स्कन्द पुराण के अनुसार किसी जमाने में अवंतिका पुरी ( उज्जैन ) पर अंधक नामक दैत्य राज किया करता था। उसने घोर तपस्या कर वरदान प्राप्त कर लिया था कि अगर मेरे रक्त की बूदें जमीन पर गिरें तो उससे अनेकों दैत्य उत्पन् हो जायें। इस वरदान के मिलने पर अधंकासुर ने चारों ओर आतंक मचाना शुरु कर दिया। सब तरफ त्राही-त्राही मच गयी। तब सभी लोग त्रस्त हो कर भगवान शिव की शरण में गये और उनसे इस विपत्ती से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना करने लगे। प्रभू ने सबको सांत्वना देते हुए अधंकासुर को ललकारा। घमासान युद्ध के पश्चात अधंकासुर का नाश हुआ। युद्ध के दौरान भगवान शिव के मस्तक से पसीने की बुंद धरती पर गिरी जिसके संयोग से पृथ्वी के गर्भ से मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई उसी समय उसी स्थान पर ब्रह्मा जी द्वारा उन्हें शिव पिण्ड़ के रूप में स्थापित कर दिया गया। देवताओं और ब्राह्मणों द्वारा पूजित यह स्थान वर्तमान में मंगलनाथ के नाम से सारे भारत में प्रसिद्ध है। उज्जैन शहर से चार-पांच की.मी. की दूरी पर क्षिप्रा नदी के किनारे हरे-भरे स्थान पर स्थित यह मंदिर अद्भुत शांति और सकून प्रदान करता है।
भानू परिवार का यहां हर मंगलवार को जाना होता है। सो उसी के सौजन्य से हमें भी इस अनोखी जगह के दर्शनों का लाभ प्राप्त हो गया। जब क्षिप्रा अपने पूरे सौंदर्य के साथ मंदिर के पिछवाड़े से कल-कल ध्वनी कर गुजरती होगी तो आने वाले भक्तों, पर्यटकों को स्वर्गिक आनंद की प्राप्ति होती होगी। आज इस पवीत्र नदी के ठहरे गंदे काले रंग के पानी जिसमें जहां-तहां जलकुम्भीयां उगी हुए हैं, को देख मन ग्लानी से भर उठता है, क्योंकि उसको इस रूप में पहुंचाने के हम सभी जिम्मेवार हैं। फिर भी कभी उज्जैन यात्रा पर आयें तो मगलनाथ के भी दर्शन जरूर करें।
18 टिप्पणियां:
हमें एक नई जानकारी मिली. क्या यह काल भैरव के मन्दिर के आस पास है? मंगल के उत्पत्ति की पौराणिक गाथा से भी हम अनभिग्य थे. बहुत ही आभार.
bhagvaan kare aap yaatra karte rahen aur hame pauranik kahaniyaa sunate rahen dhanyvaad
नम्बर एक ब्लॉग बनाने की दवा ईजाद देश,विदेशों में बच्ची धूम!!
http://yaadonkaaaina.blogspot.com/2009/02/blog-post_7934.html
आपका साधुवाद इतनी सुंदर कथा सुनाने और इतनी सुंदर जानकारी देने के लिए.....
उज्जैन तो हम भी गए थे और बहुत से स्थानों पर पूजा दर्शन किया,परन्तु इस तथ्य से अनभिग्य रहे,इसका बड़ा अफ़सोस हो रहा है.
आपकी बैटन से पूर्ण सहमत हूँ...... रुकी हुई (रोकी गई)क्षिप्रा नदी के जल कि जो दुर्दशा देखी तो मन ग्लानी और कष्ट से भर गया....ईश्वर ने हमें कितने अमूल्य धरोहर दिए हैं,किंतु हम मनुष्य अपनी क्षुद्रतावस अपने हाथों उसे नष्ट कर रहे हैं...
बहुत सुंदर जानकरी दी शर्मा जी आप ने लेकिन लगता है कि कही उस अंधक के रिशते दार बच गये ओर आज के नेता बन गये,
आप के ब्लाघ पर बहुत कुछ नया मिलता है.
धन्यवाद
हा जी, आप सही कह रहे हैं. उज्जैन अक्सर ही जाना होता है. तो वहां मंगलनाथ और भैरव बाबा के दर्शन जरुर करते हैं.
मंगल नाथ बाबा यानि त्रिपुरारी शिव का यहां गुलाब के फ़ूलों से श्रंगार होता है.
रामराम.
jaanakaari ke lie abhaar
जानकारी एकदम सही दी है आपने, हम तो उज्जैन निवासी हैं, और कभी-कभार भूले-भटके 2-4 साल में एकाध बार हम मंगलनाथ चले जाते हैं… शिप्रा की यह दुर्दशा कोई आज की बात नहीं है… अकर्मण्य नेता-अधिकारी गठजोड़ काफ़ी समय से इसे यूँ ही बनाये हुए है… रही बात मंगलनाथ की, तो यहाँ दो पुजारियों में बैठक और चढ़ावे को लेकर माराकूटी चल रही है… जय हो, जय हो…
बहुत अच्छी और नई जानकारी दी आपने...
यह तो आज नई रोचक जानकारी मिली .शुक्रिया आपका
जानकारी के लिए बधाई. हर कमी का ठीकरा हम नेताओं पर नहीं फोड़ सकते हैं, दूसरों को दोष देने से पहले हमें देखना है की हम क्या कर रहे हैं. दूर न सही तो अपने नगर में ही. कहावत है की "Charity begins at home"
पता नहीं भोले बाबा कलियग के दैत्यों को कब ललकारेंगे?
bahut hi achhi jaankari aur rochak katha.
बढिया जानकारी प्रदान की आपने..........
अवश्य जायेंगे अब तो आपने इतनी रोचक जानकारी दी है :)
मंगल की उत्पत्ति की पौराणिक गाथा बताने के लिए धन्यवाद।
aapke blog se nirantar rochak aur achhi jankari mil rahi hai.....dhanyawad
सुब्रमणियन जी,
नमस्कार।
काल भैरव का मंदिर मंगलनाथ से दो-अढाई की.मी. की दूरी पर है। मंगलनाथ मंदिर के पहले एक सड़क क्षिप्रा नदी पार कर दूसरी तरफ जाती है। उस सड़क पर काल भैरव स्थित हैं। सीधे चलें तो मंगलनाथ पहुंचते हैं।
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