रविवार, 30 मार्च 2025

शिव, मेरा मैन फ्राइडे

बालकगणों के लिए मील के फैक्ट्री एरिया के अलावा हर जगह, हर क्षेत्र, निर्बाध था ! उसी के चलते एक घर में काम करते शिव को देखना हुआ। सांवले रंग का, गोल-मटोल, भोला-भाला, नाटा सा बालक ! कोई ऐब नहीं, कोई लत नहीं। उससे कभी बातचीत नहीं होती थी, पर जब भी मुझे दिखता, उसके चेहरे पर एक बाल सुलभ मुस्कान खिंच जाती ! अच्छा लगता था वह मुझे.................!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

मैं छोटा था और वह मुझसे भी छोटा था ! पता नहीं कहां से आया था, कौन लाया था ! यादाश्त में उसका घरों में काम करते सहायक का रूप ही दर्ज है। शिव उसका नाम  था, ना आगे कुछ ना ही पीछे ! कभी पूछा भी नहीं ! भले ही नाम के आगे-पीछे कुछ न हो पर मेरे साथ शायद उसके किसी पिछले जन्म का कोई संबंध जरूर था !

शिव, पचास साल पहले 

बात साठ के उत्तरार्द्ध की है। बंगाल के नार्थ परगना जिले के भाटपारा इलाके में स्थित रिलायंस जूट मील में  बचपन का वह बेफिक्र, सुखद, अवर्चनीय समय था ! स्कूल से कॉलेज और फिर कार्यक्षेत्र तक का सफर वहीं रहते पूरा हुआ ! उस जगह से मेरे परिवार का पच्चीस साल से भी ज्यादा का नाता रहा !

लॉन 

मील के स्टाफ परिसर में देश के तकरीबन हर प्रांत के लोगों के होने के बावजूद वहां एक परिवार का माहौल था ! तीज-त्यौहार, सुख-दुःख सबके साझा होते थे ! बच्चों को खेल-कूद या किसी भी घर में आने-जाने की पूरी छूट तो थी पर लाड-प्यार-डांट-डपट का हक भी सभी बड़ों को था ! उन दिनों वहां के सर्वेसर्वा डागा जी थे ! जो सिर्फ मील के ही नहीं, उसके स्टाफ के परिवारों के भी संरक्षक थे ! हर कोई उन्हें परिवार के मुखिया के रूप में आदर सहित देखता था ! 

परिसर 

बात हो रही थी शिव की ! जैसा कि मैंने बताया बालकगणों के लिए वहां की हर जगह, हर क्षेत्र, निर्बाध था ! उसी के चलते एक घर में काम करते शिव को देखना हुआ। सांवले रंग का, गोल-मटोल, भोला-भाला, नाटा सा बालक ! कोई ऐब नहीं, कोई लत नहीं। उससे कभी बातचीत नहीं होती थी पर जब भी मुझे दिखता उसके चेहरे पर एक बाल सुलभ मुस्कान खिंच जाती ! अच्छा लगता था वह मुझे। 

कैसे भुलाएं इस जगह को 

स मय ने अपनी यात्रा के दौरान मुझे रिलायंस से करीब बीस किमी दूर सोदपुर में स्थित कमरहट्टी जूट मील पहुंचा दिया ! काम मैं वहां जरूर करता था, पर सप्ताहंत या मौका मिलते या बना कर ''घर'' पहुँच जाया करता था। ऐसे ही साल भर बीत गया ! एक दिन रिलायंस आया हुआ था कि अचानक शिव मेरे पास आया और मेरे साथ चलने की इच्छा जाहिर की ! उन दिनों मेरे खाने-पीने का इंतजाम मील के मेस में ही था ! उसके रहने-खाने के इंतजाम के बारे में सोच-विचार कर, कुछ समय पश्चात मेस में उसे सहायक के रूप में रखवा उसके रहने खाने का प्रबंध करवा कर मैंने उसकी इच्छा पूरी कर दी।    

वृक्षों के पीछे हुगली यानी गंगा नदी 

यहां से शुरू होती है शिव के मेरे मैन फ्राइडे बनने की यात्रा ! पता नहीं उस किशोर को मेरे से क्या लगाव था, काम तो उसको रिलांयस में भी मिल सकता था ! खैर ! यहां वह मेरी छोटी से छोटी जरुरत का ध्यान और ख्याल रखने लगा ! कभी-कभी मेरे साथ रिलायंस भी चला जाता था। हालांकि मेस का खाना साफ-सुथरे परिवेश में सफाई पसंद महाराज द्वारा बहुत अच्छी क्वालिटी का बना होता था, पर माँ को उस बारे में सदा चिंता लगी रहती थी ! ऐसे ही एक दिन इस समस्या के निदान हेतु शिव ने माँ को कह दिया आप दोपहर का खाना तैयार रखा करें,  मैं भैया के लिए ले जाया करूँगा !

