मंगलवार, 1 सितंबर 2009

बाप रे !!! इतना झगडालू चिडिया परिवार

इनकी करतूतों से सभी भर पाए हैं और इनके जाने का इंतजार कर रहे हैं। जिससे फिर साफ-सफाई कर इस नर्सिंग होम को बंद किया जा सके। पर इस सबसे एक बात तो साफ हो गयी कि चिड़ियों में भी इंसानों जैसी आदतें होती हैं। कोई शांत स्वभाव का होता है, कोई सफाई पसंद और कोई गुस्सैल, चिड़चिड़ा और झगड़ालू............!

#हिन्दी_ब्लॉगिंग
मेरे कार्यालय में बीम और मीटर बाक्स के कारण बनी एक संकरी सी जगह में चिड़ियों के घोंसले के लिये बेहतरीन जगह बन गयी है। इसी कारण पिछले तीन साल से वहां कयी परिवार पलते आ रहे हैं। बना बनाया नीड़ है, नर्सिंग होम की तरह जोड़े आते हैं, शिशु पलते हैं और फिर उड़न छू।

पहली बार जो जोड़ा आया उसने जगह देखी-भाली और तिनका-तिनका जोड़ अपना ठौर बना लिया। सफाई कर्मचारी बनते हुए घर को साफ कर देते पर यह "Encroachment" दो दिनों की छुट्टियों के बीच हुआ था, जिसे हटाने की किसी की इच्छा नहीं हुई। उस पहले जोड़े ने आम चिड़ियों की तरह अपना परिवार बढाया और चले गये। उनके रहने के दौरान एक बार उनका नवजात नीचे गिर गया था जिसे बहुत संभाल कर वापस उसके मां-बाप के पास रख दिया गया था। वैसे रोज कुछ तिनके बिखरते थे पर उनसे किसी को कोई तकलीफ नहीं थी साफ-सफाई हो जाती थी। दूसरी बार तो पता ही नहीं चला कि कार्यालय में मनुष्यों के अलावा भी किसी का अस्तित्व है। लगता था वह परिवार बेहद सफाई पसंद है, न कोई गंदगी, ना शोर-शराबा। सिर्फ बच्चे की चीं-चीं तथा उसके अभिभावकों की हल्की सी चहल-पहल। कब आये कब चले गये पता ही नहीं चला। तीसरा जोड़ा नार्मल था। मां-बाप दिन भर अपने बच्चे की मांगपूर्ती करते रहते। तिनके वगैरह जरूर बिखरते थे पर इन छोटी-छोटी बातों पर हमारा ध्यान नहीं जाता था। पर एक आश्चर्य की बात थी कि और किसी तरह की गंदगी उन्होंने नहीं फैलाई। शायद उन्हें एहसास था कि वैसा होने से उसका प्रतिफल बुरा हो सकता है।

पर अब पिछले दिनों जो परिवार आया है, जिसके कारण ये पोस्ट अस्तित्व में आई, वह तो अति विचित्र है। सबेरे कार्यालय खुलते ही ऐसे चिल्लाते हैं जैसे हम उनके घर में अनाधिकार प्रवेश कर रहे हों। आवाज भी इतनी तीखी कि कानों में चुभती हुई सी प्रतीत होती है। बार-बार काम करते लोगों के सर पर चक्कर लगा-लगा कर चीखते रहते हैं दोनो मियां बीवी। इतना ही नहीं कयी बार उड़ते-उड़ते निवृत हो स्टाफ के सिरों और कागजों पर अपने हस्ताक्षर कर जाते हैं। उनके घोंसले के ठीक नीचे फोटो-कापियर और टाइप मशीनें पड़ी हैं। जिन्हें रोज गंदगी से दो-चार होना पड़ता है। अब जैसा जोड़ा है वैसा ही उनका नौनीहाल या नौनीहालिनी जो भी है। साहबजादे/दी रोज ही घूमने निकले होते हैं। दो दिन पहले टाइप मशीन में फंसे बैठे थे, किसी तरह हटा कर उपर रखा। कल पता नहीं कैसे फोटो-कापियर में घुस गये, वह तो अच्छा हुआ कि चलाने वाले ने गंदगी साफ करते उनकी झलक पा ली, नहीं तो वहीं 'बोलो हरि' हो गयी होती। बड़ी मुश्किल से आधे घंटे में उन्हें बाहर निकाला जा सका।

इनकी करतूतों से सभी भर पाए हैं और इनके जाने का इंतजार कर रहे हैं। जिससे फिर साफ-सफाई कर इस नर्सिंग होम को बंद किया जा सके। पर इस सबसे एक बात तो साफ हो गयी कि चिड़ियों में भी इंसानों जैसी आदतें होती हैं। कोई शांत स्वभाव का होता है, कोई सफाई पसंद और कोई गुस्सैल, चिड़चिड़ा और झगड़ालू।
आपका क्या एक्सपीरीयेंस है ? (-:

15 टिप्‍पणियां:

Creative Manch ने कहा…

दिलचस्प पोस्ट




********************************
क्रियेटिव मंच

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप ने बिलकुल सही कहा, कई जानवर शांत होते है, तो कई जानवर उसी जाति के उदडं होते है, बहुत अच्छी लगी आप की यह पोस्ट

Unknown ने कहा…

वाह !
जो अनुभव आपका.........
वही हमारा भी है जनाब !
वाकई विभिन्नता उनमे भी है,,,,,,,,,,,हा हा हा हा

निर्मला कपिला ने कहा…

हमारा ख्याल भी आपसे मिलता जुलता ही है आभार्

36solutions ने कहा…

'बाम्‍हन चिरई होही !'(हा हा हा)
इनके स्‍वभाव के संबंध में ऐसे ही अनुभव हमारे भी है. बढि़या पोस्‍ट लिखा है आपने, आभार.

Arvind Mishra ने कहा…

चिडिया है कौन सी ?

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

रोचक्!!

dr amit jain ने कहा…

लगता है हमरी बला आप के ऑफिस आन पड़ी है , जरा सभाल कर कुछ दिनों मे ये सर पर भी चोच मरेगे , .................:)

बेनामी ने कहा…

हर प्रजाति में अलग अलग स्वभाव दिखता ही है

दिलचस्प पोस्ट

Himanshu Pandey ने कहा…

रोचक प्रविष्टि । आभार ।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत रोचक!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अरविंद जी,
वही घरों में भूरे से रंग वाली छोटी सी घरेलू चिड़िया। जिसे चिड़ा या चीड़ी भी कहा जाता है।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत रोचकता पुर्ण.

रामराम.

Sudhir (सुधीर) ने कहा…

दिलचस्प पोस्ट

सागर नाहर ने कहा…

पक्का; या तो वे भाजपा के नेता हैं (निकाले- लतियाये नेता भी हो सकते है) या फिर ठेठ हिन्दी ब्लॉगर।

विशिष्ट पोस्ट

रणछोड़भाई रबारी, One Man Army at the Desert Front

सैम  मानेक शॉ अपने अंतिम दिनों में भी अपने इस ''पागी'' को भूल नहीं पाए थे। 2008 में जब वे तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भ...