हमारा हिमालय दुर्गम घाटियों और ऊचाईयों का अद्भुत संगम है। आश्चर्य होता है ऐसी-ऐसी जगहों को देख कर कि वहां मनुष्य रह कैसे लेता है। क्या है ऐसा उस जगह में जो आठ-आठ महीने मुख्य धरा से कट कर भी इंसान खुश है अपने उस निवास मे।
एक ऐसी ही घाटी में बसी आबादी का जिक्र है, नाम है जिसका “पांगी”। हिमाचल के खूबसूरत चंबा जिले मे आने वाली यह घाटी सैलानियों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है। राजधानी शिमला से इसकी दूरी करीब 560 किमी है। यहां जाने के लिए चंबा से “तरेला” नमक स्थान तक बस की सुविधा है। उसके बाद पैदल यात्रा करना अपने आप मे एक सुखद और रोमांचक अनुभव है। वैसे गाड़ियों द्वारा जाने के लिए एक रास्ता रोहतांग दर्रे को पार कर भी जाता है। पांगी घाटी तकरीबन 1200 किमी क्षेत्र में फैली हुए है। यह अक्तूबर से मई तक बर्फ से ढकी रहती है। उस समय यहां का तापमान -35 से -40 डिग्री तक हो जाता है। सारे काम-काज ठप्प पड़ जाते हैं। फिर भी यहां के रहने वाले अपना सामान्य जीवन बसर करते रहते हैं। इन कठिन परिस्थितियों को झेलने के लिए इनके घर भी खास तरीके से बने होते हैं। यह मिट्ती और लकड़ी के बने घर तीन मंजिला होते हैं। मुख्य द्वार निचली मंजिल में होता है जो चारों ओर से दिवारों से घिरा होता है जिससे ठंड़ी हवाएं सीधे अंदर ना आ सकें। यहीं पर इनके पालतु जानवर रहते हैं। दूसरी मंजिल में रहने तथा खाना बनाने की व्यवस्था होती है। रसोईघर काफी बड़ा बनाया जाता है जिससे सर्दियों में सारा परिवार वहां की गर्माहट में सो सके। यहां धुएं रहित चुल्हों की व्यवस्था होती है। रसोई के सामने ही एक बड़ा सा चुल्हा भी बनाया जाता है जिसमें बर्फ को पिघला कर पीने के पानी की आपूर्ति होती रह सके। कड़ाके की ठंड़ में बाहर ना जाना पड़े इसलिए शौचालय का इंतजाम भी इसी मंजिल पर होता है। यहां हर घर में जौ की शराब बनती है जो इन्हें ठंड़ से तो बचाती ही है साथ ही साथ स्वास्थ्यवर्द्धक पेय का भी काम करती है।
यहां के लोग देवी के भक्त हैं। इनकी आराध्य देवी "मिंगल माता" है, जिस पर इन्हें अटूट विश्वास है। इसी देवी के ड़र से यहां चोरी-चमारी की घटनाएं नहीं होती हैं। यहां शादी ब्याह का भी अजीबोगरीब रिवाज है। यहां लड़की को भगा कर ले जाने का चलन है। लड़का लड़की को भगा कर अपने घर ले जाता है। लड़के के घर जा कर यदि लड़की वहां का भोजन ग्रहण कर लेती है तो शादी को रजामंदी मिल जाती है पर यदि वह ऐसा नहीं करती तो बात नहीं बनती और लड़के वालों को पंचायत की तरफ से दंड़ मिलता है साथ ही साथ हर्जाना भी देना पड़ता है।