मुझे इस सांठ-गाँठ के बारे में कुछ पता नहीं था। एक दिन ग्यारह बजे काम से लौटने पर देखता हूँ कि मेरे कमरे में टेबल पर एक टिफिन रखा हुआ है ! पूछताछ पर शिव ने बताया मैं घर से लाया हूँ ! घर से.......! मैं भौचक्क ! यहां यह बताना जरुरी है कि सिमित समय में दोनों जगहों पर आना-जाना आसान नहीं था ! सीधा सड़क मार्ग नहीं था, बस बदलनी पड़ती थी ! वैसे भी सड़क मार्ग से बहुत समय लगता था ! इसलिए यात्रा कई चरणों में पूरी करनी पड़ती थी ! पहले आधा की.मी. तय कर मेन रोड़ पर आना पड़ता था, वहां से बस ले कर सोदपुर स्टेशन, फिर वहां से लोकल ट्रेन से सातंवा स्टेशन कांकिनाड़ा ! उसके बाद फिर वहां से तकरीबन पौन की.मी. पर स्थित मील के अंदर घरों तक ! फिर वैसी ही वापसी ! पागलपन जैसा काम था !

मुझे याद है, उस दिन वैसा करने पर मैं शिव पर बहुत झल्लाया था, गुस्सा हुआ था ! पर वह सर झुकाए सब सुनता रहा..........फिर माँ की ममता सब पर भारी रही ! समय अपनी गति से चलता रहा ! पांच साल निकल गए ! इसी बीच प्रभु ने भी मुझे गृहस्त बनाने की योजना बना डाली ! दिल्ली से संबंध जुड़ा ! यहां भी शिव साये की तरह मेरे साथ रहा ! एक राज की बात बताऊँ, शिव के दिल्ली प्रवास ने वधु-पक्ष पर काफी रुआब डाला था 😀  

हा लांकि शिव ने मुझसे कभी कुछ नहीं मांगा, पर उसके भविष्य को और आने वाली जिम्मेदारियों को ध्यान में रख मैंने उसे मील में स्थाई काम पर रखवा दिया ! मेहनती तो बहुत था, वहां भी कभी किसी को शिकायत का मौका नहीं दिया। 

मय का फेर ! बिमारी और स्वास्थय के चलते मुझे काम छोड़ना पड़ा ! इसी चक्कर में दिल्ली प्रवास और व्यस्तता के चलते सब पीछे छूट गया ! शिव की खोज-खबर लेने की कोशिशें नाकाम रहीं ! पर मुझे विश्वास है कि अपनी मेहनत के बूते वह जहां भी होगा खुश होगा ! प्रभु उसे स्वस्थ-प्रसन्न रखें ! 

शुक्रवार, 21 मार्च 2025

रॉबिन्सन क्रूसो का मैन फ्राइडे, क्या से क्या हो गया

अपने सृजन के समय जो चरित्र एक भरोसेमंद, भलामानस व मददगार के रूप में गढ़ा गया था ! वह आज तक आते-आते पूर्णतया रीढ़-विहीन, मतलब-परस्त, कुटिल, धूर्त और सिर्फ अपने भले की सोच रखने वाला हो गया है ! वैसे तो ये समाज के हर तबके में उपलब्ध है, पर इनकी हाई-ब्रीड राजनितिक नर्सरियों में बड़ी कुशलता और देख-रेख के बीच पनपती है ! जिन्हें बड़ी आसानी से देखा, पहचाना तो जा सकता है पर वह आम इंसान की जिंदगी के लिए खरपतवार ही सिद्ध होती है.............!

