शनिवार, 21 मार्च 2020

जान लेवा संकट के समय तो मतभेद भुला, एकजुट हों

हमारे यहां के लोग इस वायरस के प्रकोप से बचने के बजाए उसका और उससे सावधान करने वालों का मजाक उड़ाने को ही अपनी बुद्धिमत्ता समझते हैं ! खुदा ना खास्ता यदि उस समय  ऐसे विरोध करने, मजाक उड़ाने, सावधानी के लिए अपनाए जाने वाले कदमों को नकारने वाले, बहके हुए लोगों के परिवार का कोई सदस्य इस महामारी की चपेट में आ जाता है तो इनकी सारी अक्लमंदी, अपने आकाओं के प्रति वफादारी, कुंठित मानसिक प्रवृत्ति सब धरी की धरी रह जाएंगी

#हिन्दी_ब्लागिंग
विपदा दरवाजे पर दस्तक दे रही है और कुछ बेअक़्ल उसे वाद्य संगीत समझ रहे हैं, मजाक उड़ा रहे हैं, घोर पूर्वाग्रहों से ग्रसित ऐसे लोग, उनके ही भले के लिए प्रसारित हिदायतों में मीन-मेख निकाल रहे हैं ! कोरोना से भी खतरनाक ऐसे लोग खुद तो मौत को दावत दे ही रहे हैं बाकियों के लिए भी घोर विपत्ति का वायस बन रहे हैं ! 

एक समय था जब देश-समाज पर आन पड़ी मुसीबत के समय सारा अवाम, अपना धर्म, जाति, भाषा सब दरकिनार कर एकजुट हो जाता था ! चाहे 1962 हो, 65 हो या 71 हर बार देश गवाह रहा कि उस पर विपदा आते ही पक्ष-विपक्ष, नेता-अभिनेता, मंत्री-संत्री सब अपना स्वार्थ, मतभेद, राग-द्वेष भूल उसके हित के लिए कंधे से कंधा मिला कर खड़े हो जाते थे ! ऐसा एक बार नहीं कई बार हुआ, जब पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण सिर्फ भारत नजर आता था। आज ना वैसे नेता रहे ना हीं वैसा माहौल ! 

आज लगभग पूरे विश्व से रोज ही दिल दहला देने वाली ख़बरें आ रही हैं ! खासकर चीन और इटली, जहां हालात बेकाबू हो चुके हैं ! हज़ारों-हजार शवों को बिना शिनाख्त किए कहीं भी दफनाया जा रहा है ! शवों को कंधा देने के लिए कोई नहीं मिल रहा है ! लाश में तब्दील हो चुके ऐसे लोग मौत से पहले भी अकेले थे बाद में तो होना ही था ! वह भी लावारिस रूप में ! आज ही अखबार में था कि हम इटली जैसी स्थिति से एक माह और अमेरिका से सिर्फ 15 दिन दूर हैं। यह भी गौरतलब है कि इटली, अमेरिका, जर्मनी, स्पेन जैसे देशों में शुरूआती लापरवाही बहुत भारी पड़ी थी, जहां अब यह आशंका हो गयी है कि यदि जल्दी ही हालत काबू में नहीं आए तो अमेरिका में 22 तथा ब्रिटेन में 5 लाख लोगों की मौत हो सकती है ! जबकि ये देश प्रगति में हमसे कई गुना आगे हैं। फिर भी हमारी तैयारी की प्रशंसा के बदले कुंठित आत्मश्लाघि विद्वान निंदा और मजाक बनाने से बाज नहीं आ रहे ! यह हंसी-ठिठोली उस बात से बिलकुल अलग है जो हमारे ग्रंथों में विपदा का सामना निर्भीक और हंसते हुए करने को कही गयी है। यहां सिर्फ और सिर्फ व्यक्तिगत द्वेष नजर आ रहा है। ऐसे मूढ़मति और उनके तथाकथित नेता अपनी ओछी मानसिकता और स्वार्थ के तहत अभी भी समय की भयावकता को समझ नहीं पा रहे हैं, या यूं कहिए समझना ही नहीं चाहते ! जबकि भारत तथा राज्यों की सरकारें और उनके स्वास्थ्य महकमें धीरे-धीरे स्कूल, कॉलेज, रेल, मॉल, धर्मस्थल और भीड़-भाड़ वाली जगहों को बंद करते जा रहे हैं। 

आज हमारी सरकार भविष्य के खतरे को देखते हुए जो एहतियाद बरत रही है उससे हम अभी इलाज के मामले में कई देशों से आगे हैं। इस स्थिति को बरकरार रखते हुए लोगों को पूरी तरह रोग और चिंता मुक्त करने के लिए जरुरी है कि हम बताई, सुझाई जा रही सावधानियों पर पूरी गंभीरता से अमल करें। लोगों को भी समझाएं, जागरूक बनाएं ! सुरक्षित रहने के तरीकों का सपरिवार पालन करें ! उसे किसी भी तरह हलके में ना लें !  क्योंकि लापरवाही से यदि इसके ''तीसरे स्टेज'' की स्थिति आ गयी तो उन विषम परिस्थियों को संभालना बहुत मुश्किल हो जाएगा ! क्योंकि हमारे यहां के लोग इस वायरस के प्रकोप से बचने के बजाए उसका और उससे सावधान करने वालों का मजाक उड़ाने को ही अपनी बुद्धिमत्ता समझते हैं ! खुदा ना खास्ता यदि उस समय  ऐसे विरोध करने, मजाक उड़ाने, सावधानी के लिए अपनाए जाने वाले कदमों को नकारने वाले, बहके हुए लोगों के परिवार का कोई सदस्य इस महामारी की चपेट में आ जाता है तो इनकी सारी अक्लमंदी, अपने आकाओं के प्रति वफादारी, कुंठित मानसिक प्रवृत्ति सब धरी की धरी रह जाएंगी और इन्हें भी बदहवास हो उन्हीं सरकारी अस्पतालों की ओर दौड़ना पडेगा जिनका आज ये मजाक बना रहे हैं ! अभी भी समय है निर्देशों का कड़ाई से पालन करें, सावधान रहें, खुद भी सुरक्षित रहें दूसरों को भी रहने दें।    

4 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

खुद अंदाजा कितने लगाते हैं आजकल? समस्या की जड़ ही यही है। एक लीक पर एक भीड़ के पीछे आँख मूँदे कान बंद किये किसी का लिखा गीत गाने की आदत जो पड़ गयी है। कब तक नहीं लगती ठोकर? अब भी नहीं खोलेंगे दिमाग के कपाट तो यही सब होना है। सार्थक लेख।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी
हार्दिक आभार

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

अभी भी समय है निर्देशों का कड़ाई से पालन करें, सावधान रहें, खुद भी सुरक्षित रहें दूसरों को भी रहने दें।
सार्थक सन्देश।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी, यही विडंबना है कि इस संकट की घडी में भी लोग अपनी रोटियां सेकने में लगे हुए हैं, जैसे वे तो अजर-अमर हो कर आए हों ! पहले कभी इस तरह की मानसिकता नहीं देखी गई

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