छोटी अवधी के बड़े युद्ध का खात्मा हो चुका था। धीरे-धीरे चारों ओर जन-जीवन सामान्य होने की ओर अग्रसर था। युधिष्ठिर सिंहासनारूढ हो चुके थे। सारे मित्र राजाओं की उचित सम्मान के साथ विदाई हो चुकी थी। श्री कृष्ण भी कुछ समय पश्चात द्वारका लौटने की मंशा जाहिर कर चुके थे। हांलाकि पांड़व खास कर अर्जुन अभी उन्हें जाने देना नहीं चाहते थे। फिर भी जाना तो था ही।
इसी तरह एक बार उद्यान में घूमते-घूमते दोनों सखाओं, श्रीकृष्ण और अर्जुन में, विभिन्न विषयों पर वार्तालाप हो रहा था। ऐसे ही बातों-बातों में युद्धभूमि और फिर गीता के उपदेशों की बात होने लगी। तभी अचानक अर्जुन ने कहा, केशव, आपने युद्धभूमि में गीता का उपदेश देकर मेरे साथ-साथ सारी दुनिया का उपकार किया था। आपका वह विराट स्वरूप आज भी मेरे मन-मस्तिष्क में छाया हुआ है। पर मेरी एक प्रार्थना है कि आप यहां से जाने के पहले मुझे फिर एक बार उस अमृत का पान करवा जायें। क्योंकि उस समय के माहौल, युद्ध के कारण मानसिक तनाव, विचलित मन और आपके विराट स्वरूप के दर्शन से दिग्भ्रमित बुद्धी के कारण मैं तब गीता की सारगर्भिता को पूर्ण रूप से आत्मसात नहीं कर पाया था। इसलिये कृपया एक बार फिर मुझे अपनी मोक्षदायिनी वाणी से कृतार्थ करने की कृपा करें।
श्रीकृष्ण अपने सबसे प्रिय सखा की बात कैसे टालते। वे अर्जुन को ले राजमहल के सभागार में आये और फिर एक बार गीता के उपदेशों की अमृत धारा बहाई।
विद्वानों के अनुसार दोनों बार दिये गये उपदेशों के आध्यात्मिक महत्व में कोई फर्क नहीं है। सिर्फ परिस्थितियों और समय को छोड़ कर। पहली बार सुनने वाले अर्जुन मोहग्रस्त थे तो दूसरी बार विस्मृतिग्रस्त। पहली बार गीता युद्धभूमि में तनाव ग्रस्त माहौल में सुनाई गयी थी, दूसरी शांत माहौल में थोड़े विस्तार के साथ। पहली गीता में कुल अठारह अध्याय और सात सौ श्लोक हैं, जबकि बाद वाली गीता में छत्तीस अध्याय और करीब एक हजार श्लोक हैं। क्योंकि पहली बार समयाभाव था, पर दूसरी बार ऐसी कोई बात नहीं थी। पहली बार महर्षि वेदव्यासजी ने पूरे उपदेश श्रीकृष्णजी से कहलवाए थे जबकी दूसरी बार परोक्ष रूप से अनेक ऋषी गण, जैसे जनमेजय, नारद, कश्यप, वैशंपायन आदि विद्वान उपदेश देते हैं। जबकि सब का सार एक ही है।
दूसरी बार कही गयी गीता को "अनुगीता" के नाम से जाना जाता है, यानि बाद की गीता।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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21 टिप्पणियां:
shukriya!!!
nai geeta gyan ke liye
इस जानकारी के लिए आभार। यह एक आश्चर्य ही है कि इस अनुगीता का कोई ज़िक्र विद्वान क्यों नहीं करते!!!!
आपको हिन्दी में लिखता देख गर्वित हूँ.
भाषा की सेवा एवं उसके प्रसार के लिये आपके योगदान हेतु आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ.
यह जानकारी तो पहली बार प्राप्त हुई ! आभार !
