कुछ दिनों पहले ऐसे ही बातों-बातों मे एक सज्जन ने एक घटना का जिक्र किया जो हमारे धार्मिकता और ज्ञान पर प्रश्नचिन्ह लगा पूछती है कि कब तक तुम ढोंगियों और पाखड़िंयों के हाथ की कठपुतली बन खुद को बेवकूफ बनवाते रहोगे? सत्संग, विद्वान साधू-संतों के उपदेश, ज्ञानी जनों की वाणियां तो सदा से ही आमजनों का मार्गदर्शन करती आई हैं, पर सर्वसाधारण को भी कम से कम इतना विवेक तो होना ही चाहिए कि वह सच्चे और ढोंगी की पहचान कर सके। हमारी मानसिकता में भगवे वस्त्रों की शुचिता की ऐसी धारणा पैठ गयी है कि इसे धारण करने वाले पर आंख बंद कर विश्वास कर लिया जाता है और इसी का फायदा धूर्त मनस्थिति वाले आसानी से उठा ले जाते हैं।
उन सज्जन ने बताया कि एक शाम उनके शहर से जुड़े गांव में प्रवचन चल रहा था। उत्सुकतावश काम से घर लौटते वह भी दो मिनट के लिए वहां रुक गये। प्रवचन कर्ता महाशय अशोक वाटिका का वर्णन कर रहे थे। पहले उन्होंने यह पंक्ति पढी "स्फटिक शिला बैठी इक नारी ........" अब उस अनपढ, गेरुए वस्त्र धारी को किसने क्या सिखा या समझा कर इस धंधे मे ढकेला यह तो ऊपर वाला ही जानता होगा पर उसने जो व्याख्या की उससे अपना सिर पीट लेने की ईच्छा होती है, पूरी तन्मयता से उसने अर्थ बताया कि "फटी पुरानी साड़ी धारण किए एक औरत बैठी हुई थी........ अब यह असाक्षरता थी या धार्मिक ड़र कि एक भी भला आदमी कुछ नहीं बोला सब हाथ जोड़े जहरास्वादन लेते रहे। यह तो एक दो पंक्ति की बात है। तीन दिनी उस संत समागम में और क्या-क्या कैसे-कैसे कहा गया होगा इसका तो सिर्फ अंदाज ही लगाया जा सकता है। यह तो एक जगह की बात थी।
आज के अखबार में एक अति व्यस्त तथा स्वंय को जगत गुरु कहलवाने वाले एक "महाराज" की प्रचारक ने संत? को भगवान से भी बड़ा निरुपित कर दिया। उनके अनुसार भगवान ने खुद कहा है कि वह संत समदर्शी हैं मैं उनके पीछे-पीछे चलता हूं मैं उनका गुलाम हूं। प्रवचन करते समय भावार्थ को पीछे ढकेल दिया गया। शब्दों का अर्थ साफ अपनी मंशा जता रहा है।
कुछ समय पहले अपनी लच्छेदार भाषा और हाव-भाव से अपार ख्याति पा जाने वाले कुछ लोगों ने अपने पिच्छलगुओं से अपने को भगवान प्रचारित करवाना शुरू कर दिया था। "स्टेज" पर उनकी मुद्राएं, भाव-भंगिमाएं भी पूरी तरह से ऐसे नियोजित होती थीं कि ड़री, सहमी, तरह-तरह के माया जालों में फंसी, तुरंत किसी करामात के जरिए अपने दुखों से छुटकारा पा जाने को लालायित भूखी नंगी जनता उनकी वाक पटुता और कभी कभी हाथ की सफाई से अचंभित हो उन्हें सचमुच अवतार मानने लग गयी। पर इच्छाएं कहां खत्म होती हैं कामनाएं कहां मरती हैं और फिर इस क्षेत्र में बहुतेरे भगवान हो गये। प्रतिस्पर्द्धा बढ गयी तो फिर "शब्दार्थों" का अस्त्र संभाला गया और अपने आप को भगवान से भी बड़ा साबित करने का मैदान तैयार करना शुरु कर दिया गया। बड़ी चतुराई से अपने मतलब के हिस्से का प्रचार खुद ना कर अपने शिष्यों से शुरु करवा दिया गया जिससे पीछे लौटने की गुंजाईश भी बनी रहे। पर गीता के उस भाग को सफाई से अनदेखा कर दिया गया जिसमें उसी प्रभू ने कहा है कि "मैं इस सम्पूर्ण जगत का धारण-पोषण करने वाला हूं। पिता, माता, पितामह मैं ही हूं। देवताओं का गुरू भी मैं ही हूं। सबका स्वामी भी मैं ही हूं।"
पर भगवान के कहे पर कोई विश्वास नहीं करता। उन तथाकथित स्वयंभू भगवानों पर ज्यादा श्रद्धा है जिन्हें पता चल जाए कि अब भोजन और शीतनियंत्रित अष्टतारा सुविधाओं पर कल से नवग्रहों की साढेसाती पड़ने वाली है तो उनके अपने देवता कूच कर जाएं।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
पुलिसिया खौफ
अरे, कैसे बौड़म हो तुम ! जरा सी भी अक्ल नहीं है क्या ? रोज ही कुल्हाड़ी खोज-खोज कर अपना पैर उस पर जा मारने से बाज नहीं आते ! कभी तो दिमाग से क...
