मंगलवार, 15 सितंबर 2009

रमन सिंह, एक मुख्य मंत्री ऐसा भी

हमारे प्रणव दा की खर्चों में कटौती की अपील पर जहां कुछ 'तकदीर के धनियों' के माथे पर बल पड़ गये हैं, अपनी शानो-शौकत में किफायत बरतने के निर्देश पर। वहीं कुछ 'राज महल' में मत्था टेकते वक्त अपनी किफायतों का वर्णन कर सर्वोच्च सत्ता की कृपा दृष्टि का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश में जुटे हैं। गोया यह भी एक मौका हो गया भविष्य संवारने का।
यहां इनके कच्चे चिट्ठे खोलने की बजाय मैं एक ऐसे मुख्य मंत्री की ओर सबका ध्यान ले जाना चाहता हूं जो सत्ता में आने के बावजूद किफायत के पक्ष में रहा है। ना ज्यादा ताम-झाम, ना दिखावा, नाहीं उपलब्ध होने के बावजूद सरकारी साधनों का उपयोग। ये हैं छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री, श्री रमन सिंह।
मैं ना किसी पार्टी के पक्ष में हूं ना विपक्ष में, पर जो दिखता है वह बतला रहा हूं। यह भला आदमी प्रणव दा की अपील के पहले से ही जहां तक हो सकता है अपने क्षेत्र का पैसा बचाने की सोचता रहता है। एक पिछड़े और गरीब प्रांत की उन्नति यदि कोई चाहता है तो उसकी टांग खिंचाई के बदले उसे प्रोत्साहन मिलना ही चाहिये। भले ही यह विपक्ष का नेता है, पर जो चीज जनता के हित में है उसे तो उजागर होना ही चाहिये। जिनके लिये आज प्रणव जी को निर्देश देने पड़ रहे हैं उन भले लोगों के भी आंख, कान, दिमाग है। उन्हें देश और देश की जनता क्यों नहीं दिखाई पड़ती। प्रधान मंत्री की बात ना भी करें, क्योंकि उनकी मजबूरी हो सकती है, पद की गरिमा के कारण। वैसे भी आज सोनिआ जी का एकानामी क्लास से सफर एयर इंडिआ को काफी मंहगा पड़ा सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर, तो रमन सिंह जी के अलावा एक और शख्शियत है जो किफायत में विश्वास रखती है। वह हैं हमारी रेल मंत्री ममता बनर्जी।
अंत में मैं आप सबसे एक बात पूछना चाहता हूं। अभी दो-चार दिन पहले दो मंत्री श्रेष्ठों ने कहा था कि वह होटलों का खर्च अपनी जेब से दे रहे हैं। इस बात पर कितने लोगों ने विश्वास किया होगा ?

8 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

वैसे भी आज सोनिआ जी का एकानामी क्लास से सफर एयर इंडिआ को काफी मंहगा पड़ा सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर, बेटा भी तो भारत की खोज मै निलका था चुनाव से पहले... सब ढकओसले वाज है

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

दो मंत्री श्रेष्ठों

मंत्री और वो भी श्रेष्ठ्....मजाक कर रहे हैं.:)

Gagan ने कहा…

वत्स जी,
मजाक नहीं कर रहा हूं। लिखने वाले ने लिख दी है इनकी तकदीर में श्रेष्ठता। ये आम लोगों से अलग हैं। इन्हें प्राकृतिक आबो-हवा रास नहीं आती सो कृत्रिम माहौल में रहते हैं। मेदे का माद्दा ऐसा है कि जो 'खाया' है वह हजम करने के लिये जिम जरूरी है। जिन्होंने इन्हें यहां पहुंचाया उन्हीं से सुरक्षा की जरूरत आन पड़ी है। जिनके लिये कभी सायकिल भी सपना थी उन्हें ही अब पूरा हवाई जहाज चाहिये।
ये अनंत हैं इनकी माया अनन्ता। इनकी तो मौजें हैं, मरती है जनता।

विवेक रस्तोगी ने कहा…

रमन सिंह जी के बारे में तो मैं भी आपका समर्थन करता हूँ।

P.N. Subramanian ने कहा…

रमण सिंह जी की तारीफ तो करनी ही होगी.

राज भाटिय़ा ने कहा…

शर्मा जी होगे जरुर होंगे ऎसे लोग, आज भी अच्छे नेता मिलते है,ओर अच्छे लोग हर तरफ़ है, इन्ही अच्छे लोगो के कारण भारत टिका हुआ है, वरना यह घटोले वाज, ओर ड्रामे वाज तो कब का देश के साथ हमे बेच कर खा जाये

शरद कोकास ने कहा…

किफायत वे कर सकते हैं जिनके पास अथाह है जिनके पास खोने को कुछ नही है वे क्या करेंगे । मंत्रियों के खर्च क्या होते हैं यह बात अब सभी जानते हैं सुरक्षा , दफ्तर , सूचना तंत्र , यात्रायें यहीं खर्च् होता है । इसमे किफायत के लिये क्या किया जा सकता है ?

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

देखना है कि अकेला चना क्या कमाल कर पाता है?

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