बुधवार, 31 जनवरी 2024

सर्दी पर भारी पड़ती, पाव भर की रजाई

पहाड़ी इलाकों में तो चार-चार किलो की या उससे भी भारी रजाईयां होना आम बात है। ज्यादा सर्दी या बर्फ पड़ने पर तो बजुर्गों या अशक्त लोगों को दो-दो रजाईयां भी लेनी पड़ती हैं। जिनके भार से बिस्तर पर हिलना ड़ुलना भी बेहाल हो जाता है। ऐसे में कोई पाव भर, भार वाली रजाई से ठंड दूर करने की बात करे तो आश्चर्य ही होगा ...........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

इस बार सर्दी कुछ ज्यादा ही खिंच गई ! खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही ! सोशल मीडिया पर रजाई का आविष्कार करने वाले व्यक्ति को याद कर उसके प्रति आभार व्यक्त करने वालों की तादाद बढ़ती ही जा रही है ! यदि उसकी खोज और रजाई के इतिहास की बात करेंगे तो एक ग्रंथ ही बन जाएगा ! हाँ, योरोप में इसकी ईजाद तब हुई, जब वहां के लोगों ने तुर्कों को सुरक्षा और ठंड से बचाव हेतु अपने कवच के नीचे कपड़े की परतों को लपेटे देखा ! अपने देश में भी रजाई का उपयोग सैंकड़ों वर्षों से होता आया है ! पर आज बात करते हैं जयपुरी रजाई की जिसकी शुरुआत तकरीबन तीन सौ साल पहले हुई थी, राजस्थान के जयपुर शहर से ! 

सर्दी की दस्तक पड़ते ही  गर्म कपड़े, कंबल और रजाईयां भी आल्मारियों से बाहर आने को आतुर हो जाते हैं ! कड़ाके की ठंड में रजाई ही है जो इंसान का सर्दी से बचाव का जरिया बनती है ! रजाई का नाम सुनते ही रूई से भरे एक भारी-भरकम ओढ़ने के काम आने वाले लिहाफ का ख्याल आ जाता है, जो जाड़ों में ठंड रोकने का आम जरिया होता है। पहाड़ी इलाकों में तो चार-चार किलो की या उससे भी भारी रजाईयां होना आम बात है। ज्यादा सर्दी या बर्फ पड़ने पर तो बजुर्गों या अशक्त लोगों को दो-दो रजाईयां भी लेनी पड़ती हैं। जिनके भार से बिस्तर पर हिलना ड़ुलना भी बेहाल हो जाता है। ऐसे में कोई पाव भर, भार वाली रजाई से ठंड दूर करने की बात करे तो आश्चर्य ही होगा !  
वैसे भी कभी-कभी एक बात सोचने को मजबूर करती है कि पुराने समय में रानी-महारानियाँ और उनके परिवार के सदस्य ठंड से कैसे बचाव करते होंगे। ठीक है सर्दी दूर करने के और भी उपाय हैं या थे, पर सर्दी से बचाव के लिए ओढ़ने को कभी न कभी, कुछ-न कुछ तो चाहिये ही होता होगा। उस पर अवध के नवाबों की नजाकत और नफासत तो जमाने भर में मशहूर रही है। वे क्यूंकर इतना भार सहते होंगे ! 

तभी सामने आती हैं जयपुरी रजाइयां ! जो अपने हल्केपन और तेज ठंड में भी गर्माहट देने के लिए विश्वप्रसिद्ध हैं ! एक तरह से उनकी ईजाद राजा-महाराजाओं को मद्दे नजर रख कर ही की गई थी ! ये खास तरह की रजाईयां, खास तरीकों से, खास कारीगरों द्वारा सिर्फ खास लोगों के लिये बनाई जाती थीं।  जिनका वजन होता था, सिर्फ एक पाव या उससे भी कम ! जी हां, एक पाव की रजाई, पर कारगर इतनी कि ठंड छू भी ना जाए ! धीरे-धीरे इसके फनकारों को जयपुर में आश्रय मिला और आज राजस्थान की ये जयपुरी रजाईयां दुनिया भर में मशहूर हैं।

