शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

:) हसाईयाँ (:

* बाज़ार पहुंचने पर एक मित्र ने दूसरे से कहा, यार सामान लेना था पर पर्स घर ही भूल आया हूं। अब तुम ही कुछ मदद करो। अरे, वह मित्र ही क्या जो समय पर काम ना आए। यह लो दस रुपये घर जा कर अपना पर्स ले आओ।

* संता हांफते-हांफते घर पहुंचा और पत्नी से बोला, भागवान, आज मैने पांच रुपये बचा लिये।
वो कैसे? बीवी ने पूछा।
मैं बस स्टाप पर खड़ा था, बस आयी पर रुकी नहीं। मैं उसके पीछे दौड़ते-दौड़ते घर आ गया।
रहे ना वही के वही। अरे किसी टैक्सी के पीछे दौड़ते तो पचास रुपये ना बच जाते। बीवी ने उलाहना दिया।

* परदेसीजी की की पत्नी बहुत तेज स्वभाव की थी। रोज घर में महाभारत होता था। एक दिन उसका देहांत हो गया। परदेसीजी उसका क्रिया-करम कर लौट रहे थे, तभी तेज हवाएं चलने लगीं, काले-काले बादल घिर आए, बिजली कौंधने लगी, मेघ गरजने लगे।
लगता है पहुंच गयी। परदेसीजी ने ऊपर देखते हुए कहा।

* बास के साथ पहली बार सेक्रेटरी बाहर टूर पर गयी थी। होटल में एक ही कमरा मिल पाया था। सोते समय बास ने कहा, तुम्हें नहीं लगता कि हमारा रिश्ता आत्मिय होना चाहिये। एकदम परिवार की तरह?
जी, बिल्कुल। कुछ और ही सोच सेक्रेटरी ने तुरंत जवाब दिया।
तो ठीक है, उठ कर खिड़की बंद कर दो। ठंड़ी हवा आ रही है।
दूसरी तरफ करवट बदलते हुए बॉस ने कहा।

8 टिप्‍पणियां:

Amitraghat ने कहा…

"हा..हा........हा..हा, मज़ा आया गगनजी.."
प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com

Udan Tashtari ने कहा…

हा हा! परदेसी की बीबी पहुँच गई.. :)

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

वाह जबरदस्त,

रामराम.

कडुवासच ने कहा…

....बहुत सुन्दर... हा.. हा... हा...!!!

संगीता पुरी ने कहा…

हा हा हा हा !!

Himanshu Pandey ने कहा…

बेहद खूबसूरत । आभार ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

यह भी खूब रही!
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!

राज भाटिय़ा ने कहा…

मजेदार जी,ठंडी हबा ओर खिडकी :)

विशिष्ट पोस्ट

सन्नाटे का शोर

स न्नाटा अक्सर भयभीत करता है ! पर कभी-कभी वही खामोशी हमें खुद को समझने-परखने का मौका भी देती है ! देखा जाए तो एक तरह से इसका शोर हमारी आत्मा...