रविवार, 22 फ़रवरी 2009

पंचकेदार, जिनका स्मरण ही काफी है.

हिमालय की विस्तार स्थली का केन्द्र है "गढवाल मंड़ल"। भारतवर्ष का पवित्रतम स्थान। पुराणों के अनुसार एक बार शिव जी घूमते-घूमते यहां पहुंचे और यहां की सुंदरता से प्रभावित हो कर यहीं के हो कर रह गये। उन्हीं के नाम से यहां का नाम "केदार खंड" या "केदारभूमी" कहलाया।
शिवपुराण के अनुसार वर्षों बाद महाभारत युद्ध के बाद स्वजनों की हत्या के पाप से मुक्त हो मोक्ष की प्राप्ति के लिये पांडव शिव जी को खोजते-खोजते यहां भी पहुंच गये। उनसे बचने के लिए शिव जी महिष का रूप धर भूमि में समाने लगे। परन्तु महाबली भीम ने उन्हें देख कर पहचान लिया और महिष रूपी शिव की पूंछ पकड़ ली तथा सभी पांडवों ने उनकी पूजा-अर्चना कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। शिव जी ने पांडवों को उनके पापों से मुक्त कर दिया। उसी समय से शिव जी का पिछला भाग केदारनाथ में केदारलिंग के रूप में पूजित है।
महिषरूपी शिव जी के अन्य भाग कालांतर में गढवाल में ही रुद्रनाथ, तुंगनाथ, मध्यमहेश्वर तथा कल्पेश्वर में प्रगट हुए और यह पांचों स्थान पंचकेदार के नाम से प्रसिद्ध हुए।
पंचकेदार के दर्शन अपने आप में सैंकडों तीर्थों की यात्रा का पुण्य प्रदान करते हैं।

5 टिप्‍पणियां:

विधुल्लता ने कहा…

पञ्च केदार जाने का मन तो है ...आपने विवरण ऐसा किया है अच्छा लगा पढ़ कर ...शिव पुराण अपने आप मैं अद्भुत् badhai...

Udan Tashtari ने कहा…

आभार जानकारी का.

समयचक्र ने कहा…

अच्छा जानकारी विवरण है.

P.N. Subramanian ने कहा…

इस पौराणिक दृष्टांत को प्रस्तुत कर आप भी पुण्य के भागी हो गए. आभार.

राज भाटिय़ा ने कहा…

वाह बहुत ही सुंदर रुप से आप ने इस पौराणिक दृष्टांत को प्रस्तुत किया, कभी मोका मिला तो जरुर दर्शन करने जायेगे.
धन्यवाद

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