आपकी आँखें हमारे लिए अनमोल हैं 
कहते हैं कि राजा सवाई जयसिंह ने जयपुर को बसाने के बाद विभिन्न कला के शिल्पियों को भी यहां आश्रय प्रदान किया था। उन्हीं शिल्पियों में एक थे, इलाही बक्श। जिनके वंशजों ने राजघराने के सदस्यों के लिए रजाइयां बनाने का काम शुरू किया था। जयपुर की इन रजाईयों का इतिहास करीब 300 साल पुराना है। ऐसी रजाई पहली बार कादर बक्श नमक शिल्पी ने 1723 में बनाई थी। जिसके बाद जयपुर की इस रजाई की गर्माहट को देश-विदेश के अनेकों गणमान्य लोगों ने महसूस किया ! आज भी इनके वंशज जयपुर के हवामहल मार्ग पर स्थित हाट में अपना शिल्प कौशल लिए उपलब्ध हैं ! 
इन हल्की रजाईयों को पहले हाथों से बनाया जाता था। जिसमें बहुत ज्यादा मेहनत, समय और लागत आती थी। समय के साथ-साथ बदलाव भी आया। अब इसको बनाने में मशीनों की सहायता ली जाती है। सबसे पहले रुई को बहुत बारीकी से अच्छी तरह साफ किया जाता है। फिर एक खास अंदाज से उसकी धुनाई की जाती है, जिससे रूई का एक-एक रेशा अलग हो जाता है। इसके बाद उन रेशों को व्यवस्थित किया जाता है फिर उसको बराबर बिछा कर कपड़े में इस तरह भरा जाता है कि उसमें से हवा बिल्कुल भी ना गुजर सके। फिर उसकी सधे हुए हाथों से सिलाई कर दी जाती है। सारा कमाल रूई के रेशों को व्यवस्थित करने और कपड़े में भराई का है जो कुशल कारीगरों के ही बस की बात है। रूई जितनी कम होगी रजाई बनाने में उतनी ही मेहनत, समय और लागत बढ़ जाती है। क्योंकि रूई के रेशों को जमाने में उतना ही वक्त बढता चला जाता है। 
 
जयपुरी रजाई बनने के दौर में 
छपाई वाले सूती कपड़े की रजाई सबसे गर्म होती है क्योंकि मलमल के सूती कपड़े से रूई बिल्कुल चिपक जाती है। सिल्क वगैरह की रजाईयां देखने में सुंदर जरूर होती हैं पर उनमें उतनी गर्माहट नही होती। वैसे भी ये कपड़े थोड़े भारी होते हैं जिससे रजाई का भार बढ जाता है। तो अब जब भी राजस्थान जाना हो तो पाव भर की रजाई की खोज-खबर जरूर लिजिएगा। 

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

10 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

गुनगुनी पोस्ट |

yashoda Agrawal ने कहा…

बेहतरीन
हमारे पास भी थी कभी
सादर वंदे

Sweta sinha ने कहा…

अब भी असली जयपुरी रजाई मिलती है क्या?
ज्ञानवर्धक लेख सर।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २ फरवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी
हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

यशोदा जी
सदा स्वागत है आपका

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

श्वेता जी
कहते हैं कि इसके आविष्कारक कादर बक्श के वंशजों की हवामहल मार्किट में 27 न. की दुकान है ! पर अब गुणवत्ता पहले जैसी है कि बाजार की भेंट चढ़ गई कहा नहीं जा सकता !

उषा किरण ने कहा…

मेरी मनपसंद रज़ाइयाँ

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

उषा जी
"कुछ अलग सा" पर आपका सदा स्वागत है

Sudha Devrani ने कहा…

सच में जयपुरी रजाइयों की बात ही अलग है ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुधा जी
अजूबा ही हैं ये !

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