किसी
की अच्छाई लेना कोई बुरी बात नहीं है। वह चाहे किसी भी देश, समाज या धर्म
से मिलती हो। ठीक है। अच्छा लगता है। दिन हंसी-खुशी में गुजरता है। मन
प्रफुल्लित रहता है तो त्यौहार जरूर मनाएं। पर एक सीमा में, बिना भावुकता
में बहे। उचित-अनुचित का ख्याल रखते हुए।
फिर एक बार संत वेलेंटाइन का संदेश ले फरवरी का माह आ खड़ा हुआ। बाजारों
में, अखबारों में युवाओं में काफी उत्साह उछाल मार रहा है। हमारे सदियों
से चले आ रहे पर्व "वसंतोत्सव" का भी तो यही संदेश है। प्रेम का,
भाईचारे का, सौहार्द का। पर इसे कभी भुनाया नहीं गया। लेकिन यही संदेश जब
"बाजार" ने वेलेंटाइन का नाम रख 'वाया' पश्चिम से भेजा तो हमारी आंखें
चौंधिया गयीं हमें चारों ओर प्यार ही प्यार नज़र आने लगा।
हालांकि
शुरु-शुरु में इस नाम को कोई जानता भी नहीं था। यहां तक कि एक स्थानीय
अखबार में भी कुछ का कुछ छपा था। फिर धीरे-धीरे खोज खबर ली गयी और कहानियां
प्रचारित, प्रसारित की जाने लगीं। युवाओं को इसमें मौज-मस्ती का सामान
दिखा और वे बाजार के शिकंजे में आते चले गये। जबकि सदियों से हमारी प्रथा
रही है, अपने-पराए-गैर-दुश्मन सभी को गले लगाने की। क्षमा करने की। प्रेम
बरसाने की। इंसान की तो छोड़ें इस देश में तो पशु-पक्षियों से भी नाता जोड़
लिया जाता है। उन्हें भी परिवार का सदस्य माना जाता है। खुद भूखे रह कर
उनकी सेवा की जाती है। जीवंत की बात भी ना करें यहां तो पत्थरों और पेड़ों
में भी प्राण होना मान उनकी पूजा होती रही है। सारे संसार को ज्ञान-विज्ञान
देने वाले को आज प्रेम सीखना पड़ रहा है पश्चिम से।
गोया "कल जिन्हें हिज्जे ना आते थे, आज वे हमें पढाने चले हैं। खुदा की कुदरत है।"
प्रेम
करना कोई बुरी बात नहीं है। पर ये जो व्यवसायिकता है। अंधी दौड़ है या इसी
बहाने शक्ति प्रदर्शन है उसे किसी भी हालत में ठीक नहीं कहा जा सकता।
प्रेम
सदा देने में विश्वास रखता है। त्याग में अपना वजूद खोजता है। पर आज इसका
स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। सिर्फ पाना और हर हाल में पाना ही इसका
उद्देश्य हो गया है। आज भोग की संस्कृति ने सब को पीछे छोड़ रखा है। जिस तरह
के हालात हैं, मानसिक विकृतियां हैं, दिमागी फितूर है उसके चलते युवाओं
को काफी सोच समझ कर अपने कदम उठाने चाहिए। खास कर युवतियों को। इस उम्र में
अपना हर कदम, हर निर्णय सही लगता है। पर आपसी मेल-जोल के पश्चात किसी युवक
व युवती का प्रेम परवान ना चढ सके और युवती का रिश्ता उसके घरवाले कहीं और
कर दें, इस घटना से युवक अपना आपा खो अपने पास के पत्र या फोटो वगैरह गलत
समय में गलत जगह जाहिर कर दे तो अंजाम स्वरूप कितनी जिंदगियां बर्बाद
होंगी, कल्पना की जा सकती है। ऐसा होता भी रहा है कि नाकामी में युवकों ने
गलत रास्ता अख्तियार कर अपना और दूसरे का जीवन नष्ट कर दिया हो।
किसी
की अच्छाई लेना कोई बुरी बात नहीं है। वह चाहे किसी भी देश, समाज या धर्म
से मिलती हो। ठीक है। अच्छा लगता है। दिन हंसी-खुशी में गुजरता है। मन
प्रफुल्लित रहता है तो त्यौहार जरूर मनाएं। पर एक सीमा में, बिना भावुकता
में बहे। उचित-अनुचित का ख्याल रखते हुए।
5 टिप्पणियां:
इस त्योहार में तो सब अपना अपना अर्थ ढूढ़ने लगते हैं..
जो कभी-कभी अनर्थ भी हो जाता है।
अच्छाई को लेना ही उचित है ...
अच्छाई को लेना ही उचित होता है।
"इस उम्र में अपना हर कदम, हर निर्णय सही लगता है।" बिलकुल सही. शर्मा जी कहने से लोगों को बुरा लगता है, नैतिक मूल्यों का ह्रास होता ही जा रहा है. कल हम कहाँ होंगे कहा नहीं जा सकता.
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