पहली बार 2010 में राजस्थान में हनुमान जी के प्रसिद्ध धाम, सालासर बालाजी के दर्शन का सौभाग्य मुझे, श्रीमती जी, दोनों बेटे चेतन और अभय को सड़क मार्ग से "वैगन आर" द्वारा जा कर प्राप्त हुआ था. यात्रा काफी सुखद व संतोषजनक रही थी. इसी कारण 2011 में भी यात्रा दोहराई जा सकी, जिसमें कदम जी के भ्राता श्री राकेश जी, उनकी पत्नी श्रीमती स्नेह और बिटिया नेहा भी सम्मलित हुए थे. गए तो तब भी कार से ही थे पर "i-ten" को कुछ ज्यादा ही बोझ उठाना पडा था :-). कारण हाई-वे और दूरी के लिहाज से कार वाहक के रूप मे अभय पर ही सब को भरोसा था सो दूसरी कार ले जाना सर्वसम्मति से नकार दिया गया था. पर जो भी हो यात्रा और दर्शन बहुत ही सुखदाई रहे थे. पर यह सिलसिला उसके अगले साल इच्छा होते हुए भी, यानी 2012 में संभव नहीं हो पाया था. इसी कारण इस बार काफी पहले से ही इस यात्रा को प्रमुखता दे रखी थी. पर इस बार इसे ज़रा सा और विस्तार दे बालाजी धाम के पास के दो और तीर्थ स्थानों, झुंझनु के रानीसती जी के मंदिर और खाटु स्थित श्याम जी के मंदिर को भी शामिल कर लिया गया था.
इसके लिए 17, 18, 19 अक्टूबर के दिन भी निश्चित हो चुके थे और हमारे अनुभवों को सुन इस बार सदस्य संख्या भी 12-13 का आंकड़ा छू रही थी. पर जैसे-जैसे दिन नजदीक आते गए सदस्यों की 'हाँ,' 'ना' का रूप धरती गयी और 16 अक्टूबर की सुबह तक हम वही 2010 वाले चारों ही बचे रहे थे और यह तय हो चुका था कि फिर अपनी "वैगन-आर" को ही हमें दर्शन करवाने का मौका दिया जाए. पर प्रभू की माया, संध्या समय राकेश जी ने अपने अकेले जाने की इच्छा जाहिर की, फिर उनसे छोटे भाई राजीव जी ने भी परिवार सहित, जिसमें आठ साल की बिटिया तथा पांच साल का खुशदिल बेटा सबका दिल बहलाने को शामिल थे. इन्हीं सारी बातों और सदस्यों की संख्या को ध्यान में रख 16 की रात करीब साढ़े दस बजे एक ZYLO बुक़ कर ली गयी।
17.10.13, जल्दी करते-करते भी सुबह जब गाड़ी ने घर छोड़ा तो घड़ी 10.40 का आंकड़ा दिखला रही थी. अंतरजाल और पुराने अनुभवों के आधार पर रोहतक-भिवानी-लोहारू-झुंझनु वाला मार्ग ही अपनाया गया. पर इस बार सबसे सुखद आश्चर्य सडकों की हालत देख कर हुआ. उनके साफ, समतल रूप और "वाई पासों" ने यात्रा को सुगम बनाने में बहुत मदद की. दिल्ली से रोहतक तथा कुछ हद तक भिवानी के मार्ग ने तो लालू जी की टिप्पणी की याद ताजा कर दी थी पर भिवानी शहर से बाहर निकलने तक कार के झूला बनने की स्थिति बनी रही जो कमोबेश हर शहर के अंदर से गुजरने पर मिलती रही, पर यह कुछ ही देर की परेशानी ही होती थी.
सुन्दर, साफ, समतल सड़क |
लोहारू पार करते-करते मुखद्वार से कुछ न कुछ अंदर जाते रहने के बावजूद भूख ने सर उठाना शुरू कर दिया था सो एक उपयुक्त सी जगह देख साथ लाए गए भोजन को उदरस्त कर थोड़ी-थोड़ी चाय का मजा ले फिर आगे की यात्रा शुरू की गयी.
भोजन की प्रतीक्षा |
कुछ घंटों की यात्रा की हल्की सी थकान और अकड़ाहट भोजन के बाद गायब हो गयी थी. चाय ने भी सोने पे सुहागे का काम किया था. यात्रा की शुरुआत से बच्चों को लेकर जो एक चिंता सी थी कि कहीं उन्हें परेशानी ना हो वह भी दूर हो चुकी थी. दोनों खूब तफरीह कर रहे थे. सो बिना किसी अवरोध के हम सब करीब साढे चार बजे झुंझनु पहुँच गये. पुराने शहर की संकरी गलियों से होते हुए मंदिर तक जाने में लगे करीब पन्द्रह मिनटों के बाद हम रानीसती जी के भव्य मन्दिर के सामने खड़े थे.
यहीं पता चला कि सालासर में बालाजी के दरबार में शरद पूर्णिमा के कारण मेला भरा हुआ है, जिसके कारण वहाँ पचासों हजार लोग इकट्ठा हैं इसलिए रहने की व्यवस्था होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. वाहन चालाक की भी यही सलाह थी कि रात झुंझनु में ही बिताई जाए. पर मन नहीं मान रहा था. रानी सती माता के दर्शन और फिर कैसे क्या हुआ...........कल की रिपोर्ट मे.
7 टिप्पणियां:
गगन जी राम राम...माँ रानी सती हम अग्रवाल वैश्यों की कुलदेवी मानी जाती हैं. आलू पूरी देख कर मुह में पानी भर आया...हमारे शुद्ध देशी खाने का भी ज़वाब नहीं....वन्देमातरम...
सही कहा प्रवीण जी,
दो दिन गुजरे राजस्थान में पर खाने को लेकर हर जगह संतुष्टी रही. वैसे भी मेरे करीब २० साल मारवाड़ी माहौल में ही बीते हैं, उस समय के कलकत्ते में, सो अपने को बहुत करीब पाता हूँ।
इस बार जायें तो वापसी में या जाते समय कोटपुतली होते हुये जायें - कोटपुतली से आगे चला के पास टपकेश्वर महादेव व एक और महादेव, प्राचीन गणेश मंदिर, फिर उदयपुरवाटी के पास शाकम्बरी माता और लौहगर जी|
एक मार्ग और- सालासर से सीकर, सीकर से जीण माता - बाबा खाटू श्याम - रींगस होते हुए चौमु और चौमु से चंदवाजी के पास हाइवे से दिल्ली !!
कोटपुतली से सीकर के बीच जो दर्शनीय स्थल है उनकी यात्रा कर उसकी जानकारी देने का प्लान है देखते है यात्रा कब पूरी होती है !!
शेखावत जी, खाटू श्याम से आपके उल्लेखित रास्ते रिंग्स-चौमु होते हुए ही लौटे थे. समयाभाव के कारण और कहीं जाना नहीं हो सका.
रोचक यात्रा वृत्तान्त, बीच में रुक कर भोजन का आनन्द अलग है।
सही कहा प्रवीन जी, भूख तो लगती ही है वह भी आनंद के साथ.
एक टिप्पणी भेजें