भक्त प्रह्लाद। भगवान का परम भक्त । भक्ति भी ऐसी कि उसके पिता को अपनी जान गंवानी पड़ी। उसी का बेटा विरोचन और विरोचन का बेटा बलि। बलि यानि प्रह्लाद का पोता। उसके जैसा दानी, पराक्रमी, प्रजा पालक शयाद ना हुआ ना होगा। तीनों लोकों का विजेता। देवता फिर संशकित अपने प्रभुत्व को बचाने के लिये विष्णु जी की शरण में गये। भगवान ने वामन रूप धरा और दो पगों में धरती-आकाश नाप लिये तीसरे पग के लिये बलि ने अपनी पीठ नपवा दी। फिर एक बार छल की जीत हुई। बलि को पाताल भेज दिया गया और स्वर्ग फिर देवताओं को मिल गया।
यह नहीं देखा गया कि प्रह्लाद का क्या योगदान था या बलि का कसूर ही क्या था
12 टिप्पणियां:
bahut achhi bat batayi,iska matalab yahi hua ke jab apne jan pe ban aayi tho devta bhi chalkapatkar lete hai,waha insaan to kuch bhi nahi galti ka putala hai phir.hey bhagwan
बैठे बिठाये बलि को मोक्ष भी तो मिल गया. वह तो यह जान भी रहा था की विष्णुजी की अनुकम्पा हो गई है.
bilkul sahi prashan hai aapka tabhi to aaj kal sabhi devata banne ke chakar me hain
सच्चाई पर आधारित है
और यह भी सच ही है कि विष्णु ने हमेशा छल कपट से ही काम लिया है
राक्षसों से अमृत छीनना हो या जरासंध का वध करवाना हो या बाली का वध हर तरफ लेकिन फिर भी उन्होंने पृथ्वी तारी है
यही तो राजनीती और कूटनीति होती है ! देवताओं ने भी इस तरह राजनीती व कूटनीति का खेल खेल कर अपने स्वर्ग का राज बचाए रखा !
रतन जी सही कह रहे है।राजनिति ही है यह।
यह विष्णु कही काग्रेस पार्टी का नेता तो नही ???
शर्मा जी मै इन सब के बारे इतना नही जानता.
धन्यवाद
bahut badhiya post. devata or rakshas dono rajaniti or kootaneeti se kaam lete the .
समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : वेलेंटाइन, पिंक चडडी, खतरनाक एनीमिया, गीत, गजल, व्यंग्य ,लंगोटान्दोलन आदि का भरपूर समावेश
देवता किसी को नहीं बख्शते ।
सच्चा शरणम
Devta bhi rajniti se alag to nahi....Achchi post hai
acchi post hai....
रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी देने के लिए आपको धन्यवाद।
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