मंगलवार, 6 जुलाई 2010

यहाँ गाय मछली खाती है

राजधानी दिल्ली के पास तेजी से महानगर का रूप लेता हरियाणा का शहर गुड़गांव। उसके पास 15 की मी के करीब है सुंदर मनोहर सुल्तानपुर नेशनल पार्क। जहां वर्षों से देश-विदेश के पक्षी आ कर बसेरा बनाते रहे हैं। इसी पार्क के बीच है (थी) एक खूबसूरत झील जो कभी 195 एकड़ में फैली हुई थी और उसमें सदा 5-6 फिट पानी भरा रहता था। आज यह सरकारी कर्मचारियों की अदूरदर्शिता के कारण बिल्कुल सूख कर हजारों हजार मछलियों के कब्रिस्तान में बदल गयी है। यहां, वहां, जहां, तहां सब जगह मरी हुई मछलियां बिखरी पड़ी हैं। जो गर्मी के कारण सड़ कर चारों ओर दुर्गंध फैला रही हैं। नाक पर रुमाल रखे बिना दो मिनट खड़े रहना दूभर हो गया है।

अफसरों का कहना है कि इस बार जाड़े में पानी कम बरसने के कारण झील सूखी है। पर वे यह नहीं बताते कि पहले ऐसा क्यूं नहीं हुआ। जब हर साल गर्मियों में गुड़गांव नहर से इसमें पानी की आपूर्ती की जाती रही है तो इस बार ऐसा क्यूं नहीं किया गया?
सच्चाई तो यह है कि इस झील में पाई जाने वाली "मागुर" मछली, जिसे काली अफ्रिकी मछली के नाम से भी जाना जाता है, को खत्म करने के लिए इसमें जानबूझ कर पानी नहीं छोड़ा गया। तर्क है कि मागुर बाकि छोटी-छोटी मछलियों को खा जाती थी जिससे बाहर से आने वाले पक्षियों को उनकी खुराक नहीं मिल पाती थी। पर कोई उनसे पूछेगा कि मागुर के साथ और हजारों मछलियों, मेढकों, घोंघो तथा और पानी में रहने वाले सैंकड़ों जीवों की क्यूं अकारण हत्या की गयी। इतना ही नहीं झील पर आश्रित बहुतेरे चौपाए भी मौत की कगार पर पहुंच गये हैं। और फिर मागुर को पालते वक्त ये "बुद्धिमान" लोग कहां थे? क्या इन्हें इस मछली के स्वभाव का पता नहीं था?

अब सुनिये इस जबरदस्त मानवी भूल का सबसे हौलनाक मंजर जिसे कहते बताते रौंगटे खड़े हो जाते हैं।
पूरे नेशनल पार्क में जगह-जगह मरी मछलियां बिखरी पड़ी हैं। जो धूप में सूख-सूख कर पत्तों जैसी हो गयी हैं। जिनको वहां घूमती गायों ने चारा समझ कर खाना शुरु कर दिया है।
मेरे पास फोटो नहीं है पर दिल्ली के टाइम्स आफ इंडिया पेपर में मछली खाती गाय का चित्र छपा है।

क्या उल्टे-सीधे निर्णय लेने वाले सफेदपोशों की आत्मा उन्हें धिक्कारेगी कभी ?

9 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

कुप्रबंधन का सबसे घृणित और शर्मनाक रूप ! जिम्मेदार लोगों को सूली पर चढ़ाया जाना चाहिए ...गायें कैल्शियम और फास्फोरस की कमी पूरी कर रही हैं ...

राज भाटिय़ा ने कहा…

अब क्या कहे?.....

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

अब क्या कहे?..... :(:(

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

धिक्कार... मिश्र जी सही कह रहे हैं सूली पर चढ़ाना चाहिये, लेकिन चढ़ायेगा कौन.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

यह अदुर्दर्शिता का परिणाम है ...

P.N. Subramanian ने कहा…

शर्मनाक!

The Straight path ने कहा…

क्या कहे
कहने से कम नहीं चलेगा !

Chetan ने कहा…

banaami badhati dekh adhikaariyo ne park kaa gate hii band karawaa diyaa hai. khud sudharane ke bajaay.

Kadambaree Sharma ने कहा…

I have seen this Abode which turns in to Fish Graveyard.

विशिष्ट पोस्ट

ठेका, चाय की दुकान का

यह शै ऐसी है कि इसकी दुकान का नाम दूसरी आम दुकानों की तरह तो रखा नहीं जा सकता, इसलिए बड़े-बड़े अक्षरों में  ठेका देसी या अंग्रेजी शराब लिख उसक...