गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

जब ईश्वरचंद्र विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी।

फिर एक चप्पल चली। रोज ही कहीं ना कहीं यह पदत्राण थलचर हाथों में आ कर नभचर बन अपने गंत्वय की ओर जाने की नाकाम कोशिश करते नज़र आने लगे हैं। अब यह जनता की दबी भड़ास का नतीजा हैं या प्रायोजित कार्यक्रम, यह खोज का विषय है। पर वर्षों पहले भी एक चप्पल चली थी, वह भी एक ऐसे इंसान के हाथों जो अपने समय के प्रबुद्ध और विद्वान पुरुष थे।
बात ब्रिटिश हुकुमत की है। बंगाल में नील की खेती करनेवाले अंग्रेजों जिन्हें, नील साहब या निलहे साहब भी कहा जाता था, के अत्याचार , जोर-जुल्म की हद पार कर गये थे। लोगों का जीवन नर्क बन गया था। इसी जुल्म के खिलाफ कहीं-कहीं आवाजें भी उठने लगी थीं। ऐसी ही एक आवाज को बुलंदी की ओर ले जाने की कोशीश में थे कलकत्ते के रंगमंच से जुड़े कुछ युवा। ये अपने नाटकों के द्वारा इन अंग्रेजों की बर्बरता का मंचन लोगों के बीच कर विरोध प्रदर्शित करते रहते थे । ऐसे ही एक मंचन के दौरान इन युवकों ने ईश्वरचन्द्र विद्यासागर जी को भी आमंत्रित किया। उनकी उपस्थिति में युवकों ने इतना सजीव अभिनय किया कि दर्शकों के रोंगटे खड़े हो गये। खासकर निलहे साहब की भूमिका निभाने वाले युवक ने तो अपने चरित्र में प्राण डाल दिये थे। अभिनय इतना सजीव था कि विद्यासागर जी भी अपने पर काबू नहीं रख सके और उन्होंने अपने पैर से चप्पल निकाल कर उस अभिनेता पर दे मारी। सारा सदन भौचक्का रह गया। उस अभिनेता ने विद्यासागर जी के पांव पकड़ लिए और कहा कि मेरा जीवन धन्य हो गया। इस पुरस्कार ने मेरे अभिनय को सार्थक कर दिया। आपके इस प्रहार ने निलहों के साथ-साथ हमारी गुलामी पर भी प्रहार किया है। विद्यासागर जी ने उठ कर युवक को गले से लगा लिया। सारे सदन की आंखें अश्रुपूरित थीं।

9 टिप्‍पणियां:

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

वाह क्‍या मिसाल है

उसी भावना को

सामने ला रही हैं

आज दौड़ रहीं

जूता चप्‍पलें भी।


भावना में कोई अंतर नहीं

बस मंतर बदल गया है
कुछ अलग सा।

Anil Kumar ने कहा…

निःशब्द कर दिया आपने! बहुत ही बढ़िया तरीके से लिखा हुआ, बढ़िया प्रसंग!

संगीता पुरी ने कहा…

वाह .. बढिया प्रसंग ।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

ये किस्सा पहले कभी सुना नहीँ था आपने बखूबी लिखा है
स स्नेह,
- लावण्या

समय चक्र ने कहा…

बढिया प्रसंग बहुत ही बढ़िया लिखा हैं.

Gyan Darpan ने कहा…

बहुत ही बढिया प्रसंग !

Shikha Deepak ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रसंग.............सही समय पर लिखा है।

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

to chapal fenkne ki riwayt kafi purani hai....boht sahi samay pe sahi baat kahi aapne..

Everymatter ने कहा…

india today needs this type of artist who force the audience to take step against wrong

विशिष्ट पोस्ट

ठेका, चाय की दुकान का

यह शै ऐसी है कि इसकी दुकान का नाम दूसरी आम दुकानों की तरह तो रखा नहीं जा सकता, इसलिए बड़े-बड़े अक्षरों में  ठेका देसी या अंग्रेजी शराब लिख उसक...