पुरानी बात आज भी लागू होती है कि दवाई खा लो तो तीन दिन में ठीक हो जाओगे नहीं तो बिना दवा खाए 72 घंटों में ठीक हो पाओगे। वैसे भी हम अपनी दुर्दशा करने के लिए खुद ही जिम्मेवार हैं। हर चीज की अति करते हैं। वह भी इतनी कि जीवन की गति की मति बिगाड़ कर रख देते हैं
आज इंसान खुद को स्वस्थ्य और दीर्घायु बनाने के लिए कितनी जोड़-तोड़ कर रहा है। तरह-तरह की दवाईयां, तरह-तरह की पैथियां, तरह-तरह के उपकरण लगे हुए हैं आदमी को सौ साला बनाने के लिए। भरी रहती हैं पत्रिकाएं, अखबारें हेल्थ कालमों से। डाक्टर मोशायों को फुरसत नहीं है अपने परिवार के लिए चंद घंटे निकालने की। पर सच्चाई तो यह है कि जैसे-जैसे तरह-तरह के उपचार सामने आ रहे हैं वैसे-वैसे बिमारियां भी उग्र से उग्रतर होती जाती हैं। दावे भले ही कितने किए जाएं पर एक साधारण से जुकाम का सटीक इलाज तो आज तक ढूंढे नहीं मिल पाया है। वही पुरानी बात आज भी लागू होती है कि दवाई खा लो तो तीन दिन में ठीक हो जाओगे नहीं तो बिना दवा खाए 72 घंटों में ठीक हो पाओगे। वैसे भी हम अपनी दुर्दशा करने के लिए खुद ही जिम्मेवार हैं। हर चीज की अति करते हैं। वह भी इतनी कि जीवन की गति की मति बिगाड़ कर रख देते हैं।
इसके उलट जानवर बेचारे, प्रभू ने जितनी जिंदगी दी है उसी में खुश हैं। यदि हमारी संगत में पड़ कर वे अपनी जीवन शैली ना बिगाड़ें तो बहुत कम ही बीमार पड़ते हैं। इन सीधे, सरल जीवों का प्रकृति भी ध्यान रखती है। खुदा ना खास्ता यदि कोई हारी-बीमारी का शिकार हो भी जाता है तो अपना इलाज खुद ही कर जल्द स्वस्थ्य भी हो जाता है।
घरों के आस-पास रहने वाले कुत्तों को अपच जैसा कुछ होते ही वह एक पौधा खा वमन कर देते हैं जिससे गंभीर रूप से बीमार पड़ने का खतरा नहीं रहता। घाव वगैरह होने पर कुत्ते और बिल्ली प्रजाति के जानवर उन्हें चाट-चाट कर ठीक कर लेते हैं।
जंगली खरगोश घायल होने पर एक खास राल इकट्ठा कर अपने जख्मों पर लगा ठीक हो जाता है।
भालू अक्सर चीड़ या देवदार की राल खाता रहता है जिससे उसके पेट के सभी रोगाणु नष्ट हो जाते हैं।
भैंसें, गाय, बैल वगैरह जख्मी होने पर घंटों तालाब के कीचड़ में बैठ अपने घाव को ठीक कर लेते हैं।
डाल्फिने जिन्हें मनुष्य के बाद सबसे अक्लमंद माना जाता है वे अपने बीमार साथी को पानी के ऊपर रखने की कोशिश करती हैं जिससे वह ड़ूब ना जाए।
मुर्गी, बतख, हंस इत्यादि भी घाव पर मिट्टी लगा उसे ठीक करने का रास्ता अपनाते हैं।
9 टिप्पणियां:
प्रकृति के जितना ही निकट रहा जाए .. समस्याएं उतनी ही कम होती हैं !!
यह सच है की जानवर भी अपना उपचार स्वयं कर लेते है ...बहुत सटीक प्रस्तुति.....
जी हाँ , लेकिन मनुष्य इन को भी मारने पर तुला है!
हम जितना आगे भाग रहे है उअतना ही पिछडते भी जा रहे है, मेरा कुता कल घास खा रहा था, बीभी ने बतया ओर कहा कि आज यह पागल घास खा रहा था, तो मैने आप वाली बात ही उसे बताई . धन्यवाद
मानव भी स्वस्थ रह सकता बशर्ते कि....:)
प्रकृति प्रदत ज्ञान मानव भूल चूका है और जानवरों ने उसे सहेज कर रखा है
भाटिया जी,
मेरे लिए इससे बडी बात क्या हो सकती है।
yah to sach hai
arganikbhagyoday.blogspot.com
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