सृष्टि के साथ-साथ ही असुरक्षा की भावना भी अस्तित्व में आ गयी होगी। इसीलिये अपने को सुरक्षित रखने के लिये दूसरों के भेद जानने की प्रवृति भी अपने पैर जमाने लग गयी होगी और इसी से इजाद हुई होगी गुप्तचरी की कला।
देखा जाय तो देवताओं की भलाई के लिये सदा तत्पर रहने वाले नारद जी को सबसे पहला गुप्तचर माना जा सकता है। जिन्होंने एक तरह से खुद बदनामी मोल लेकर भी सुरों का भला करना नहीं छोड़ा।
रामायण-महाभारत में भी गुप्तचरों की वृहद जानकारी मिलती है। रावण की कूटनीति में गुप्तचरी को खासा स्थान प्राप्त था। रामायण में उसके विभिन्न गुप्तचरों के नामों का जगह-जगह उल्लेख मिलता है। शुक, सारण, प्रभाष, सरभ तथा शार्दुल उसके प्रमुख गुप्तचर थे। शुक और सारण को ही युद्ध के समय वानर भेष में रामसेना का भेद लेते पकड़ा गया था। उधर विभीषण के लंका के बाहर रहने के बावजूद उनके गुप्तचर लंका में सक्रिय थे जो समय-समय पर उन्हें रावण की गतिविधियों की जानकारी देते रहते थे। श्री राम के लंका विजय के बाद अयोध्या आने पर उनके गुप्तचर भद्रमुख ने ही उन्हें धोबी के कथन की जानकारी दी थी।
महाभारत में तो पग-पग पर गुप्तचारी के कारनामों का उल्लेख मिलता है। धृतराष्ट्र के प्रमुख गुप्तचर का नाम कणिक था। जिससे उसे सारे राज्य की खबरें मिला करती थीं। पांड़वों के अज्ञातवास के दौरान सैंकड़ों गुप्तचर उनका पता लगाने के लिये दुर्योधन ने छोड़ रखे थे। यह गुप्तचरों का ही काम था जो पांडव लाक्षागृह से सकुशल निकल पाये थे। कौरवों को गुप्तचरों द्वारा ही जयद्रथ वध की अर्जुन की प्रतिज्ञा का पता चला था।
महाभारत में शत्रू की सूचना प्राप्त करने के अनेकों उपाय बताये गये हैं। इस काम के लिये साधू, भिक्षुक, नटों, नर्तकियों और अंधे लोगों को उपयुक्त बताया गया है। पर साथ ही साथ संकट काल में इन्हें देश से निर्वासित करने की भी सलाह दी गयी है।
गुप्तचरों के काम की कोई सीमा नहीं होती। जहां संकट के समय इन्हें हर छोटी-बड़ी सूचना अपने अधिकारी को देनी होती है वहीं शांतिकाल में भी राज्य की आंतरिक व्यवस्था बनाये रखने की जिम्मेदारी भी इनकी होती है।
चाणक्य ने तो इस विधा को नयी ऊंचाईयों तक पहुंचा दिया था। जिसके फलस्वरूप ही चंद्रगुप्त नि:शंक हो अपना राज कर सके।
आज हालत यह है की इंसान तो इंसान जानवर तथा मशीनो का भी उपयोग जासूसी में होने लग गया है। जिसमें शत्रू मित्र का भेद भी ख़त्म हो चुका है। देशों की बात तो दूर अब तो व्यक्तिगत जासूसी आम हो गयी है। यहाँ तक की शादी के पहले भावी वर तथा वधू के आचरण को जानने के लिए लोग गुप्तचरों की सेवा बेहिचक लेने लगे हैं।
देखा जाय तो देवताओं की भलाई के लिये सदा तत्पर रहने वाले नारद जी को सबसे पहला गुप्तचर माना जा सकता है। जिन्होंने एक तरह से खुद बदनामी मोल लेकर भी सुरों का भला करना नहीं छोड़ा।
रामायण-महाभारत में भी गुप्तचरों की वृहद जानकारी मिलती है। रावण की कूटनीति में गुप्तचरी को खासा स्थान प्राप्त था। रामायण में उसके विभिन्न गुप्तचरों के नामों का जगह-जगह उल्लेख मिलता है। शुक, सारण, प्रभाष, सरभ तथा शार्दुल उसके प्रमुख गुप्तचर थे। शुक और सारण को ही युद्ध के समय वानर भेष में रामसेना का भेद लेते पकड़ा गया था। उधर विभीषण के लंका के बाहर रहने के बावजूद उनके गुप्तचर लंका में सक्रिय थे जो समय-समय पर उन्हें रावण की गतिविधियों की जानकारी देते रहते थे। श्री राम के लंका विजय के बाद अयोध्या आने पर उनके गुप्तचर भद्रमुख ने ही उन्हें धोबी के कथन की जानकारी दी थी।
महाभारत में तो पग-पग पर गुप्तचारी के कारनामों का उल्लेख मिलता है। धृतराष्ट्र के प्रमुख गुप्तचर का नाम कणिक था। जिससे उसे सारे राज्य की खबरें मिला करती थीं। पांड़वों के अज्ञातवास के दौरान सैंकड़ों गुप्तचर उनका पता लगाने के लिये दुर्योधन ने छोड़ रखे थे। यह गुप्तचरों का ही काम था जो पांडव लाक्षागृह से सकुशल निकल पाये थे। कौरवों को गुप्तचरों द्वारा ही जयद्रथ वध की अर्जुन की प्रतिज्ञा का पता चला था।
महाभारत में शत्रू की सूचना प्राप्त करने के अनेकों उपाय बताये गये हैं। इस काम के लिये साधू, भिक्षुक, नटों, नर्तकियों और अंधे लोगों को उपयुक्त बताया गया है। पर साथ ही साथ संकट काल में इन्हें देश से निर्वासित करने की भी सलाह दी गयी है।
गुप्तचरों के काम की कोई सीमा नहीं होती। जहां संकट के समय इन्हें हर छोटी-बड़ी सूचना अपने अधिकारी को देनी होती है वहीं शांतिकाल में भी राज्य की आंतरिक व्यवस्था बनाये रखने की जिम्मेदारी भी इनकी होती है।
चाणक्य ने तो इस विधा को नयी ऊंचाईयों तक पहुंचा दिया था। जिसके फलस्वरूप ही चंद्रगुप्त नि:शंक हो अपना राज कर सके।
आज हालत यह है की इंसान तो इंसान जानवर तथा मशीनो का भी उपयोग जासूसी में होने लग गया है। जिसमें शत्रू मित्र का भेद भी ख़त्म हो चुका है। देशों की बात तो दूर अब तो व्यक्तिगत जासूसी आम हो गयी है। यहाँ तक की शादी के पहले भावी वर तथा वधू के आचरण को जानने के लिए लोग गुप्तचरों की सेवा बेहिचक लेने लगे हैं।
5 टिप्पणियां:
मै तो कोई और नारदमुनी जी के बारे में समझ बैठा था ! वैसे सही कहा आपने कि नारद जी पहले-पहला गुप्तचर रहे होंगे इस दुनिया के !
यह भी सही है, तभी तो घरेलू गुप्तचरों को भी नारद मुनि संबोधित करते हैं।
बहुत अच्छी जानकारीयुक्त पोस्ट!
यह भी कहा जाता है कि गुप्तचरी आज भी चाणक्य के बताये तरीकों पर ही आधारित है।
Agreed with PC Godiyal .
नारायण ...नारायण ...!!
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