्षों से दिलो-दिमाग में कुलबुलाता रहता था पर संयोग नहीं बन पा रहा था। यह अवसर मन चाही मुराद पूरी होने जैसा था।

रिया ट्रेवेल्स, जिनके प्रतिनिधि श्री सिद्दार्थ जो सारी यात्रा के दौरान हमारे साथ बने रहे, द्वारा तयशुदा कार्यक्रम के तहत इंदिरा गांधी टर्मिनल 3 से ''विस्तारा'' की सुविधा लेने के लिए सुबह पांच बजे अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दी। वहां अपने औसत 66 साल के, बीस महिलाओं और नौ पुरुषों के ग्रुप को देख एक सुखद अनुभव यह हुआ कि सभी सदस्य चुस्त-दुरुस्त नजर आ रहे थे ! उम्र का प्रभाव सिरे से नदारद था। जबकि हफ्ते भर पहले हुई यात्रा की ब्रीफिंग की मीटिंग में इसका ठीक उलट था।

करीब सवा तीन घंटे की उड़ान के बाद हम सब को त्रिवेंद्रम पोर्ट से वॉल्वो बस, जो पूरी यात्रा के दौरान हमारी सहयात्री रही, द्वारा होटल मौर्या राजधानी पहुंचाया गया। जहां से तारो-ताजा होने के पश्चात शहर दर्शनार्थ निकलना हुआ। क्योंकि मंदिर के खुलने-बंद होने के कई विभिन्न समय थे इसलिए उसके दर्शनों का समय संध्या उपरांत रखा गया। सो सबसे पहले सब करीब तीन की.मी. की परिधि में फैले चिड़ियाघर गए। फिर कुछ लोगों ने साथ ही लगे म्यूजियम को देखा। तकरीबन रात भर जगने, फिर हवाई सफर और इतना घूमने के बाद थकान हावी होने लगी थी फिर भी चाय वगैरह ले पद्मनाभ मंदिर की ओर उन्मुख हो गए, उस समय पांच बजा चाहते थे  
  








पद्मनाभ मंदिर विष्णु जी का वही विश्व प्रसिद्ध मंदिर है जो अपने तहखानों में संग्रहित विशाल, अमोल और अकूत खजाने के कारण सदा चर्चा में रहा है। इसके प्रवेश के अपने नियम कानून हैं जिनके तहत महिलाओं को साड़ी और पुरुषों को सिर्फ धोती पहन कर ही मंदिर में प्रवेश की इजाजत मिलती है, जो वहां की दुकानों पर सर्व सुलभ हैं। पर इसके साथ ही सर ढकने की भी मनाही है, जिसके कारण हमारे दो सिक्ख साथी श्री गिल और श्री बेदी चाहते हुए भी अंदर नहीं जा सके। 
पद्मनाभ स्वामी मंदिर 


  मेहरा जी, नरूला जी तथा मुकुंदी जी 



खैर वस्त्र बदल, लंबी लाइनों में लग करीब डेढ़ घंटे बाद मंदिर के गर्भ-गृह तक पहुंचे ! पर एक तो घिरते अन्धकार और दूसरे अंदर सिर्फ दीए के प्रकाश के कारण प्रतिमा के होने का आभास ही पाया जा सका। वहां से निकलते-निकलते रात के आठ बज गए थे ! थकान पूरी तरह सबको अपनी गिरफ्त में ले चुकी थी और दूसरी सुबह फिर कन्याकुमारी के लिए एक लंबी यात्रा करनी थी, तो जल्द उठाना लाजिमी था। सो सब होटल पहुंच जैसे-तैसे कुछ खा कर अपने-अपने बिस्तर में जा दुबके। कब नींद ने अपने आगोश में लिया कब सुबह हो गयी पता ही नहीं चला। पर सुबह सभी ताजा दम और उत्साहित थे अगली यात्रा को ले कर ! 
@कल कन्याकुमारी         

7 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

साफ़-सुथरा, शांत शहर ! सौम्य, मृदु भाषी लोग

Kamini Sinha ने कहा…

बहुत खूब... ,सुंदर यात्रा वृतांत , ,सादर नमन

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
बहुत-बहुत धन्यवाद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर यात्रा संस्मरण

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हार्दिक आभार, शास्त्रीजी

Meena Bhardwaj ने कहा…

बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मीना जी
न भूलने वाला समय रहा यह

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