शनिवार, 10 फ़रवरी 2024

रामायण का सबसे तिरस्कृत पात्र, मंथरा

कैकेई का अपनी इस चचेरी बहन के साथ बहुत लगाव तथा प्रेम था ! दोनों बचपन की सहलियां भी थीं ! एक-दूसरे के बिना उनका समय नहीं बीतता था ! इसीलिए मंथरा की ऐसी हालत देख, उसके भविष्य को ले कर कैकेई भी चिंतित व दुखी रहा करती थी ! इसीलिए अपने विवाह के पश्चात उसको अपने साथ अयोध्या ले आई थी ! परंतु उसके रंग-रूप को देख अयोध्यावासी उसे कैकई की बहन नहीं बल्कि मुंहलगी दासी ही समझते थे.......!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

महाग्रंथ रामायण में मंथरा का विवरण एक ऐसी महिला का है, जिसने श्री राम को वनवास दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ! इस संदर्भ में कई तरह की मान्यताएं प्रचलन में हैं ! कहीं उसका दुंदुभी नाम की गंधर्वी के रूप में उल्लेख है जो देवताओं की सहायक बन कैकई को उकसा कर श्री राम को वन भेजने का उपक्रम करती है, जिससे राक्षसों का नाश हो सके ! तो कहीं उसका भक्त प्रह्लाद के पुत्र विरोचन की पुत्री के रूप में उल्लेख है जो अपनी तथा राक्षस जाति की बदतर हालत का जिम्मेवार भगवान विष्णु को मान उनसे बदला लेने की ठान लेती है और त्रेता युग में पुनर्जन्म ले विष्णु जी के अवतार भगवान राम के जीवन को तहस-नहस कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करती है ! 

श्रीराम 
इसी संदर्भ में एक और कथा भी उल्लेखनीय है ! जिसके अनुसार कैकेई के पिता कैकेयराज अश्वपति का एक भाई था, जिसका नाम वृहदश्व था। उसकी एक बेहद खूबसूरत, विशाल नेत्रों वाली, बुद्धिमान, गुणवती बेटी थी, जिसका नाम रेखा था ! परंतु उसकी कुछ कमजोरियां भी थीं ! वह आत्ममुग्धता से बुरी तरह ग्रसित थी ! अपने आप से बेहद प्रेम करती थी ! अपने सौंदर्य पर उसे घमंड भी था ! उसकी चाहत थी कि उसका रूप-लावण्य कभी भी मलिन ना हो ! इसके लिए वह तरह-तरह उपचार व औषधियों का सेवन करती रहती थी ! इसी तरह के एक प्रयोग का उस पर विपरीत असर हो गया और उसके अंगों ने काम करना बंद कर दिया ! चिकित्सकों के अथक प्रयासों के बाद वह ठीक तो हो गई पर उसके शरीर की कांति जाती रही ! रूप-लावण्य तिरोहित हो गया ! चेहरा-मोहरा कुरूप हो कर रह गया तथा उसकी रीढ़ की हड्डी में स्थाई विकार आ गया, इसी कारण उसका नाम भी मंथरा पड़ गया ! इसी दोष के कारण उसका कभी विवाह भी नहीं हो सका ! इस सदमे से वह गहरे अवसाद में डूबती चली गई ! धीरे-धीरे नकारात्मकता उस पर बुरी तरह हावी हो गई ! बुद्धि-विवेक साथ छोड़ते चले गए ! 

रेखा/मंथरा 
कैकेई का अपनी इस चचेरी बहन के साथ बहुत लगाव तथा प्रेम था ! दोनों बचपन की सहलियां भी थीं ! एक-दूसरे के बिना उनका समय नहीं बीतता था ! इसीलिए मंथरा की ऐसी हालत देख, उसके भविष्य को ले कर कैकेई भी चिंतित व दुखी रहा करती थी ! इसीलिए अपने विवाह के पश्चात उसको अपने साथ अयोध्या ले आई थी ! परंतु उसके रंग-रूप को देख अयोध्यावासी उसे कैकई की बहन नहीं बल्कि मुंहलगी दासी ही समझते थे ! पर दशरथ की प्रिय रानी की सहचरी होने के कारण उसका सम्मान भी किया करते थे !  

षड्यंत्र 
समय के साथ जब मंथरा को श्री राम के राजतिलक के समाचार पता चला तो वह सोच में पड़ गई कि यदि महारानी कौशल्या का पुत्र राजा बनेगा तो कौशल्या राजमाता कहलाएगी और उनका स्थान अन्य रानियों से श्रेष्ठ हो जाएगा ! उनकी दासियां भी अपने आपको मुझसे श्रेष्ठ समझने लगेंगीं। इस समय कैकेयी राजा की सर्वाधिक प्रिय रानी है। राजमहल पर एक प्रकार से उसका शासन चलता है। इसीलिये राजप्रासाद की सब दासियां मेरा सम्मान करती हैं। किन्तु कौशल्या के राजमाता बनने पर वे मुझे हेय दृष्टि से देखने लगेंगीं। उनकी उस दृष्टि को मैं कैसे सहन कर सकूंगी ! मेरा जीवन तो और भी दूभर हो जाएगा ! इस विकृत सोच ने उसके कुटिल मष्तिष्क में एक षड्यंत्र की रुपरेखा तैयार कर दी ! 

दो वर 
अपनी साजिश को मूर्तरूप देने के चलते मंथरा ने कैकेई के कान भरे ! उसे कौशल्या के राजमाता बनने के पश्चात राजा दशरथ से दूर होने का डर दिखाया ! राम के राजा बनने के बाद उसके तथा भरत के अंधकारमय भविष्य का काल्पनिक भय दिखा उसे उकसाया ! इसके बाद जो हुआ उसे तो संसार ने भी देखा ! जो भी हो मंथरा के बिना तो राम कथा की कल्पना भी नहीं की जा सकती ! कहते हैं कि यह सब होने के पश्चात उसे अपने किए पर ग्लानि और पश्चाताप भी हुआ और वह राम के अयोध्या लौटने तक मुंह छुपा कर एकांत में पड़ी रही ! श्री राम ने वनवास से वापस आते ही उसके बारे में पूछा और उसके पास जा उसे स्नेहवश गले लगा उसके सारे अपराध क्षमा कर दिए !

नेत्र चिकित्सा का विश्वसनीय केंद्र 
वैसे हमारे प्राचीन ग्रंथों की कथाओं के साथ इतनी किंवदंतियां इस तरह जुड़ी हुई हैं कि भेद करना मुश्किल हो जाता है कि वास्तविकता क्या थी और कल्पना क्या है..........!

9 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... ग्रंथों की महिमा अपरम्पार है ...

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हार्दिक आभार सुशील जी 🙏

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नासवा जी
हार्दिक आभार 🙏

Kamini Sinha ने कहा…

सचमुच कभी कभी भेद करना मुश्किल हो जाता है कि सच क्या होगा।उस वक्त मन को समझाते हैं कि बस "राम" ही सत्य है। सुन्दर जानकारी आदरणीय 🙏

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
अनेकानेक धन्यवाद🙏

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

रूपा जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है आपका🙏🏻

हरीश कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हरीश भाई
सदा स्वागत है आपका🙏🏻

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