राजधानी दिल्ली के पास तेजी से महानगर का रूप लेता हरियाणा का शहर गुड़गांव। उसके पास 15 की मी के करीब है सुंदर मनोहर सुल्तानपुर नेशनल पार्क। जहां वर्षों से देश-विदेश के पक्षी आ कर बसेरा बनाते रहे हैं। इसी पार्क के बीच है (थी) एक खूबसूरत झील जो कभी 195 एकड़ में फैली हुई थी और उसमें सदा 5-6 फिट पानी भरा रहता था। आज यह सरकारी कर्मचारियों की अदूरदर्शिता के कारण बिल्कुल सूख कर हजारों हजार मछलियों के कब्रिस्तान में बदल गयी है। यहां, वहां, जहां, तहां सब जगह मरी हुई मछलियां बिखरी पड़ी हैं। जो गर्मी के कारण सड़ कर चारों ओर दुर्गंध फैला रही हैं। नाक पर रुमाल रखे बिना दो मिनट खड़े रहना दूभर हो गया है।
अफसरों का कहना है कि इस बार जाड़े में पानी कम बरसने के कारण झील सूखी है। पर वे यह नहीं बताते कि पहले ऐसा क्यूं नहीं हुआ। जब हर साल गर्मियों में गुड़गांव नहर से इसमें पानी की आपूर्ती की जाती रही है तो इस बार ऐसा क्यूं नहीं किया गया?
सच्चाई तो यह है कि इस झील में पाई जाने वाली "मागुर" मछली, जिसे काली अफ्रिकी मछली के नाम से भी जाना जाता है, को खत्म करने के लिए इसमें जानबूझ कर पानी नहीं छोड़ा गया। तर्क है कि मागुर बाकि छोटी-छोटी मछलियों को खा जाती थी जिससे बाहर से आने वाले पक्षियों को उनकी खुराक नहीं मिल पाती थी। पर कोई उनसे पूछेगा कि मागुर के साथ और हजारों मछलियों, मेढकों, घोंघो तथा और पानी में रहने वाले सैंकड़ों जीवों की क्यूं अकारण हत्या की गयी। इतना ही नहीं झील पर आश्रित बहुतेरे चौपाए भी मौत की कगार पर पहुंच गये हैं। और फिर मागुर को पालते वक्त ये "बुद्धिमान" लोग कहां थे? क्या इन्हें इस मछली के स्वभाव का पता नहीं था?
अब सुनिये इस जबरदस्त मानवी भूल का सबसे हौलनाक मंजर जिसे कहते बताते रौंगटे खड़े हो जाते हैं।
पूरे नेशनल पार्क में जगह-जगह मरी मछलियां बिखरी पड़ी हैं। जो धूप में सूख-सूख कर पत्तों जैसी हो गयी हैं। जिनको वहां घूमती गायों ने चारा समझ कर खाना शुरु कर दिया है।
मेरे पास फोटो नहीं है पर दिल्ली के टाइम्स आफ इंडिया पेपर में मछली खाती गाय का चित्र छपा है।
क्या उल्टे-सीधे निर्णय लेने वाले सफेदपोशों की आत्मा उन्हें धिक्कारेगी कभी ?
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
ठेका, चाय की दुकान का
यह शै ऐसी है कि इसकी दुकान का नाम दूसरी आम दुकानों की तरह तो रखा नहीं जा सकता, इसलिए बड़े-बड़े अक्षरों में ठेका देसी या अंग्रेजी शराब लिख उसक...
-
कल रात अपने एक राजस्थानी मित्र के चिरंजीव की शादी में जाना हुआ था। बातों ही बातों में पता चला कि राजस्थानी भाषा में पति और पत्नी के लिए अलग...
-
शहद, एक हल्का पीलापन लिये हुए बादामी रंग का गाढ़ा तरल पदार्थ है। वैसे इसका रंग-रूप, इसके छत्ते के लगने वाली जगह और आस-पास के फूलों पर ज्याद...
-
आज हम एक कोहेनूर का जिक्र होते ही भावनाओं में खो जाते हैं। तख्ते ताऊस में तो वैसे सैंकड़ों हीरे जड़े हुए थे। हीरे-जवाहरात तो अपनी जगह, उस ...
-
चलती गाड़ी में अपने शरीर का कोई अंग बाहर न निकालें :) 1, ट्रेन में बैठे श्रीमान जी काफी परेशान थे। बार-बार कसमसा कर पहलू बदल रहे थे। चेहरे...
-
हनुमान जी के चिरंजीवी होने के रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए पिदुरु के आदिवासियों की हनु पुस्तिका आजकल " सेतु एशिया" नामक...
-
युवक अपने बच्चे को हिंदी वर्णमाला के अक्षरों से परिचित करवा रहा था। आजकल के अंग्रेजियत के समय में यह एक दुर्लभ वार्तालाप था सो मेरा स...
-
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा। हमारे तिरंगे के सम्मान में लिखा गया यह गीत जब भी सुनाई देता है, रोम-रोम पुल्कित हो जाता ...
-
"बिजली का तेल" यह क्या होता है ? मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि बिजली के ट्रांस्फार्मरों में जो तेल डाला जाता है वह लगातार ...
-
कहते हैं कि विधि का लेख मिटाए नहीं मिटता। कितनों ने कितनी तरह की कोशीशें की पर हुआ वही जो निर्धारित था। राजा लायस और उसकी पत्नी जोकास्टा। ...
-
अपनी एक पुरानी डायरी मे यह रोचक प्रसंग मिला, कैसा रहा बताइयेगा :- काफी पुरानी बात है। अंग्रेजों का बोलबाला सारे संसार में क्यूं है? क्य...
9 टिप्पणियां:
कुप्रबंधन का सबसे घृणित और शर्मनाक रूप ! जिम्मेदार लोगों को सूली पर चढ़ाया जाना चाहिए ...गायें कैल्शियम और फास्फोरस की कमी पूरी कर रही हैं ...
अब क्या कहे?.....
अब क्या कहे?..... :(:(
धिक्कार... मिश्र जी सही कह रहे हैं सूली पर चढ़ाना चाहिये, लेकिन चढ़ायेगा कौन.
यह अदुर्दर्शिता का परिणाम है ...
शर्मनाक!
क्या कहे
कहने से कम नहीं चलेगा !
banaami badhati dekh adhikaariyo ne park kaa gate hii band karawaa diyaa hai. khud sudharane ke bajaay.
I have seen this Abode which turns in to Fish Graveyard.
एक टिप्पणी भेजें