चाहे हम लाख कहें पर सच्चाई यही है कि ब्लाग जगत एक परिवार ना हो कर एक मध्यम वर्गीय मोहल्ला है। जो तरह-तरह के स्वयंभू उस्तादों, गुरुओं, आलोचकों, छिद्रान्वेषियों का जमावड़ा होता जा रहा है। जहां एक दूसरे की टांग खीचने या नीचा दिखाने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहता। मुस्कान की नकाब तो सबके चेहरे पर है पर बहुतों का अधिकांश समय अपने नाखूनों को तीक्ष्ण करने में जाया जाता है।
एक मोहल्ले में रहने वाले, जैसे एक दूसरे की तरक्की, खुशहाली, उन्नति पर अपने दिल को कबाब बनाते रहते हैं वैसे ही इस ब्लागी मोहल्ले में होना शुरु हो गया है। शुरु तो खैर शुरु से ही था पर जरा संकोच, आंखों की शर्म जैसा कुछ बचा हुआ था जो 'बेनामी' जैसा बुर्का ओढवा देता था। अब तो खुले आम 'खुला खेल फर्रुखाबादी' की शुरुआत हो चुकी है। जिसमें दूसरे का दूध भी छाछ और अपना पानी भी शर्बत नजर आने लगा है। अपनी कैसी भी रचना से उतना ही लगाव है जितना एक काले भुजंग, आड़ी-टेड़ी, नालायक संतान से उसकी माँ को होता है। ठीक है आपका 'उत्पादन' अच्छा है आपकी नजर में पर दूसरे के को तो कमतर ना आंकें।
ज्यादातर कुढन यहां दी जाने वाली टिप्पणियों के कारण हैं। किसी के खाते में रोजाना 25-50 दर्ज हो जाती हैं तो किसी के यहां 2-3 आकर नमक छिड़क जाती हैं। यह नहीं समझ आता कि इससे पहले के चारों ओर कौन से चार चांद घूमने लग जाते हैं या उसके यहां 1000-1000 के लाट्टू 'चसने' लगते हैं और दूसरे के यहां मोमबत्ती जलती रह जाती है। अरे भाई आई, आई नहीं तो ना सही। पर उस मुए अहम का कोई क्या करे जो सीधा दिमाग में घुस उसे उस टिप्पणिधिराज को अपना दुश्मन मानने को मजबूर करने लगता है? उसकी हर अच्छी बुरी पोस्ट या बात सीधे कलेजे पर वार करने लगती है।
एक "बोन आफ कंटेंशन" और है। चिट्ठाजगत का सक्रियता क्रमांक। जिसमें उपस्थित चालिस नाम हजारों 'होनहारों' के दिल पर सांप लोटवाते रहते हैं। वे अपना काम धाम छोड़ उसी क्रमांक पर नजर गड़ा अपना रक्त-चाप बढवाते रहते हैं। उस चालिसे में नाम आ जाने से पता नहीं कौन सा साहित्य अकादमी या बुकर का ईनाम मिल जाता है जो कुछ लोगों की हवा बंद कर देता है।
अभी कुछ दिनों पहले हम सब एक और शर्मनाक दौर से गुजरे हैं जब कुछ लोगों के मिल बैठने पर ही लोगों की ऊंगलियां उठने लग गयीं थीं। क्या अपराध कर दिया गया था जो अभद्र भाषा के प्रयोग का भी खुल कर प्रदर्शन किया गया। जब अनदेखे अंजाने एक साथ मिल बैठेंगे तभी तो अपनत्व की भावना जोर पकड़ेगी। इसमें बुराई क्या थी? यह कोई राजनीतिक पार्टी का माहौल अपने पक्ष में करने की दावत तो थी नहीं कि उसकी भर्त्सना की गयी। पता नहीं क्यूं सही को भी गलत ठहराने की हमारी आदत खत्म नहीं होती।
मोहल्ले में सभी ऐसे हैं यह बात भी नहीं है। सैंकड़ों ऐसे शख्स हैं जो बिना किसी राग-द्वेष, तेरी-मेरी या अच्छे-बुरे के पचड़े में पड़े बगैर 'स्वांत सुखाय' के लिए अपना काम करे जा रहे हैं और सराहना भी पा रहे हैं। क्यों ना उनसे ही हम कुछ सीखें क्योंकि सीखने की कोई उम्र नहीं होती और ना ही उससे बड़प्पन कम होता है।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
रणछोड़भाई रबारी, One Man Army at the Desert Front
सैम मानेक शॉ अपने अंतिम दिनों में भी अपने इस ''पागी'' को भूल नहीं पाए थे। 2008 में जब वे तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भ...
-
कल रात अपने एक राजस्थानी मित्र के चिरंजीव की शादी में जाना हुआ था। बातों ही बातों में पता चला कि राजस्थानी भाषा में पति और पत्नी के लिए अलग...
-
शहद, एक हल्का पीलापन लिये हुए बादामी रंग का गाढ़ा तरल पदार्थ है। वैसे इसका रंग-रूप, इसके छत्ते के लगने वाली जगह और आस-पास के फूलों पर ज्याद...
