सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

इसे क्या कहेंगे ठगी या व्यापारिक बुद्धि?



गाडी चली जा रही थी और लोग कभी हाथ में पकडे लिफाफ़े को देख रहे थे और कभी एक दूसरे का मुंह। 
बात वर्षों पुरानी है पर आज जब विभिन्न उत्पादों को बेचने के लिए आजमाई जा रही तिकडमों को देखता हूं तो यह घटना बरबस याद आ जाती है।


कलकत्ते के सियालदह रेलवे स्टेशन से चली लोकल ट्रेन के बेलघरिया स्टेशन पर रुकने पर उसमें एक फेरीवाला संतरे बेचने के लिए चढा। अपनी टोकरी सिर से उतार नीचे रखी, कुछ देर उसने डिब्बे का जायजा लिया। पसीना पोछा। इतने में लोकल अपनी रफ्तार पकड चुकी थी। गाडी की आवाज से आवाज मिलाते हुए उसने संतरे बेचने शुरु किए, रुपये के चार। लोग अपने में मस्त थे। वहां इस तरह फेरीवालों और भिखारियों का चढना-उतरना, आना-जाना आम बात है। लोकल का स्टापेज हर तीन-चार मिनट पर आता रहता है और यात्रियों के साथ ही इनकी भी आमदरफ्त बनी रहती है। पर इनमें एक अघोषित नियम लागू रहता है कि एक ही चीज का व्यवसाय करने वाले दो जने एक साथ एक ही डिब्बे में नहीं चढेंगे। ना फेरीवाले ना ही भिखारी। 

तो अभी संतरेवाले ने अपना काम शुरु ही किया था कि अगला स्टेशन अगरपाडा आ गया और यहां से एक दूसरा फेरीवाला, जिसके पास भी संतरे ही थे, आ चढा। दोनों ने एक दूसरे को घूरा और पहले वाला बोला तुम्हें मालुन था कि मैं यहां हूं तो तुम क्यों आए दूसरी बोगी देखी होती। दूसरे की शायद बिक्री नहीं हुई थी उसने कहा कि मैं कहीं भी बेचुं तुम्हें क्या? तुम अपना काम करो मैं अपना करुंगा। तकरार शुरु हुई तो बात बढती गयी। कोई किसी की सुनने को तैयार नहीं था। उनके झगडे की तरफ़ अब अधिकांश लोग मुखातिब हो चुके थे। 

तभी पहले वाले ने कहा तो ठीक है आज मैं तुम्हें मजा चखाता हूं और इसके साथ ही उसने अपनी बोली रुपये के पांच संतरे कर दी। दूसरा भी शायद करो या मरो सोच कर आया था उसने रुपये के छह संतरे देने की पेशकश कर दी। इस पर पहलेवाले ने सात, दूसरे ने आठ कर दिए तो पहलेवाले ने रुपये के दस देने का एलान कर दिया। दूसरेवाले की शायद इससे ज्यादा की बोली बोलने की औकात नहीं थी तो वह चुपचाप अपना टोकरा लिए एक कोने में खडा हो गया। यात्रियों को उन दोनों की लडाई में अपना फायदा होता दिखा और पलक झपकते ही पहले चढे फेरीवाले की टोकरी खाली हो गयी। तब तक बैरकपुर स्टेशन आ गया और दोनों वहां उतर गये। 

वहीं से एक सज्जन डिब्बे में चढे, लोकल ट्रेनों में एक दूसरे को जानने-पहचानने वाले मिल ही जाते हैं। उनके मित्र भी वहां थे। दूआ-सलाम हुई। तभी नवागत ने इधर-उधर देख पूछा कि क्या बात है, चारों ओर संतरे ही संतरे दिख रहे हैं? तो उनके मित्र ने कुछ मिनटों पहले घटी हुई सारी बात उन्हें बताई और कहा कैसे दो हाकरों की लडाई में हम सब को सस्ते लेंबू (संतरे) मिले। आज एक ने तो बहुत घाटा सहा। नवागत मित्र पूरी बात सुन हंसने लगे और बताया कि कोई लडाई-वडाई नहीं थी नही किसी को घाटा हुआ है। उल्टे तुम लोगों ने उनकी मेहनत बचा उनका काम आसान कर दिया था। सारे यात्री भौचक्के हो गये कि यह क्या बात हुई। तब उन्होंने सारी बात बताई कि ये तीन लडके हैं। दो माल बेचते हैं और तीसरा लगेज-वैन में बाकि सामान के साथ रहता है। ये लडके महा उस्ताद हैं। आपस में मिले हुए हैं। ऐसे ही किसी डिब्बे में चढ झगडने का नाटक करते हैं और कीमत गिराना शुरु कर देते हैं।  इनको अपना सामान जिस दर पर बेचना होता है वहीं पर आकर एक चुप हो जाता है अगली बार दूसरा बेचता है तो पहला पीछे हट जाता है। ये लोग रूट बदल-बदल कर अपना काम करते रहते हैं। मुझे भी पिछले हफ्ते यह बात पता चली जब किसी काम से मैं डानकुनी लाईन पर गया था तो वहां इन्हें यह कारनामा करते देखा था। यह लोग आफिस-टाइम वाली गाडियों में ऐसा नहीं करते क्योंकि उन गाडियों में ज्यादातर रोज उसी समय यात्रा करने वाले लोग होते हैं। वैसे भी यह खेल ज्यादा दिनों तक नहीं चलने वाला। पर जब तक चल रहा है, मजा ही मजा है। 
गाडी चली जा रही थी और लोग कभी हाथ में पकडे लिफाफ़े को देख रहे थे और कभी एक दूसरे का मुंह।

बात वर्षों पुरानी है पर आज जब विभिन्न उत्पादों को बेचने के लिए आजमाई जा रही तिकडमों को देखता हूं तो यह घटना बरबस याद आ जाती है। भाग्यवश कालेज से लौटते समय मैं भी उसी डिब्बे में था और यह मजेदार नाटक मेरे सामने ही मंचित हुआ था।

 इसे क्या कहेंगे ठगी या व्यापारिक बुद्धि?

4 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

ये तिकड़म और भी नीचे गिरते जाते हैं, जितने ऊपर चर्चा होती है..

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

पापी पेट का सवाल है।

P.N. Subramanian ने कहा…

यह ठगी तो नहीं है. यह उनका बुद्धि कौशल ही है. आप खरीदने के लिए वाध्य तो नहीं हैं.

TEJPURI ने कहा…

ये तो उनकी व्यापारिक बुद्धि ही कही जायेगी। यात्रियोँ को भी अपना फायदा लगा तभी उन्होँने संतरे खरीदे। वैसे ऐसी करामात प्रत्येक विक्रेता भी दिखाते है। ब्राँडेड या अन्य कंपनियाँ अपना सामान बेचने के लिए फ्री उपहार आदि तरीके आजमाती है

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