चिकने घड़े पर पानी ठहर भी जाये, किसी ढीठ को उसकी करतूतों का आईना दिखाने पर शर्म आ भी जाये, कुत्ते की पूंछ सीधी हो भी जाय पर हमारे देश में पायी जाने वाली एक खास प्रजाती की फितरत नहीं बदल सकती, चाहे साक्षात भगवान भी आ कर जोर लगा लें। इनके कारनामों पर टनों कागज़ काला हो चुका है पर मजाल है किसी के कान पर जूं भी रेंगी हो। अब तो इनके बारे में लिखना या कुछ बताना भी मुर्खता लगती है। फिर भी कभी-कभी कुछ ऐसी खबरें आती हैं कि लगता है कि उसे ज्यादा से ज्यादा लोग जाने और शायद धौंकनी की फूंक से लोहा भस्म हो ही जाये।
आज एक ऐसे जनता के सेवक की खबर है जो गरीबों की समझी जाने वाली पार्टी का सदस्य बन भारत के भाग्यविधाताओं की जमात में जा बैठा है। यह पार्टी अपने आप को सर्वहारा लोगों की तथा जमीन से जुड़े होने का दम भरती है। अभी कुछ दिनों पहले जब सरकार ने खर्च कम करने की बात की थी तो इस पार्टी की अगुआ ने व्यंग से कहा था कि हमें तो कहने की जरूरत नहीं है, हम तो सदा सादगी में विश्वास रखते हैं। उन के रहन-सहन से लगता भी है कि वह जैसा कहती हैं ,करती भी होंगी। पर कल ही उनके एक साथी को, जो केन्द्र में मंत्री भी बन गये हैं, एक नोटिस जारी किया गया है, पांच सितारा होटल का कमरा खाली करने के लिये, जहां वह पिछले छह माह से कुंड़ली मारे बैठे हैं। ये महाशय पहली बार सांसद बने हैं। इन्हें बंगला भी अलाट हो चुका है पर उसकी सजावट का काम पूरा नहीं हो पाने के कारण ये वहां रह नहीं पा रहे थे।
राजधानी में हर राज्य का अपना आलीशान ‘गेस्ट हाऊस’ होता है। जो किसी भी अच्छे होटल से किसी भी नजर से कम नहीं होता। वहां भी तो रहा जा सकता था। वहां रहने से इनकी इज्जत कम तो नहीं हो जाती उल्टे अपने राज्य में हो सकता है लोगों का विश्वास और बढ जाता। पर माले मुफ्त दिले बेरहम।
अब इन महाशय का होटल का बिल है “सिर्फ 36 करोड़” रुपये का। जिसे चुकाने का आदेश इनकी मुखिया ने इन्हें दिया है। इनका कहना है कि मुझे तो अभी तक कोई बिल मिला ही नहीं है। अब सोचने की बात है कि इतना छोटा-मोटा बिल क्या ये अपनी जेब से चुकायेंगे। और यदि चुकाते हैं तो वह पैसा कहां से आयेगा? क्या इन्होंने अपनी सम्पति का खुलासा किया है?
दूसरी बात अगला छह माह तक ऐश करता रहा तब इनकी मुखिया की नज़र इन पर क्यों नहीं पड़ी?
अब नाम में क्या रखा है।वैसे जिसने यह बात कही है वह भी इस उक्ति के बाद अपना नाम लिखने का लोभ छोड़ ना सका था। :)
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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6 टिप्पणियां:
फर्क तो पड़ता है भई
इसी बहाने ३६ करोण पर ही रूक गया
नहीं तो न जाने कितना और उदा जाता....
:-(
यह विडम्बना ही है कि आज भारत के प्रजातंत्र का नेता राजतंत्र के राजकुमार से भी बडा राजा है !!
आप ने सच कहा इस कमीने नेता के बारे, बाप चाहे लोगो की जेब काटता हो, अब इस से जनता ही मिल कर पुछे....
यह खबर कल एक ऐसे अखबार से ली थी जो दम भरता है अपने सबसे बड़े, सबसे तेज और कम समय में सबसे ज्यादा ग्राहकों तक पहुंचने का।
उसी अखबार के सहयोगी पत्र ने मंत्री द्वारा खर्च की गयी रकम को 36 करोड़ की जगह आज 37 लाख बताया है। और लिखा है कि चूंकि वह पहली बार सांसद बने थे, और किसी के गुमराह करने पर ही वह पंच तारा होटल में ठहरे थे।
क्या मिलिए ऐसे लोगों से
जिनकी बसरत छिपी रहे!
जय हो!!!
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