शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

कुल्लू-मनाली जाएं तो "मलाणा" का चक्कर भी लगाएं

हमारा देश विचित्रताओं से भरा पड़ा है। अनोखे लोग, अनोखे रीति-रिवाज, अनोखे स्थल। ऐसी ही एक अनोखी जगह है, हिमाचल की पार्वती घाटी या रूपी घाटी मे 2770मी की ऊंचाई पर बसा गावं "मलाणा"।

विद्वानों के अनुसार यह विश्व का लोकतांत्रिक प्रणाली से चलने वाला सबसे पुराना गावं है। यहां पहुंचने के दो रास्ते हैं, पहला कुल्लू जिले के नग्गर इलाके का एक दुर्गम चढ़ाई और तीक्ष्ण उतराई वाला, जिसका बरसातों मे बहुत बुरा हाल हो जाता है, पर्यटकों के लिये तो खास कर ना जाने लायक। दूसरा अपेक्षाकृत सरल, जो जरी नामक स्थान से होकर जाता है। यहां मलाणा हाइडल प्रोजेक्ट बन जाने से जरी से बराज तक सुंदर सडक बन गयी है, जिससे गाडियां बराज तक पहुंचने लग गयीं हैं। यहां से पार्वती नदी के साथ-साथ करीब 2किमी चलने के बाद शुरू होती है 3किमी की सीधी चढ़ाई, पगडंडी के रूप मे। घने जंगल का सुरम्य माहौल थकान महसूस नहीं होने देता पर रास्ता बेहद बीहड तथा दुर्गम है। कहीं-कहीं तो पगडंडी सिर्फ़ दो फ़ुट की रह जाती है सो बहुत संभल के चलना पड़ता है। पहाडों पर रहने वालों के लिए तो ऐसी चढ़ाईयां आम बात है पर मैदानों से जाने वालों को तीखी चढ़ाई और विरल हवा का सामना करते हुए मलाणा गांव तक पहुंचने में चारेक घंटे लग जाते हैं।

हिमाचल के सुरम्य पर दुर्गम पहाड़ों की उचाईयों पर बसे इस गांव, जिसका सर्दियों में देश के बाकि हिस्सों से नाता कटा रहता है, के ऊपर और कोई आबादी नहीं है। आत्म केन्द्रित से यहां के लोगों के अपने रीति रिवाज हैं, जिनका पूरी निष्ठा तथा कड़ाई से पालन किया जाता है, और इसका श्रेय जाता है इनके ग्राम देवता जमलू को जिसके प्रति इनकी श्रद्धा, खौफ़ की हद छूती सी लगती है। अपने देवता के सिवा ये लोग और किसी देवी-देवता को नहीं मानते। यहां का सबसे बडा त्योहार फागली है जो सावन के महिने मे चार दिनों के लिये मनाया जाता है। इन्ही दिनों इनके देवता की सवारी भी निकलती है, तथा साथ मे साल मे एक बार बादशाह अकबर की स्वर्ण प्रतिमा की पूजा भी की जाती है। कहते हैं एक बार अकबर ने अपनी सत्ता मनवाने के लिये जमलू देवता की परीक्षा लेनी चाही थी तो उसने अनहोनी करते हुए दिल्ली मे बर्फ़ गिरवा दी थी तो बादशाह ने कर माफी के साथ-साथ अपनी सोने की मूर्ती भिजवाई थी। इस मे चाहे कुछ भी अतिश्योक्ति हो पर लगता है उस समय गांव का मुखिया जमलू रहा होगा जिसने समय के साथ-साथ देवता का स्थान व सम्मान पा लिया होगा। सारे कार्य उसी को साक्षी मान कर होते हैं। शादी-ब्याह भी यहां, मामा व चाचा के रिश्तों को छोड, आपस मे ही किए जाते हैं।

कुछ साल पहले तक यहां किसी बाहरी व्यक्ती का आना लगभग प्रतिबंधित था। चमडे की बनी बाहर की कोई भी वस्तु को गावं मे लाना सख्त मना था। पर अब कुछ-कुछ जागरण हो रहा है। लोगों की आवाजाही बढ़ी है। पर अभी भी बाहर वालों को दोयम नजर से ही देखा जाता है। इनके मंदिर के प्रांगण में किसी भी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित है।

यहां करीब डेढ सौ घर हैं तथा कुल आबादी करीब पांच-छह सौ के लगभग है जिसे चार भागों मे बांटा गया है। यहां के अपने रीति-रिवाज हैं जिनका पूरी निष्ठा तथा सख्ती के साथ पालन होता है। अपने किसी भी विवाद को निबटाने के लिये यहां दो सदन हैं, ऊपरी तथा निचला। यही सदन यहां के हर विवाद का फ़ैसला करते हैं। यहां के निवासियों ने कोर्ट कचहरी का नाम भी नहीं सुना है।
वैसे तो यहां आठवीं तक स्कूल,डाक खाना तथा डिस्पेंसरी भी है पर साक्षरता की दर नहीं के बराबर होने के कारण इलाज वगैरह मे झाड-फ़ूंक का ही सहारा लिया जाता है। भेड पालन यहां का मुख्य कार्य है। वैसे नाम मात्र को चावल, गेहूं, मक्का इत्यादि की फसलें भी उगाई जाती हैं पर आमदनी का मुख्य जरिया है भांग की खेती। यहां की भांग जिसको मलाणा-क्रीम के नाम से दुनिया भर मे जाना जाता है, उससे बहुत परिष्कृत तथा उम्दा दरजे की हिरोइन बनाई जाती है तथा विदेश मे इसकी मांग हद से ज्यादा होने के कारण तमाम निषेद्धों व रुकावटों के बावजूद यह बदस्तूर देश के बाहर कैसे जाती है वह अलग विषय है।

9 टिप्‍पणियां:

K.P.Chauhan ने कहा…

kullu manaali or malaanaa ki jaankaari dene hetu bahut bahut dhanywaad

K.P.Chauhan ने कहा…

kullu manaali or malaanaa ki jaankaari dene hetu bahut bahut dhanywaad

डॉ टी एस दराल ने कहा…

बढ़िया जानकारी दी है । बहुत पहले ट्रेकिंग पर जाने के लिए इसका नाम सुना था ।
लेकिन बाहर वालों का स्वागत न होना थोडा अखरता है ।
कुछ फोटो भी दे देते तो और भी बहुत मज़ा आता ।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

जायेंगे तो अवश्य मलाणा भी जायेंगे.

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

मैं अभी कुल्लू से घूमकर आया हूं\ मलाणा जाने की योजना तो थी और जरी भी पहुंच गया । लेकिन ऐन टाइम पर मूड धोखा दे गया और मणीकर्ण की ओर मुड गया।

अन्तर सोहिल ने कहा…

जायेंगें जी कभी
जानकारी भरी पोस्ट के लिये धन्यवाद

प्रणाम

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने लेकिन यह जमलू तो बहुत पहुच हुआ निकला, फ़िर अकबर बादशाह की पुजा, दिल्ली मै बर्फ़ पता नही केसी केसी मन घडनत कहानियां बन जाती है

बेनामी ने कहा…

bhut badiya jankari di h, kch photo mil jate to bhut accha rhta

Unknown ने कहा…

bhut badiya jankari di h, kch photo mil jate to bhut accha rhta

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