जाड़े के चरम में यहां करीब 15 से 20 फुट तक बर्फ गिर जाती है तब बाहरी दुनिया से जुड़ने का एकमात्र साधन हेलिकाप्टर ही रह जाता है। यहां का मुख्यालय “किलाड़” है। जहां सरकार ने हर सुविधा मुहैय्या करवाई हुई है। यहां का वन व लोक निर्माण विश्राम गृह बड़े-बड़े होटलों को मात करता है। जून से सितंबर तक का समय यहां रौनक मेला लगा रहता है। दूर-दूर से सैंकड़ों चरवाहे अपने-अपने रेवड़ों को यहां ला कर ड़ेरा ड़ाल देते हैं । यहां की घास इतनी पौष्टिक है कि हर चरवाहा उसे अपने पशुओं को खिलवाने के लिए लालायित रहता है। एक और आश्चर्य की बात यहां रबी और खरीफ की फसलें एक साथ उगाई जाती है। यहां की आलू की पैदावर भी बहुत मशहूर है। यहां के रहने वालों को सरकारी सुविधा प्राप्य होने का कारण यहां के बहुत सारे युवा सरकारी कार्यालयों में भी कार्य करते हैं।
पांगी घाटी में पहुंचना चाहे कितना भी मुश्किल हो यहाँ पहुंच कर पर्यटक अपनी सारी तकलीफें भूल जाता है। इस हरी-भरी स्वर्ग नुमा घाटी में प्रकृति ने अपना सौंदर्य मुक्त हाथों से लुटाया है।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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12 टिप्पणियां:
मौका मिला तो जरुर जाएंगे जी।
और मजा लेंगे पांगी घाटी का।
श्रावणी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
अच्छी पोस्ट
आभार
एक नई जानकारी देने के लिए आभार।
आप को राखी की बधाई और शुभ कामनाएं.
शर्मा जी हमारे यहां भी साल मै एक ही फ़सल होती है, ओर यहां भी रबी और खरीफ की फसलें एक साथ उगाई जाती है, बहुत सुंदर जानकारी मिली धन्यवाद
नई एवं रोचक जानकारी के लिये आभार
पांगी घाटी के बारे मे जानकारी देने के लिए आभार
बेहतरीन और अच्छी पोस्ट
शुभकामनाएं
आपकी पोस्ट ब्लाग वार्ता पर
शीर्षक देखकर लगा कि विवाह में यहां सिर्फ लडको की चलती है .. पर पूरी बात पढकर समझ में आया कि लडकियों की रजामंदी न हो .. तो लडकों को सजा भी मिलती है .. बिना सरकार के हस्तक्षेप के सिर्फ ग्रामीणों द्वारा होनेवाली इस व्यवस्था के बारे में जानकर खुशी हुई !!
गगन जी,
एक पांगी (पंगी) किन्नौर में भी तो है।
यह चम्बा वाला पांगी आज भी दुर्गम है। जब तक पर्यटक मनाली से आगे नहीं निकलेंगे, तब तक पांगी घाटी दुर्गम ही रहेगी।
रोचक जानकारी ।
जनजातियों में ऐसी कई प्रथाएं हैं जो आधुनिक समाज को अचम्भित करती हैं :)
नीरज जी,
होता क्या है कि आम आदमी को मुश्किल से कुछ दिनों की छुट्टियां मिलती हैं। उनको वह सुनी सुनाई जगहों में ही बिताना सुविधा जनक मानता है। जब कि अप्रसिद्ध जगहें ज्यादा खूबसूरत और प्रकृति के ज्यादा नजदीक होती हैं पर उनके बारे में जानकारी उतनी नहीं होती और कुछ सुविधाएं भी कम होती हैं। सो लोग उधर का रुख नहीं करते।
एक और बात आप कहीं दसियों हजार रुपये खर्च कर घूम आए और वहां के सौंदर्य का वर्णन लोगों में किया तो भी आपसे पूछा जाएगा, ये पांगी (या मंड़ी या धर्मशाला)कहां चले गये? मनाली नहीं गये या काश्मीर नहीं देखा। बेकार पैसे खर्च किए। अरे जाना ही था तो शिमला ही चले जाते। भले ही ऐसे लोगों ने अपने शहर की दहलीज ना टापी हो पर घूम कर आने वाले का मिजाज तो ढीला कर ही देते हैं।
pangi ke naam ne ek baar phir mere papa ki yado ko taza kar diya unhone vahaan kaphi lamba arsa bitaya i m very very thankful to u
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