-
आज हम एक कोहेनूर का जिक्र होते ही भावनाओं में खो जाते हैं। तख्ते ताऊस में तो वैसे सैंकड़ों हीरे जड़े हुए थे। हीरे-जवाहरात तो अपनी जगह, उस ...
-
चलती गाड़ी में अपने शरीर का कोई अंग बाहर न निकालें :) 1, ट्रेन में बैठे श्रीमान जी काफी परेशान थे। बार-बार कसमसा कर पहलू बदल रहे थे। चेहरे...
-
हनुमान जी के चिरंजीवी होने के रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए पिदुरु के आदिवासियों की हनु पुस्तिका आजकल " सेतु एशिया" नामक...
-
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा। हमारे तिरंगे के सम्मान में लिखा गया यह गीत जब भी सुनाई देता है, रोम-रोम पुल्कित हो जाता ...
-
युवक अपने बच्चे को हिंदी वर्णमाला के अक्षरों से परिचित करवा रहा था। आजकल के अंग्रेजियत के समय में यह एक दुर्लभ वार्तालाप था सो मेरा स...
-
"बिजली का तेल" यह क्या होता है ? मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि बिजली के ट्रांस्फार्मरों में जो तेल डाला जाता है वह लगातार &...
-
कहते हैं कि विधि का लेख मिटाए नहीं मिटता। कितनों ने कितनी तरह की कोशीशें की पर हुआ वही जो निर्धारित था। राजा लायस और उसकी पत्नी जोकास्टा। ...
-
अपनी एक पुरानी डायरी मे यह रोचक प्रसंग मिला, कैसा रहा बताइयेगा :- काफी पुरानी बात है। अंग्रेजों का बोलबाला सारे संसार में क्यूं है? क्य...
31 टिप्पणियां:
आपकी बातें बिल्कुल खरी खरी है, तीखी मिर्ची जैसी। अब तीखी है तो लगेगी ही। वैसे भी लगेगी तो लगेगी। बात तो सोलह आने सच है।
jahan chaar bartan hon to khadakne ka mouka to aata hi hai.....
vaise sthiti niyantran me hai
all is well !
चिट्ठाजगत में हम केवल नयी प्रविष्टियों का लिंक लेने जाते हैं. ४० ब्लोगों की फेहरिश्त बहुत ही भ्रामक है. उसपर ध्यान न दें. उसमें हमने ऐसे ब्लॉग भी देखे जिसमे महीनों से कोई नयी प्रविष्टि नहीं आई है. हर ब्लॉग पर जाना वैसे भी संभव नहीं है. जो आपकी पीठ खुजाता है उसकी पीठ तो कभी कभी खुजानी ही पड़ेगी.
गगन में तारे सरीखी ही सही
पर आपकी बातों में दम है
आप कहने में नहीं शर्माए
शर्मा जी यह क्या कम है ?
आंख जिनकी फूटी हुई हैं
और उनको दिखता भी है
यह खुशफहमी अगर है तो
गलतफहमी में क्या दम है
नहीं आए आप ब्लॉग पर
हम भी नहीं आए होंगे
पर मन में आदर है
यह क्या कम दम है
सब एक जैसे हो सकते नहीं
रचना अच्छी नहीं तो न सही
मन अनमना न रहे प्रयास करें
विश्वास करें, मान करें
यही ब्लॉग जगत का परचम है।
बेबस बेकसूर ब्लूलाइन बसें
bhai alag ji aap bilkul alag hai .aap ki baat kuch had tak sahi hai.bhai har mohalle main har tarah ke log rahate hai ,doctor,master,collector.inspector,advocate,nai, awara ,dhobi,halwai,etc.etc.
bhai jab mohalle main rahage to mohalledari to nibhani hogi baki aap samajhdar hai.likha aap ne bahut hi jwalant hai.
अभी देखने जाते हैं जी !.....कि किसकी टीप संख्या हमसे ज्यादा है ......खाल उतारए है अभी के अभी ! :-)
उअर हाँ जी अपना क्रमांक भी अभी देख कर आते हैं चिट्ठाजगत में ......फिर प्लानिंग करते है बैठकर !
@पी एन सुब्रमण्यम जी !
हमने तो बहुत दिनों से पीठ किसी की खुजाई नहीं ...चलिए हिसाब देख कर अभी जाने की कोशिश करते हैं |
:-)
इस मोहल्ले में डोंट वारी बी हैप्पी !!! वालों का भी कभी कभी जिक्र कर दिया करें !
प्राइमरी का मास्टर
(पसंद 178 की)
(सक्रियता क्रं० - 200, 44 चिट्ठों की 125 प्रविष्टियों में उपस्थिति)
हाय दईया!
अब मुहल्ल्ले वाले कुछ हमको भी सिखाएं !
इत्ते नीचे !
राम राम राम
बहुत धारदार लिखा है भईया, आवश्यक है यह लेख.
धन्यवाद.
