शिवाजी महाराज ने मुगल सल्तनत के खिलाफ जंग शुरु कर दी थी। उनकी छापामार युद्ध नीति से औरंगजेब की नाक में दम आ गया था।
ऐसे ही एक बार शिवाजी ने एक गांव मे पड़ाव डाला। इनके खाने का इंतजाम एक वृद्धा के घर मे था। वह शिवाजी महाराज को तो जानती थी पर उनके चेहरे से अनभिज्ञ थी। वह यही समझ रही थी कि वह महाराज के सैंनिकों को भोजन करा रही है। कुछ ही देर मे उसने गरम-गरम चावल-दाल परोस दिया और मनुहार कर खिलाने लगी। शिवाजी जल्दी मे थे उन्होंने थाली सामने आते ही खाना शुरु किया ही था कि भोजन की गर्मी के कारण उन्हें हाथ खींच लेना पड़ा। यह देखते ही वृद्धा बोली, तू भी अपने महाराज की तरह बावला है। वह भी सीधे राजधानी पर हमला कर नुक्सान उठाता है और तू भी भोजन को बीच मे से खाना शुरु कर हाथ जलवाता है। अरे पगले, अपने महाराज को चाहिये कि वे पहले छोटी-छोटी जगहों पर विजय प्राप्त करें जिससे पीछे से हमला होने का ड़र खत्म हो जाये फिर सारी ताकत लगा राजधानी पर टूट पड़ें। उसी तरह तू भी खाना किनारे से शुरु कर, इससे खाना ठंड़ा भी हो जायेगा और तू आराम से खा भी पायेगा।
शिवाजी महाराज अपने इस नये गुरु का मुंह देखते रह गये। खाना खत्म कर उन्होंने वृद्धा के चरण स्पर्श किये और आगे बढ़ गये।
इतिहास गवाह है कि इसके बाद युद्ध में फिर कभी उन्हें पीछे मुड़ कर नहीं देखना पड़ा।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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9 टिप्पणियां:
शिवाजी ने उस्की बात मानी भी . और सफ़लता भी पायी , अगर आज कोइ ऎसी राय राजा को दे तो शायद ही राजा माने
शिक्षाप्रद कथा!
उम्दा प्रसंग!!
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
तबी तो कहते है कि बुजुर्गो की सलाह माननी चाहिये, बहुत सुंदर शिक्षा.
जय भवानी :)
प्रेरक कथा.
सुन्दर व प्रेरक प्रसंग ! आभार ।
कभी- कभी अच्छे सुझाव ऐसी जगह से मिल जाते है, जहाँ से उम्मीद न हो। इसीलिये हमें हर किसी की बात कों ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए। किसी कों कम अक्लमंद सोचना हमारी मूर्खता है। आप सभी कों नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
जी इस प्रेरक प्रसंग के बारे में पहले भी पढा था शायद , तभी तो कहते हैं कि पहले के शासक अधिक दूरदर्शी थे और बुद्धिमान भी ॥
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