आज हर जगह आक्रोश, अराजकता, द्वेष, असंतोष का बोलबाला है। हर चौथा आदमी किसी न किसी से असहमत लगता है, और अपनी इस असहमती का इजहार बेतुकी हरकतों से कर रहा है। इन सब बातों का असर ब्लाग जगत पर भी साफ दिखाई दे रहा है। जबकी यह एक ऐसा मंच है जहां ब्लागर अपनी सोच को औरों के सामने रखता है। कोई जरूरी नहीं कि सब उससे सहमत हों, पर यदि असहमति है भी तो उसे शालीन शब्दों में जाहिर करना उचित होता है। छिप कर बारूद को तीली दिखा तमाशा देखना कैसी बात है सभी जानते हैं।
यह भी सच है कि कटु वचनों से दिलो-दिमाग तनावग्रस्त हो जाते हैं। ऐसी हरकतें समय-समय पर होती रहती हैं। कौन बच पाया है इनसे, सारे बड़े नामों को इस जद्दोजहद का सामना करना पड़ा है। समीर जी, भटिया जी, शास्त्री जी, द्विवेदी जी, किसको नहीं सहने पड़े ऐसे कटाक्ष। पर इन्होंने सारे प्रसंग को खेल भावना से लिया। ये सब तो स्थापित नाम हैं। मुझ जैसे नवागत को भी शुरु-शुरु में अभद्र भाषा का सामना करना पड़ा था। वह भी एक "पलट टिप्पणी" के रूप में। एक बेनामी भाई को एक ब्लाग पर की गयी मेरी टिप्पणी नागवार गुजरी और वह घर के सारे बर्तन ले मुझ पर चढ बैठे थे। मन तो खराब हुआ कि लो भाई अच्छी जगह है, न मैं तुम्हें जानता हूं ना ही तुम मुझे तो मैंने तुम्हारी कौन सी बकरी चुरा ली जो पिल पड़े। दो-एक दिन दिमाग परेशान रहा फिर अचानक मन प्रफुल्लित हो गया वह कहावत याद कर के कि "विरोध उसीका होता है जो मशहूर होता है" तब से अपन भी अपनी गिनती खुद ही मशहूरों में करने लग पड़े।
मेरे ख्याल से तो ऐसी हरकतों को तूल ही नहीं देना चाहिये। पढिये, किनारे करिये। उस को लेकर यदि हो-हल्ला मचायेंगे तब तो उस भले/भली का मनसूबा ही पूरा करेंगे। उस ओर से चुप्पी साध लें तो वह अपने आप ही बाज आ जायेगा/जायेगी। रही टिप्पणी माडरेशन की बात, वैसे तो यह पूरी तरह ब्लागर के ऊपर निर्भर करता है, फिर भी इसे उपयोग में न लाना ही बेहतर नहीं है? एक तो इससे लगेगा कि उस अनजान प्राणी से हम भयग्रस्त हो गये। बाहर किसीके डर से कोई घर से निकलना तो बंद नहीं करता। दूसरा स्वस्थ आलोचनायें भी शायद इसकी भेंट चढ जायें। क्योंकि हमारी फितरत है कि हम आलोचना कम ही पसंद करते हैं। जो कि लेखन को सुधारने में मदद ही करती हैं।
इसलिए मेरा निवेदन है , मुम्बई टाईगर जी से कि यार दिल पर मत ले। टेंशन लेने का नहीं, देने का।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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12 टिप्पणियां:
बहुत सही सलाह दी आपने. धन्यवाद.
रामराम.
सत्य वचन कहा,
सटीक सलाह के लिए आभार.
टेंशन लेने का नहीं, देने का।
सही लिखा है।
सब कुछ बहुत बढ़िया लिखा लेकिन अंत में हमें विरोध जताने के लिए मजबूर कर दिया यह कह कर कि टेंशन लेना का नहीं देने का. किसी को क्योंकर टेंशन दें. यही काम तो वे लोग कर रहे हैं. क्या उनको प्रोत्साहित करें?
भाई गगन शर्मा जी।
वन्दना के ब्लॉग से आपके ब्लॉग पर आया हूँ।
आपने सही सलाह दी है।
सुब्रमनियम जी,
जब हम टेंशन नहीं लेंगे तो "वो" ज्यादा
टेंशनायेंगे।
शास्त्री जी,
स्वागत है आपका, स्नेह ऐसे ही बना रहे यही कामना है।
एकदम सही सलाह.
वैसे मुम्बई टाईगर ने भी दिल से कहाँ लिया-वरना तो आगे लिखना न हो पाता. उन्होंने तो बस बेनामी जी की हरकत उजागर कर दी है.
:)
आदरणीय शर्माजी
@इसलिए मेरा निवेदन है , मुम्बई टाईगरजी से कि यार दिल पर मत ले। टेंशन लेने का नहीं, देने का।
..............
आपने सकारात्मक विचारो से ओतप्रोत हिन्दी ब्लोग के सुनहरे भविष्य के लिऐ जो अपील कि मै आपकी इस प्रेरणा भरे सन्देश का समर्थन करते हुऐ आभार प्रकट करता हू कि आपने हमारा मनोबल बढाया।
ज्ञानदत्तजी, अनुपजी, ताऊ रामपुरियाजी परमजीतजी बाली P.N. Subramanianजी डॉ. रूपचन्द्रजी शास्त्री मयंक Udan जीTashtari आशिषजी खण्डेलवाल, कोची वाले शास्त्रीजी, सजय सागर, दिनेशराय द्विवेदीजी, Pt.डी.के.शर्मा"वत्सजी", सिद्धार्थजी राजजी भाटिय़ा, Ratan Singhजी Shekhawat., लावण्याजी` ~ अन्तर्मन्`आदि जिनका नाम नही लिख पाया उन सबका आभार प्रकट करता हू कि उन्होने मुझे काम करते रहने कि सलाह दी । आप मुम्बई टाईगर और हे प्रभु यह तेरापन्थ को भविष्य मे भी जन कल्याण के विषयो पर लिखते देख पाऐगे। आर्शिवाद की अपेक्षा।
आभार।
महावीर बी सेमलानी
MUMBAI TIGER
HEY PRABHU YEH TERA PATH
हम तो यही कहेंगे कि न टेंशन लेने का और न टेंशन देने का।
सही कहा आपने
सही बात है...बुरी बातों का क्या बुरा मानना...वो तो हैं ही बुरी.
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