#हिन्दी_ब्लागिंग

 भी-कभी साहित्य का कोई शब्द, वाक्य, मुहावरा या चरित्र वर्षों बाद पुस्तक के पन्नों से निकल साक्षात देह धारण कर लेता है ! ऐसे कई उदाहरणों में से एक है, वर्षों पहले लिखे गए एक उपन्यास 'रॉबिन्सन क्रूसो' का एक काल्पनिक पात्र ''मैन फ्राइडे'' ! हम में से अधिकांश ने वह रोचक उपन्यास जरूर पढ़ा होगा। 

अपने मैनफ्राइडे के साथ क्रूसो  
ज से तकरीबन आठ सौ साल पहले एक अंग्रेज लेखक डैनियल डेफो या डैनियल फ़ो​ ने एक उपन्यास की रचना की थी, जिसका नाम था रॉबिन्सन क्रूसो। यह इतना लोकप्रिय हुआ कि 1719 में ही इसके चार संस्करणों ने छप कर इतिहास रच दिया। केवल पुस्तक रूप में ही नहीं बल्कि फिल्म, टेलीविजन और रेडियो तक में भी इसका रूपांतरण हुआ ! आज भी उसकी कहानी उतनी ही लोकप्रिय है। 

सका नायक क्रूसो अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध इंग्लैंड से समुद्री यात्राओं पर निकल पड़ता है। अपनी कई रोमांचक, खतरनाक समुद्री यात्राओं में से एक कठिन उथल-पुथल भरी यात्रा में उसका जहाज तूफान में नष्ट हो जाता है और वह एक टापू में शरण लेता है ! वही उसकी भेंट एक स्थानीय व्यक्ति से होती है, पर दोनों एक दूसरे की भाषा नहीं समझते ! पर इसके बावजूद वह स्थानीय जंगली व्यक्ति क्रूसो का वफादार सेवक व सखा बन उसकी हर संभव मदद करता है, उसे हर खतरे से यहां तक कि खुद को जोखिम में डाल नरभक्षियों से भी बचाता है ! चूंकि जिस दिन इनकी भेंट होती है वह दिन शुक्रवार का था, इसलिए क्रूसो ने संवाद हीनता की वजह से उसे, मेरा आदमी शुक्रवार यानी मैन फ्राइडे का नाम दे दिया !

आज का शुक्रु 
पने सृजन के समय जो चरित्र एक भरोसेमंद, भलामानस व मददगार के रूप में गढ़ा गया था ! परंतु समय के साथ अब वह एक अपमान सूचक शब्द सा बन गया है ! तक आते-आते उसका अर्थ  पूर्णतया रीढ़-विहीन,  मतलब-परस्त, कुटिल, धूर्त और सिर्फ अपने भले की सोच रखने वाला हो गया है ! वैसे तो ये समाज के हर तबके में  उपलब्ध है, पर इनकी हाई-ब्रीड, राजनितिक नर्सरियों में बड़ी कुशलता और देख-रेख के बीच पनपती है ! जिन्हें बड़ी आसानी से देखा, पहचाना तो जा सकता है पर वह आम इंसान की जिंदगी के लिए खरपतवार ही सिद्ध होती है.......! 

@आभार अंतर्जाल 

मंगलवार, 18 मार्च 2025

लड्डू गोपाल जी के संरक्षण में चल रही एक मिठाई की दुकान

दुकान में ग्राहक आते हैं, अपनी पसंद की मिठाई लेते हैं, डिब्बे पर लिखी सारी जानकारी पढ़ते हैं और पास पड़े डिब्बे में उसकी कीमत डाल देते हैं। ग्राहकों की सहूलियत के लिए पास ही अलग-अलग मूल्यवर्ग के नोट भी रखे रहते हैं जिससे मिठाई की उचित कीमत अदा की जा सके। क्यू आर कोड से भी भुगतान की सुविधा है ! इसके अलावा जिनके पास पैसे नहीं हैं, वे भी मिठाई ले जा सकते हैं, इस विश्वास के साथ कि जब भी संभव होगा, वे उधार चुकता कर देंगे...........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

के दौर में, जहां भाई-भाई का विश्वास नहीं करता ! धन-दौलत के लालच पिता-पुत्र में ठन जाती हो ! छोटी-छोटी बातों पर संदेह किया जाता हो ! आस्था-विश्वास-भाईचारा-इंसानियत किसी बीते युग की बातें लगती हों ! वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनकी ईश्वर पर अटूट आस्था है। जिनका विश्वास है कि भले ही दिखते ना हों पर भगवान सदा हमारे साथ रहते हैं !  
 
