कल्पना कीजिए की जिसने अपने संगीत से सारे भारत में धूम मचा रखी थी , उसे ही अपनी शादी दर्जी बन कर करनी पड़ रही थी।
आज के समय में गीत-संगीत, नाच-गाना प्रतिभा की पहचान के रूप में देखे जाते हैं। किसी का भी बच्चा जरा ठुमक कर क्या चल लिया या किसी फिल्मी गाने की नकल कर भर ली तो उसके मां-बाप उसे किसी मंच पर पहुंचाने के लिये आतुर हो उठते हैं। फिर चाहे बच्चे को सरगम का 'सा' या नाच का 'ना' का पता भी ना हो। पर कुछ ही सालों पहले की बात है जब इन कलाओं को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था। मां-बाप इन विधाओं के सख्त खिलाफ हुआ करते थे। इसी सब के चलते संगीतकार नौशाद को कैसी-कैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था, सुनिये उन्हीं की जुबानी :-
"मां ने मेरी शादी पक्की कर लखनऊ बुलवा लिया। तैयारियों के बीच एक दिन उन्होंने मुझे बुलाया और कहा, बेटा ससुराल में किसी को पता नहीं चलना चाहिये कि तुम गाने बजाने का काम करते हो। मैं आश्चर्य में पड़ गया और पूछा, ऐसा क्यों अम्मी? तो अम्मी ने कहा कि मैंने सब को कह रखा है कि मेरा बेटा बंबई में दर्जी का काम करता है। अगर मैं बता देती कि तू गाने बजाने का काम करता है तो तेरी शादी ही तय नहीं होनी थी। तेरी ससुराल वाले सूफी किस्म के लोग हैं। मैं मां की बात मानने को मजबूर था। पर मन में एक प्रश्न घुमड़ रहा था कि क्या संगीत का काम इतना घटिया है कि एक दर्जी उस पर भारी पड़ रहा है। फिर उसके बाद जो हुआ उसका आप अंदाज लगा मेरी हालत समझ सकते हैं।
उन्हीं दिनों फिल्म "रतन" रिलीज हुई थी और उसके मेरे द्वारा निर्देशित गाने सारे हिंदुस्तान में धूम मचा रहे थे। तो जब मेरी बारात चली तो बैंड वालों ने उसी फिल्म के गाने बजाने शुरु कर दिये। लड़की वालों के यहां भी शहनाई पर "रतन" के गानों की बहार थी और मैं दर्जी बना निकाह की रस्में पूरी कर रहा था।"
बाद में जब नौशाद साहब की श्रीमतीजी बंबई आयीं तो उन्हें पता चला कि उनके शौहर मशहूर संगीतकार हैं।
13 टिप्पणियां:
अच्छी रही जानकारी.
जानकारी रोचक लगी...में भी लखनऊ की हूँ
रोचक जानकारी. नौशाद साहब के बारे में जानकर अच्छा लगा.
हमम्....बहुत बढिया और रोचक जानकारी दी है।
यह भी एक मजेदार किस्सा है।
अगर आप बरहा से टाइप कर रहे हैं तो ऐसे लिखें laKanaU=लखनऊ
जानकारी रोचक है । शुक्रिया ।
जानकारी परोसती पोस्ट के लिए,
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद!
शर्मा जी आप ने बहुत सुंदर लिखा, ओर पढ कर मजा आ गया, वेसे हमारे यहां अब भी इन नाच गाने को अच्छा नही समझते,
सच में आपने बड़ी आश्चर्यजनक और मनोरंजक जानकारी दी !
आभार
लखनऊ के लिये lakhna oo लिख कर बैक करें और a डिलीट कर दें । नौशाद जी को 1972 मे मुशायरे मे सुना था जब हम स्कूल मे पढते थे । उनका आटोग्राफ आज भी मेरे पास है ।
रोचक्!!!!
एक वो जमाना था....और एक ये जमाना है जहाँ लोग आर्केस्ट्रा में भी नाचने को शान समझने लगे हैं!!!
Nice post !
Shows that the Great Music director Naushad ali Saa'b , could laugh at himself & was so truthful in his life's accounts. BRAVO !!
नौशाद साहब के बारे में अच्छी जानकारी। धन्यवाद।
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