वातानुकूलित कमरे में एक बोर्ड पर एक लकीर होती है, जिसके आगे एक तीर बना होता है। उसी को ऊपर नीचे कर प्रतिशत और आंकड़ों में सब पता चल जाता है कि कितनी मंहगाई कम हुई या किसी की आमदनी कितनी बढी। समझे?
आज ठंड़ कुछ ज्यादा ही थी। चाय की दुकान पर गुरु शिष्य मिल गये। सुविधा के लिये उनका नाम ज्ञानी और अज्ञानी रख लेते हैं। आदत के अनुसार जन्मजात अज्ञानी शिष्य फिर शुरु हो गया।
अज्ञानी : गुरु, ये सरकार समिति, कमेटी वगैरह क्यूं बनाती है? सरकार में तो ऐसे ही काम करने वालों की भरमार होती है।
ज्ञानी : अरे पगले, कभी किसी मामले को वर्षों लटकाने के लिये, कभी विवादास्पद मुद्दे से अपना सर बचाने के लिये और कभी जनता का ध्यान बंटाने के लिये यह सब करना पड़ता है।
अज्ञानी : गुरु पर इसके लिये ज्यादातर लोग अवकाश प्राप्त ही क्यों चुने जाते हैं?
ज्ञानी : मुर्खता की बातें ही करेगा जब करेगा। सब नहीं पर बहुतों को सरकार को भी उपकृत करना पड़ता है। जिंदगी भर वफादार रह कर भी जो ढंग का कुछ नही पा सका उसे ऐसे काम दे दिये जाते हैं। लोगों की भी धारणा रहती है कि सारी उम्र सरकारी काम में रहने से तजुर्बेदार तो होगा ही। अब यह मत कहना कि सरकारी काम तो..............
अज्ञानी : पर गुरु अबकी तो पेट्रोल, गैस दाम बढाऊ समिति के अध्यक्ष महोदय ने कहा है कि देशवासियों की आय बढ गयी है, तो मेरी तो वहीं की वहीं है। यह कैसी बात हुई कि मेरी आय बढी और मुझे ही पता नहीं चला।
ज्ञानी : अरे मुर्ख, यह समझना इतना आसान नहीं है। देख एक वातानुकुलित कमरा होता है। उसमें एक बोर्ड़ लगा रहता है। उस पर एक लकीर बनाते हैं, जिसके आगे एक तीर बना होता है। उसे ही ऊपर-नीचे कर यह लोग पता लगा लेते हैं कि, कितनी आमदनी बढी, कितनी मंहगाई कम हो गयी, स्वास्थ्य सेवाओं में कितनी बढोत्तरी हुई, मृत्यु दर में कितनी कमी आयी, बेरोजगारी कम हो गयी, शिक्षित लोगों का ईजाफा हो गया, भ्रष्टाचार कम हो गया, ईमानदारी बढ गयी, अपराध कम हो गये, सुख-शांति बढ गयी, आदि-आदि। यह सब बैठे-बैठे यह लकीर प्रतिशत और आंकड़ों में बता देती है।
अज्ञानी : पर गुरु उनकी मान भी लें। मेरी ना भी सही औरों की तो आमदनी बढी होगी, पर उसके साथ-साथ मंहगाई भी तो पिछले वर्षों की तुलना में आसमान छू रही है। अब 100 रुपये गैस और करीब 300-400 रुपये पेट्रोल के मासिक खर्च के अलावा जो ट्रकों की ढूलाई से कीमतें बढेंगी उसकी तुलना में कितनी आय बढी होगी आम आदमी की। कोई दुगनी या तिगुनी तो बढ नही गयी होगी?
ज्ञानी : नहीं!! यानि कि!!! अब!!!! अरे तुम्हारा भी तो कोई फर्ज बनता है देश के प्रति। यह मत सोचो कि देश ने तुम्हें क्या दिया, यह देखो कि तुम देश को क्या दे रहे हो।
अज्ञानी : गुरु मुंह मत खुलवाओ। पुरानी बातें मैं नहीं जानता, पर अब तो यह हाल है कि लोगों की जान जा रही है और बदले में जो मिल रहा है उसे मैं भी जानता हूं, तुम भी जानते हो और देश का हर भुग्तभोगी जानता है।
चलता हूं, नहीं तो एक दिन की पगार कट जायेगी, मंदी के नाम पर।
राम, राम।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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6 टिप्पणियां:
गुरू-चेला सम्वाद सार्थक रहा!
ये अज्ञानी तो सिर्फ नाम से अज्ञानी है वर्ना वो तो ज्ञानी से अधिक ज्ञानवान दिखाई पड रहा है :)
आज ही दो करोड़ रुपये बरामद हुये हैं एक आईए-एस के घर से. तो फिर आय में वृद्धि हुई या नहीं.
bahut satik
बहुत सटीक दिया.
ये दिया सिक्सर घुमाके.
रामराम.
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