-
कल रात अपने एक राजस्थानी मित्र के चिरंजीव की शादी में जाना हुआ था। बातों ही बातों में पता चला कि राजस्थानी भाषा में पति और पत्नी के लिए अलग...
-
शहद, एक हल्का पीलापन लिये हुए बादामी रंग का गाढ़ा तरल पदार्थ है। वैसे इसका रंग-रूप, इसके छत्ते के लगने वाली जगह और आस-पास के फूलों पर ज्याद...
-
आज हम एक कोहेनूर का जिक्र होते ही भावनाओं में खो जाते हैं। तख्ते ताऊस में तो वैसे सैंकड़ों हीरे जड़े हुए थे। हीरे-जवाहरात तो अपनी जगह, उस ...
-
चलती गाड़ी में अपने शरीर का कोई अंग बाहर न निकालें :) 1, ट्रेन में बैठे श्रीमान जी काफी परेशान थे। बार-बार कसमसा कर पहलू बदल रहे थे। चेहरे...
-
हनुमान जी के चिरंजीवी होने के रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए पिदुरु के आदिवासियों की हनु पुस्तिका आजकल " सेतु एशिया" नामक...
-
युवक अपने बच्चे को हिंदी वर्णमाला के अक्षरों से परिचित करवा रहा था। आजकल के अंग्रेजियत के समय में यह एक दुर्लभ वार्तालाप था सो मेरा स...
-
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा। हमारे तिरंगे के सम्मान में लिखा गया यह गीत जब भी सुनाई देता है, रोम-रोम पुल्कित हो जाता ...
-
कहते हैं कि विधि का लेख मिटाए नहीं मिटता। कितनों ने कितनी तरह की कोशीशें की पर हुआ वही जो निर्धारित था। राजा लायस और उसकी पत्नी जोकास्टा। ...
-
"बिजली का तेल" यह क्या होता है ? मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि बिजली के ट्रांस्फार्मरों में जो तेल डाला जाता है वह लगातार ...
-
अपनी एक पुरानी डायरी मे यह रोचक प्रसंग मिला, कैसा रहा बताइयेगा :- काफी पुरानी बात है। अंग्रेजों का बोलबाला सारे संसार में क्यूं है? क्य...
7 टिप्पणियां:
अजी यह साई बाबा जो बना है मदरी कही का यह क्या करता है,लेकिन जनता पता नही क्यो उस के लिये पागल है, जब कि असली साई बाबा तो एक फ़कीर था, आज कल यह ९९% चोर है साधू के रुप मै, आप के लेख से सहमत हुं जी
अब बात समझ में आ रही है. चलिए हम भी भगुआ चोला पहन कर प्रवचन शुरू कर दें. प्रचार तंत्र के लिए ब्लॉग जगत का सहारा भी मिलेगा!
राम नाम पे लूट है लूट सके तो लूट।
हत्थे चढ जाएगा तो चांद जाएगी फ़ूट॥
राम राम
सुन्दर पोस्ट, छत्तीसगढ मीडिया क्लब में आपका स्वागत है.
उम्दा पोस्ट
मैं परेशान हूँ--बोलो, बोलो, कौन है वो--
टर्निंग पॉइंट--ब्लाग4वार्ता पर आपकी पोस्ट
उपन्यास लेखन और केश कर्तन साथ-साथ-
मिलिए एक उपन्यासकार से
इसीलिए तो धर्म कलंकित हो रहा है॥
इसी कारण धर्मभीरुता ज्यादा बढ गयी है।
एक टिप्पणी भेजें