इस अच्छी जानकारी के लिए आभार. इस बिषय में महाभारत (अश्वमेघ पर्व) के सोलवे अध्याय के श्लोक क्रमांक १ से १५ तक अर्जुन कथित यह वर्णन आया है की वह युद्घ समय पर दिए गए गीता ज्ञान को भूल गए है. वह कहते है ---"युद्घ समय पर आपने जो मेरा प्रिय करके जो उपदेश मुझे दिया था, वह बुद्धि-दोष के कारण मैं भूल गया हूँ तथा फिर से सुनना चाहता हूँ". श्री कृष्ण ने यहाँ पर उत्तर दिया है की --"मैंने उस समय अत्यंत गूढ़ बिषय और नित्य लोको का वर्णन किया था. तुमने उसे स्मरण नहीं रखा, इसका मुझे खेद है. उस समय मैंने जो उपदेश दिया, उसकी इस समय मुझे याद नहीं है. तुम बहुत भुलक्कड़ और श्रद्धाहीन जान पड़ते हो." एक कथा के माध्यम से श्री कृष्ण ने फिर काफी कुछ अर्जुन को बतलाया भी था.
दूसरी बार कही गयी गीता को "अनुगीता" के नाम से जाना जाता है, यानि बाद की गीता।
आपने बिल्कुल सही लिखा है।
आभार!
इस बारे में हम अबोध थे. आपने श्रीकृष्णजी जैसा काम किया. आभार.
शर्मा जी आप ने बहुत अच्छी जानकारी दी, मेने तो आज ही जाना इस गीता के बारे.
आप का धन्यवाद
सुब्रमनियन जी,
जो जानकारी मुझे मिलती है उसे बांटने की कोशिश करता हूं। आपने तो बहुत ही बड़ी बात कह दी।
वैसे आजकल आप कहीं भ्रमण पर हैं या कोई और बात है, काफी दिनों से इंतजार है। आशा है स्वस्थ एवं प्रसन्न होंगे। स्नेह बना रहे यही आकांक्षा है।
बिल्कुल सही लिखा आपने......किन्तु इस बात से हम भी आज तक विस्मित हैं कि मूल गीता की भान्ती ही यह अनुगीता भी समाज की दृ्ष्टि में क्यों नहीं आ पाई?। किस कारणवश इसका कहीं विशेष उल्लेख नहीं मिलता?
बहुत बहुत धन्यवाद हमें इस बारे में जानकारी ही नहीं थी। मुझे क्या शायद बहुतों को इस बारे में जानकारी नहीं होगी।
नयी जानकारी । प्रविष्टि मूल्यवान है । आभार ।
गीता और अनुगीता की यह अलग सी जानकारी आपके ब्लॉग के नाम को सार्थक कर रही है.. कुछ अलग सा ...
इस अमूल्य जानकारी के लिए बहुत आभार ..!!
mje aj pata chala he ki geeta ke bad khi gayi geeta anugeeta ke nam se jani jati hai
ANUGEETA KA BARE ME JAN KAR ACCHHA LAGA
Thank you for this information about our religion. Thank's a lot....
wese 1 bar hi gita likhi gai hai.....agr dusri bar gita likhi jati toh gita ke pat me 36 pat hote hai............
गीता को लिखा तो बाद में गया होगा। यह तो श्रीकृष्णजी का एक तरह से मार्गदर्शन था अपने प्रिय सखा अर्जुन के लिए जो उन्होंने पहली बार युद्ध भूमि मे कर्त्वय विमुख होते देख दिया था। रण-क्षेत्र में गहरे तनाव के बीच उसका पूरा भाव ग्रहण ना कर पाने के कारण अर्जुन की प्रार्थना पर प्रभू ने युद्धोपरांत फिर एक बार वही उपदेश दोहराया था। ऐसा वर्णन मिलता है जैसा सौरभजी भी अनुमोदन कर रहे हैं।
नमस्कार जी.
अनुगीता का कोई पुस्तक, टीका ग्रंथ, प्रवचन आदि उपलब्ध हई कया? मुझे पाता भेज देते तो माई आभारी रहुङा.
शिरिष कुमार लहाडे. अहमदनगर
9890698788
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