आज तो आपके तेवर भी एकदम अलग से ही हैं, जैसे आपके ब्लॉग का नाम है ’कुछ अलग सा।’ वैसे ये मोहल्ला नहीं, पूरी दुनिया ही है, नहीं क्या?
जो बुरईया आप ने बताई है वो इन्सान की कमजोरी है और ब्लॉग लिखने वाले सभी इन्सान है तो फिर ब्लॉग जगत इन बुरइयो से कैसे अछूता रह सकता है |
हम्म!! :)
गगनजी, अभी तो ब्लाग-जगत परिवार से मोहल्ला ही हुआ है । आगे जब ये कस्बा होते हुए शहर बन जाएगा तब ये समस्या कहाँ जाएगी ? और तब ये 40 नाम और ज्यादा खटकने के दायरे में आ जाएँगे । इसलिये इस पर तो चिट्ठा-जगत को ही कुछ सोचना चाहिये. धन्यवाद. इस मुद्दे पर कलम चलाने के लिये.
हम तो सब को एक आंख से देखते हैं... यह न समझना हम काने हैं :)
मुस्कुराए बिना रहा नहीं गया
सहमत हूँ -वो सक्रियता क्रमांक भ्रामक है ....
ब्लौग जगत में ढाई साल.
पोस्टें 416
टिप्पणियां 2442
औसत टिपण्णी प्रति पोस्ट लगभग 6 से कुछ कम
चिट्ठाजगत सक्रियता क्रमांक 203
चिट्ठाजगत के हवाले 21
डोंट वरी, बी हैप्पी:)
न ऊधो का लेना न माधो का देना.
बढें चलों !
अच्छी पोस्ट !
सार्थक पोस्ट ...
विविधता सिर्फ हमारे देश की ही नहीं , ब्लॉगजगत की भी पहचान है !
गगन जी, एक-एक बात सौ प्रतिशत सही कही आपने... मेरा विचार तो यह है कि ब्लॉग जगत में हर तरह के और हर स्वभाव के लोग आते हैं (यह भी अपने आप में बड़ी कामयाबी है, क्योंकि ब्लॉग जगत बना ही इसलिए है, कि हर कोई अपनी बात रख सके), इसलिए सबसे यह अपेक्षा करना मुमकिन नज़र नहीं आता कि हर कोई किसी अचार संहिता का पालन करे. हर को कोइशिश ज़रूर करनी चाहिए, पर भी लगता तो यही है, कि यह ऐसे ही चलता आया है और ऐसे ही चलता रहेगा..
अपना-अपना विचार है.....लेकिन मोहल्ले में अच्छे लोग भी तो हैं..........ईमानदारी से अपनी बात कहते और सुनतें भी हैं........अच्छाई और बुराई साथ-साथ रहती है ये तो प्रकृति का नियम है..........टिप्पणियों की संख्या पर ध्यान ना दें बल्कि उसकी मूल भावना पर ध्यान दें.......
यदि यह हो रहा है इसमें मानव प्रवृत्ति ही जिम्मेदार है, वैसे मुझे लगता है कि जो लोग कहीं टिप्पणी ही नहीं करते, किसी बहस में भाग ही नहीं लेते… वे सबसे अधिक "हिप्पोक्रेट" हैं…
आपकी बात काफी हद तक सही है लेकिन मुझे तो अभी तक ब्लॉगजगत का साथ मिला है ..
शर्मा जी, आपने तो हमारी एक पोस्ट की भ्रूण हत्या कर डाली. जो बातें आपने इस पोस्ट में लिखी हैं.सेम-टू-सेम वही सब लिखकर हमने कल रात को ही एक पोस्ट तैयार की, सोचा कि सुबह छापेंगें...लेकिन आपकी पोस्ट पढकर अब उसे डिलीट करना पड रहा है :)
धारदार लेखन सत्य उजागर करता हुआ मगर इससे क्या होगा कोई नही सुधरेगा यहाँ।
डोंट वरी, बी हैप्पी:)
न ऊधो का लेना न माधो का देना.
badiya
वत्स जी,
क्षमा चाहता हूं पर चलिए आपने कही या मैने बात तो सामने आई। बहुत दिनों से ये सब बातें मन को व्यथित किए हुए थीं। बहुतेरा टालने की कोशिश की कि छोड़ो काहे को कुछ कहना पर मन एक बार हल्का होना चाहता था सो ऐसा हुआ।
एक बात और ना चाहते हुए भी कुछ कटु शब्दों का प्रयोग हो गया है जिसके लिए हृदय से क्षमाप्रार्थी हूं।
विचारणीय पोस्ट, शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत सही लिखा आपने !!
क्या सी आई ए भी सक्रिय है ब्लाग पर जिसने एक के विचार चुराकर दूसरे को देकर भ्रूण हत्या करवा दी....वैसे ये कथित ४० कौन है पता तो लगे....
भाई साहब कुछ विघ्नसंतोषियों का काम ही विघ्न करना है।
खरी खरी के लिए आभार
एक टिप्पणी भेजें