सुबह 10.40 पर घर से चलते वक्त साथ के बच्चों को लेकर एक चिंता सी थी कि कहीं उन्हें इतने लम्बे सफ़र में कोई परेशानी ना हो, पर वह भी दूर हो चुकी थी. दोनों खूब तफरीह कर रहे थे. सो बिना किसी अवरोध के हम सब करीब साढे चार बजे झुंझनु पहुँच गये. पुराने शहर की संकरी गलियों से होते हुए मंदिर तक जाने में लगे करीब पन्द्रह मिनटों के बाद हम रानीसती जी के भव्य मन्दिर के सामने खड़े थे. पूरा विवरण www.kuchhalagsa.blogspot.com पर उपलब्ध है.
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तब के कलकत्ते, आज के कोलकाता, में रिहायश के दौरान रानी सतीजी के मंदिर का बहुत नाम सुना करते थे. पर कभी जाने का मौका नहीं मिल पाया. पिछले तीन सालों में भी इधर से दो बार सालासर जाना हुआ पर इसका जैसे ध्यान ही नही रहा. कहते हैं जब प्रभू की इच्छा होती है तभी वे दर्शन देते हैं। कुछ वैसा ही तो हमारे साथ हो रहा था. वर्षों बाद जैसे एक तमन्ना पूरी हो रही थी. सो 17 अक्टूबर की शाम साढे चार बजे हम झुंझनु की कुञ्ज गलियाँ पार कर मंदिर के सामने खड़े थे. रानी सती मंदिर का मुख्य द्वार |
रानीसती जी का यह करीब चार सौ साल पुराना मंदिर राजस्थान के झुंझनु शहर में स्थित है. यह भारत के प्राचीन तीर्थ स्थलों में से एक है. जो नारी शक्ति की गाथा
सामने मंदिर का द्वितीय द्वार |
द्वितीय द्वार पर बनी अद्भुत कलाकारी |
बयान करता आज भी अपने पूरे वैभव के साथ सर उठाए खडा है. इस मंदिर की यह खासियत है कि यहाँ किसी भी प्रकार की किसी भी पुरुष या महिला की मूर्ती या तस्वीर की स्थापना नहीं है. यहाँ पूजा होती है अदृष्य शक्ति की। वैसे भक्तों को ध्यान करने की सहूलियत के लिए फूलों और त्रिशूल से एक आकार बना दिया गया है, जो माँ के रूप का एहसास दिलाता है। यहाँ हर साल भादों मास की अमावस्या पर एक ख़ास पूजा का आयोजन किया जाता है जिसमे देश-विदेश के अनगिनत श्रद्धालु जन, दर्शन-पूजा का लाभ लेने यहाँ पहुंचते हैं। मुख्य मंदिर तक जाने के लिए तीन द्वार पार करने पड़ते हैं। परिसर में हनुमान जी, शिव जी, गणेश जी तथा राम दरबार भी स्थापित हैं।
परिसर में स्थित हनुमान जी की भव्य प्रतिमा |
मारवाड़ी समाज ख़ास कर माता के भक्त रानी सती जी को उत्तरा जो महाभारत काल में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी थीं, का अवतार मानते हैं। ऎसी धारणा है की युद्ध में अभिमन्यु की मृत्यु के बाद दुखी उत्तरा ने भी अपनी जान देने का निश्चय कर लिया था। पर श्री कृष्ण के समझाने और अगले जन्म में फिर अभिमन्यु को पाने और सती होने की इच्छा पूरी होने का वरदान पा कर उसने बात मान ली थी. उसी वरदान स्वरुप उत्तरा ने अगले जन्म में नारायणी नाम से जन्म लिया और उसका विवाह हिसार के थंदन, जो अभिमन्यु का दूसरा जन्म था, के साथ हुआ. थंदन के पास एक अद्भुत घोड़ा था जिस पर हिसार के राजा के बेटे की नजर थी. उसने कई बार वह घोड़ा हथियाना चाहा पर सफल न हो सका था. क्रोध में आ कर उसने थंदन को युद्ध के लिए ललकारा जिसमे राजा के बेटे की मौत हो गयी। इस पर राजा ने क्रोधित हो थंदन की ह्त्या नारायणी के सामने ही कर डाली। जिसके फलस्वरूप नारायणी ने उग्र रूप धर राजा और उसके सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया. इसके बाद अपनी पूर्व जन्म की इच्छानुसार अपने पति के साथ सती हो स्वर्गारोहण किया तथा रानी सती के रूप में ख्याति प्राप्त कर आज तक पूजे जाने का गौरव प्राप्त किया.
मंदिर का पार्श्व |
पिछला द्वार |
उन्हीं की याद में बना यह मंदिर कोलकाता के "मारवारी टेंपल बोर्ड" द्वारा संचालित है तथा इसकी गिनती भारत के सबसे धनाढ्य मंदिरों में की जाती है. लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि इसका चढ़ावा "तिरुपति बालाजी" से कुछ ही कम होता होगा. यह मंदिर लोगों की आस्था का प्रतीक है और आस्था सदा मानवीय नियम-कानूनों से ऊपर रही है. यह मंदिर इसका साक्षात प्रतीक है.
दर्शन कर बाहर आने पर लोगों से पता चला कि सालासर धाम में शरद पूर्णिमा के कारण मेला लगा हुआ है और रहने-ठहरने की जगह मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. हमारे वाहन चालाक राधेश्याम की भी सलाह थी कि हमें झुंझनु में ही रात बितानी चाहिए. पर मन था कि मानता ही नहीं था. जहां की सोच के चले थे, जो निदृष्ट था उसके पहले रूकने की बात गले नहीं उतर रही थी. अंत में यही तय रहा कि सब ऊपर वाले पर छोड़ दिया जाए, जैसा वह चाहेगा वैसे ही रहेंगे। गाड़ी ने शहर के बाहर आ जब सालासर का रूख किया तो छह बज कर बीस मिनट हो रहे थे. गाड़ी और मन अपनी-अपनी रफ्तार से अपनी मंजिल की और अग्रसर थे.
कैसा रहा रात को सालासर पहुँचने पर माहौल...........कल के अंक में।
8 टिप्पणियां:
रोचक यात्रा वृत्तान्त , आगे की प्रतीक्षा रहेगी।
स्नेह बना रहे प्रवीन जी
आपकी यह रचना आज बुधवार (23-10-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 154 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
एक नजर मेरे अंगना में ...
''गुज़ारिश''
सादर
सरिता भाटिया
Sarita ji, aabhaar
रोचकता बनाए राखी है आपने ... अच्छा यात्रा वृतांत ....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
एक अलग से स्थल की यात्रा का रोचक वृतांत। उत्तरा के पुनर्जन्म व थंदन के साथ विवाह और फिर सती जाने की कहानी नही पता थी। धन्.वाद िस कहानी के लिये।
कुछ धार्मिक, पौराणिक या प्राचीन स्थल देश की अमूल्य धरोहर होते हुए भी किसी ख़ास वर्ग या जाति से ज्यादा जुड़े मान लिए जाते हैं, इसलिए थोड़ा फर्क पड जाता है. वैसे यह आकलन है कि रानी सती मंदिर में आने वाला चढ़ावा दक्षिण के सर्वाधिक आय वाले तीर्थ तिरुपति बालाजी से कुछ ही कम हो कर इस स्थल को इस मामले में देश के दूसरे सबसे बड़े तीर्थ स्थल के रूप में मान्यता दिलाता है
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