मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

रूमाल, जो कभी संपन्नता और प्रतिष्ठा के प्रतीक थे.

यह सोच कर भी आश्चर्य होता है कि आज हर खासो-आम को उपलब्ध यह चौकोर कपडे का टुकडा किसी जमाने में सिर्फ रसूखवाले और संपन्न लोग ही रख सकते थे। इसका जिक्र ईसा से भी दो सौ साल पहले मिलता है। तब लिनेन के इस सफेद टुकडे को, जो बेशकीमती होता था, सुडेरियम के नाम से जाता था और यह केवल संपन्न लोगों की सम्पत्ति हुआ करता था। धीरे-धीरे आयात बढने से यह जनता के लिए भी सुलभ हो गया। इसके जन्म की भी कयी रोचक कथाएं हैं। मध्य युग में चर्च के अधिकारियों ने नाक बहने पर उसे चर्च की चादरों से या अपने कपड़ों से पोंछने की मनाही कर दी थी। तब चादरों के छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में इसका जन्म हुआ। पर अंग्रेजों के अनुसार इसका आविष्कार रिचर्ड़ द्वितीय (1367-1400) ने किया था। कहते हैं कि रिचर्ड़ सफाई के लिए प्रयुक्त होने वाले भारी-भरकम तौलियों से परेशान था। खासकर जुकाम वगैरह होने पर इतने भारी तौलियों का उपयोग करना दुष्कर हो जाता था। सो उसके दिमाग में एक तरकीब आयी और उसने सुंदर-सुंदर कपड़ों के छोटे-छोटे टुकड़े करवा दिये जो हाथ और नाक साफ करने के काम आने लगे। यही आधुनिक रूमालों के पूर्वज थे। वैसे देखा जाए तो रूमाल को प्रिय बनाने का काम नसवार लेने वालों ने किया होगा जो अपने कपड़ों को दाग-धब्बों से बचाने के लिए किसी छोटे कपड़े का उपयोग करते होंगे।
एक बार अस्तित्व मे आ जाने के बाद इसका उपयोग विभिन्न रूपों में होने लगा। जैसे ईत्र की सुगंध को समोये रखने में, किसी को उपहार स्वरूप देने में, हाथ से कढे रूमाल प्यार के तोहफे के रूप में देने में इत्यादि-इत्यादि। फिर तो कभी यह कोट की शान बना और कभी कुछ उपलब्ध ना होने पर बाज़ार से सौदा-सुलफ बांध लाने का जरिया। जहां मुगलों के जमाने में सौगातें सुंदर नफीस रूमालों से ढक कर भेजी जाती थीं, वहीं एक समय यह कुख्यात डाकूओं का हत्या करने का हथियार भी बना। जब इसके एक सिरे में सिक्का बांध कर राहगीर की हत्या कर दी जाती थी।
तो यह एतिहासिक उठा-पटक वाला, उत्थान-पतन देखने वाला कपड़े का चौकोर टुकड़ा आज हम सब की एक जरूरत बन चुका है। भूल जाएं तो अलग बात है पर इसके बिना बाहर निकलने की सोची भी नहीं जा सकती।

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वकील ने अपने नेता मुवक्किल को ई-मेल भेजा कि सत्य की विजय हो गयी है। तुरंत जवाब आया - हाई कोर्ट में अपील कर दो।

10 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

जानकारी बहुत रोचक लगी. और नेताओं की तो आंखें बंद ही रहती है इसीलिये तो नेता है.

रामराम.

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

अरे वाह सर बहुत ही अच्‍छी जानकारी दी है। इतना तो हमें भी पता था कि स्‍कूल में जब हम दसवीं में पढते थे तब तक भी हम रूमाल नहीं रखते थे लेकिन आज मेरी बेटी एलकेजी में है लेकिन रूमाल उसके पहुंचने से पहले ही स्‍कूल में पहुंच जाता है क्‍योंकि शर्ट पर पिन किया होता है तो पहले रूमाल पहुंचेगा फिर हमारी बिटिया रानी

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

सुडेरियम = रुमाल की जानकारी अच्छी लगी

संगीता पुरी ने कहा…

पर रूमाल इतना उपयोगी हो गया है कि ... अब इसके बिना बच्‍चे भी बाहर नहीं निकलते।

shama ने कहा…

Mere "Baagwaanee" blogpe aapkee tippanee dekhee...mai maafee chahti hun, gar mujhse gustakhi huee ho...kyonki mere blogpe maihee likhtee hun, isliye wo post jahan maine comment chhoda, aapkee hogee, ye sambhavna mere dimaagme aayeehee nahee...galateepe sharminda hun..

shama ने कहा…

Gar anyatha na le to ek namr binatee hai, meree bhool ko gar aap mujhe e-maildwara batate mai shukrguzar rehtee.
"Baagwaanee" ke aap anusarankarta bane hain, ye dekh anand hua.
adarsahit
shama

विधुल्लता ने कहा…

गगन जी ...रुमाल का रोचक इतिहास ...बहुत दिनों से रुमाल पर कुछ लिखना चाह रही थी...आपने कम शब्दों में अच्छा विश्लेषण किया है ...में तो बस प्रेम प्रसंगो में रुमाल पर कुछ लिखने के विषय में सोच रही थी ..बधाई,

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत रोचक जान्करी है चुट्कुला तो लाजवाब है शुभकामनाये़

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुडोर का अर्थ पसीना होता है। सुडेरियम जिससे पसीना पोंछा जाए।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

shamaa jii,
aapkaa e.mail nahi mil pa rahaa thaa. par saare parkaran me aap apne aap ko kyon dosh de rahee hain jab ki aapkii rattii bhar bhii bhuul nahee hai. main kshmaa chaahataa hoon, yadi meree baat se dukh pahunchaa ho to , jabakii meraa aisaa koi iraadaa nahi thaa.

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