देशभक्ति तो नहीं पर अपनी ठसक और अहम् के कारण कई बार देसी राजाओं और नवाबों ने अंग्रेजों को उनकी औकात दिखाने में गुरेज नहीं किया था। ऐसे ही दो वाकये हाजिर हैं :-
भरतपुर के महाराजा राम सिंह एक बार इंग्लैंड गये तो प्रसिद्ध रोल्स रायस के शो रूम मे भी चले गये। अंग्रेज मैनेजर उनकी तरफ ज्यादा ध्यान ना दे अपने किसी अंग्रेज ग्राहक को ही गाड़ी दिखाता रहा। यह देख महाराजा ने अपने सेक्रेटरी से वहां कितनी कारें हैं बिकने के लिए और उनकी कीमत पता करने को कहा। मैनेजर ने उपेक्षित लहजे में बताया कि तीन कारें हैं और प्रत्येक की कीमत एक लाख रुपये है। उसे लग रहा था कि इन लोगों की हैसियत कहां होगी इतनी मंहगी कार खरीदने की। पर जब महाराजा ने उसी समय तीनों गाड़ियां खरीद लीं तो वहां खड़े सारे अंग्रेज सकपका गये। कुछ दिनों बाद जब तीनों गाड़ियां भरतपुर पहुंची तो महाराजा राम सिंह ने बड़े आराम से आज्ञा सुनाई कि तीनों गाड़ियों को कूड़ा ढोने के काम में लगा दिया जाए। उस समय रोल्स रायस एक बहुत ही प्रतिष्ठित नाम था। जब उसके निर्माता को यह बात पता चली तो उन्होंने महाराजा को मनाने की बहुत कोशिश की पर आन के धनी महाराजा नहीं माने। तब वाइसराय तक बात पहुंची उनके आग्रह पर महाराजा ने कारों को कूड़ा ढोने से तो हटवा लिया पर कहा कि हम इस कूड़ा गाड़ी में तो बैठेंगे नहीं, सो उन तीनों गाड़ियों को औनी-पौनी कीमत में बेच दिया गया।
अंग्रेजों की अक्ल ठिकाने लगाने वाले राजाओं, महाराजाओं की कमी अपने यहां कभी भी नहीं रही। हैदराबाद के निजाम अफजुलुद्दौला को अपने सामने किसी का भी ऊंचे आसन पर बैठना गवारा नहीं था। सारे दरबारी जमीन पर कालीन के ऊपर बैठा करते थे। वहां आए रेजीडेंट को यह अपनी तौहीन लगी। उसने अपने लिए कुर्सी की मांग की जिसे नवाब ने सिरे से नकार दिया। रेजीडेंट ने फिर अपनी चुस्त पतलून का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे में उससे पैर मोड़ कर नहीं बैठा जाएगा। नवाब ने तुरंत दरबार के एक हिस्से का फर्श खोद कर रेजीडेंट को पांव लटका कर बैठने की सुविधा दे उसे निरुत्तर कर दिया।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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6 टिप्पणियां:
अंग्रेजों की अक्ल ठिकाने आ गयी होगी.
एक नाम पटियाला के महाराजा का भी है। उन्होनें तो चायल की ही स्थापना कर डाली। वो भी अंग्रेज सैरगाह शिमला के पास शिमला से ज्यादा ऊंचाई पर।
बहुत सही... क्या नजारा रहा होगा...
मैंने सुना है की उन्होंने कार को बेचीं नहीं थी पर उस पर कभी सवारी नहीं की वो आज भी उनके महल के मियुजियम में परिवर्तित होने के बाद लोगों को देखने के लिए वहा रखा गया है |
बस यही ठसक ही तो थी, बाकी तो सब ऐय्याशी और अपनी प्रजा की उपेक्षा में ही लिप्त थे।
अपनी झूठी शान बचाने के लिये ऐसे कारनामें कर भी दिये तो क्या?
बिल्कुल सही है। अपनी इस ठसक या अहम को सही दिशा दे देते तो शायद इतिहास कुछ और ही होता।
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