लड्डू गोपाल जी 
बलपुर के नेपियर टाउन में रहने वाले ऐसे ही एक प्रभु भक्त हैं, विजय पांडे जी। उनका मिठाई का कारोबार है। उनकी बचपन से ही श्री कृष्ण जी के बालरूप लड्डू गोपाल में गहरी आस्था व श्रद्धा है। चौबीस घंटे खुली रहने वाली उनकी दुकान 2014 से मंदिरों और पूजास्थलों के साथ-साथ श्रद्धालुओं की मांग पूरी करती आ रही है। पर उस दूकान में ना हीं कोई मालिक है, ना हीं कोई विक्रेता है, ना हीं कोई कैशियर है, ना हीं कोई सुरक्षा कर्मी ! यह दुकान पूरी तरह से विश्वास और ईमानदारी पर टिकी हुई है और पूरी तरह से भगवान के भरोसे चल रही है। यहां आने वाला हर ग्राहक अपनी जरूरत के अनुसार मिठाई उठाता है और पूरी ईमानदारी से पैसे रखकर चला जाता है। 

विजय पांडे जी 
ऐसा ख्याल कैसे आया, इस बारे में विजय जी बताते हैं कि एक दिन उनकी दुकान पर एक व्यक्ति आया, जो अपनी बेटी के जन्म-दिन पर मिठाई लेना चाहता था पर उसके पास पैसे नहीं थे, पर संकोचवश वह बोल नहीं पा रहा था ! विजय जी ने उसकी मजबूरी समझी और बिना झिझक उसे मिठाई दे दी और कहा कि जब संभव हो, वह पैसे दे जाए ! इसी घटना के बाद उन्होंने सोचा कि मजबूरी के संकोच के कारण कोई भी इंसान से कुछ माँगने पर झिझकेगा परंतु ईश्वर से नहीं ! आज यदि यहां मेरी जगह दुकान पर खुद लड्डू गोपाल बैठे होते, तो यह आदमी इतना संकोच नहीं करता ! बस, उसी समय से उन्होंने पूरी दुकान प्रभु को सौंप दी, उन्हें ही मालिक बना दिया ! इसीलिए इस दुकान में प्रवेश करते ही सर्वप्रथम लड्डू गोपाल जी के दर्शन होते हैं। 
लड्डू गोपाल जी का कैश काउंटर 
ने पियर टाउन के शास्त्री ब्रिज के पास स्थित इस दुकान में ग्राहक आते हैं, अपनी पसंद की मिठाई लेते हैं, डिब्बे पर लिखी सारी जानकारी पढ़ते हैं और पास पड़े डिब्बे में उसकी कीमत डाल देते हैं। ग्राहकों की सहूलियत के लिए पास ही अलग-अलग मूल्यवर्ग के नोट भी रखे रहते हैं जिससे मिठाई की उचित कीमत अदा की जा सके। क्यू आर कोड से भी भुगतान की सुविधा है ! इसके अलावा जिनके पास पैसे नहीं हैं, वे भी मिठाई ले जा सकते हैं, इस विश्वास के साथ कि जब भी संभव होगा, वे उधार चुकता कर देंगे ! देश में अपनी तरह का शायद यह पहला प्रयोग है !
प्रवेश द्वार 
विजय जी का कहना है, यहां जो भी ग्राहक आता है, तो उसे पता होता है कि वह किसी इंसान से नहीं, बल्कि भगवान से लेन-देन कर रहा है, ऐसे में बेईमानी की गुंजाइश ही नहीं बचती ! यह पूछने पर कि भविष्य कैसा होगा, उन्होंने कहा मुझे पूरा भरोसा है कि लोग लड्डू गोपाल से धोखा नहीं करेंगे, सब कुछ ठीक चलेगा ! इसका प्रमाण है वह वजन की मशीन जिसे ग्राहकों की वजन को लेकर किसी शंका के समाधान के लिए रखा गया है पर आज तक किसी ने भी उसका उपयोग नहीं किया है !
इस प्रयोग की सफलता के बाद आम लोगों के मन में यह सवाल भी उठता है कि क्या इसी तरह की ईमानदारी आधारित दुकानों की संख्या बढ़ सकती है ? क्या दूसरे व्यवसाय भी इस मॉडल को अपनाएंगे ? फिलहाल, विजय पांडे जी ने समाज को एक नई सोच और दिशा दी है, जहां मुनाफे से ज्यादा आस्था, विश्वास, सौहार्द का वातावरण दिखाई देता है ! प्रभु उनके भरोसे को डगमगाने ना दें ! 

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

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अरे ! हम लोग धर्म-भीरु हैं, सरल हैं, भोले हैं ! सभी लोगों पर विश्वास कर लेते हैं ! तभी तो कोई लाल-हरी चटनी खिला कर, कोई पानी छिड़क कर, कोई धु...