बात कुछ पुरानी है पर इतनी भी नहीं कि हम सब भूल चुके हों। कहानी एक गांव की है। उस गांव में एक अनाथ लड़का रहता था। वह बड़ा ही हुड़दंगी था। दिन भर अवारागर्दी करना लोगों को तंग करना ही उसका शगल था। उसके कारण सारे गांव के नाक में दम रहता था। एक बार बड़े-बुढों ने उसे समझा बुझा कर गांव के दुधारु पशुओं को चराने का काम सौंप दिया। अब वह दिन भर ढोरों के साथ जंगल में घुमता रहता। इससे गांव वालों को भी राहत मिली और उसे भी खाने पीने का आराम हो गया। पर कहते हैं ना कि बंदर कैसा भी हो गुलाटी मारना नहीं भूलता, सो एक दिन ऐसे ही उस लड़के के दिमाग में फिर गांव वालों को तंग करने की सूझी। बस फिर क्या था, वह एक पेड़ पर चढ गया और लगा जोर-जोर से चिल्लाने कि शेर आया, शेर आया। उसकी आवाज सुन पास के खेतों में काम करते लोग लाठी बल्लम ले दौड़े आए। उन्हें देख लड़का ढीठाई से हंसने लगा। गांव वाले उसे गरियाते हुए वापस चले गये। लड़के को एक नया खेल मिल गया। तीन चार दिन बाद उसने फिर वैसी ही गुहार फिर लगाई। भोले-भाले गांव वाले कुछ अनिष्ट ना हो जाए यह सोच फिर उसकी सहायता को चले आए पर फिर उन्हें बेवकूफ बनना पड़ा। एक दो बार फिर ऐसा ही हुआ और गांव वासियों को बेवकूफ बना वह लड़का मजा लेता रहा। एक दिन सचमुच राह भटक कर एक शेर उधर आ निकला। शेर को सामने देख लड़के के देवता कूच कर गये। किसी तरह दौड़ कर पेड़ पर चढ कर उसने अपनी जान बचा ली। वहां से उसने पचासों आवाजें लगाईं पर गांव वाले इसे उसकी शरारत समझ उस ओर नहीं आए और शेर एक बछड़े को उठा जंगल में गुम हो गया।
यह कहानी मैने संता को सुनाई और पूछा कि संते इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है। संता ने झट से जवाब दिया,सर जी, झूठे का सब विश्वास करते हैं सच को कोई घास नहीं ड़ालता।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
शनिवार, 7 फ़रवरी 2009
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7 टिप्पणियां:
यक़ीन मानिए, संता ही सही सोचता है. मेरी बात का यक़ीन न हो तो अगले महीने चुनाव होने वाले हैं न! उसी दौरान देख लीजिएगा.
बहुत उम्दा... पर आपने 'शेर आया' वाली पूरी कहानी लिखने की ज़हमत ना उठाई होती तो बढ़िया होता। पता नहीं वो कौन है, जिसने अब तक ये कहानी नहीं सुनी! शुभकामनाएं।
सच है झूठे की सब सच बताते है और सच्चे को तो शेर ही खाते है
वाह साहब कमाल कर दिया!
ekdam sahi farmaaya santa ne!!
अरे वाह मजा आ गया, यह संता भी अब स्याना हो गया है, तभी तो अच्छी अच्छी ओर सच्ची सच्ची बाते करने लगा है.
धन्यवाद
एक बहुत परिचित कथा को आपने आख़िर में नया कोण दे दिया.बढ़िया.
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