रविवार, 21 जनवरी 2024

गांव की हवा फुसफुसाती है

हालांकि दीवारों के भी कान होते हैं ! पर वे बोल नहीं सकतीं ! पर उन कानों से हो कर गुजरने वाली  हवाओं की फुसफुसाहट सब कुछ बयान कर देती हैं ! गांव के एक छोर से दूसरे छोर तक ने बिना कहे हरिया की जिम्मेवारी संभाल ली थी और इधर महानगर में, देश की राजधानी में, मेरे एक ही मकान के चार फ्लोरों की सीमित सी जगह में तीन परिवारों को पता नहीं है कि चौथी मंजिल पर मैं हफ्ते भर से बाहर नहीं निकला हूँ, बीमार हूँ ..........! 


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#हिंदी_ब्लागिंग 

अंधेरा गहराने लगा था ! शाम का पल्लू थामे रात धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ाते आ रही थी ! हरिया की तबियत पिछले कुछ दिनों से ठीक नहीं चल रही थी ! पर उठना तो था ही ! गांव-देहात में अभी भी संध्या समय बिस्तर पर पड़े रहना अच्छा नहीं समझा जाता ! वैसे भी घर में दीया-बाती भी तो करनी थी ! परबतिया को आज ही ना चाहते हुए भी हरिया को इस हालत में छोड़ जरुरी काम से मायके जाना पड़ गया था ! दो ही जनों का तो परिवार था !  

हरिया पूजास्थल पर दीपक जला कर मुड़ा ही था कि खिड़की से उसे दूर से तपन माली आता दिखाई पड़ा ! गांव में इस समय ऐसे दिनों में बाहर निकलना अजूबा ही होता है ! हरिया खिड़की पर खड़ा हो उसे तकने लगा ! तपन के कुछ और नजदीक आने पर दिखा कि वह कंधे पर कंबल और हाथों में एक थैला और लालटेन भी लिए है ! गांव में बिजली थी पर कब चली जाए ठिकाना नहीं था ! कहीं जा रहा होगा जरुरी काम से, यह सोच हरिया वापस अपनी खाट पर आ बैठा ! वैसे भी इन दोनों परिवारों का कोई खास मेल-जोल नहीं था !

हरिया का घर  गांव के पूर्वी छोर पर है और तपन का ठीक दूसरे पश्चिमी छोर पर ! गांव को मुख्य सड़क से तीन पगडंडिया जोड़ती हैं ! इसे सड़क तक जाना था तो बाजार के बीच से नजदीक पड़ता ! ठंड के दिनों में इस वक्त बिना काम कोई अपने घर से बाहर नहीं निकलता ! कंबल और लालटेन भी लिए है, कहीं दूर ही जा रहा होगा ! हरिया कमरे में आ तो गया था पर दिमाग उसका तपन में ही उलझा हुआ था !  इसी पेशोपेश में उसके घर के दरवाजे पर दस्तक हुई !

हरिया ने दरवाजा खोला ! सामने तपन खड़ा था ! उसने अभिवादन किया ! हरिया ने उसे अंदर आने को कहा ! हरिया के चेहरे की प्रश्नवाचक मुद्रा को देख तपन ने ही कहना शुरू किया ! काका, आपके लिए खाना लाया हूँ ! आपकी बहू कह रही थी कि पारबती काकी बाहर गईं हैं काका अकेले हैं उनकी तबियत भी ठीक नहीं है, सो रात को उनके पास ही रुक जाना ! सुबह ही उसने पता कर लिया था कि दोपहर का खाना और शाम की चाय रतनी बुआ पहुंचा गईं हैं ! इसीलिए मेरा अब आना हुआ ! हरिया अभिभूत था, उसने तपन और उसकी पत्नी को आशीर्वाद दिया और उसके आराम की व्यवस्था कर सोचने लगा प्रभु किसी को भी बेसहारा नहीं छोड़ते !

हालांकि दीवारों के भी कान होते हैं ! पर वे बोल नहीं सकतीं ! पर उन कानों से हो कर गुजरने वाली  हवाओं की फुसफुसाहट सब कुछ बयान कर देती हैं ! नहीं तो सुबह जाते समय पारबती ने किसी को कुछ बताया थोड़े ही था, पर उसे विश्वास था कि हरिया अकेला नहीं रहेगा ! वह भी तो ऐसे मौकों पर दूसरों के लिए सदा खड़ी रहती है ! सारा गांव एक परिवार ही तो है ! गांव के एक छोर से दूसरे छोर तक ने बिना कहे हरिया की जिम्मेवारी संभाल ली थी, बिना कोई एहसान जताए ! और इधर महानगर में, देश की राजधानी में, मेरे एक ही मकान के चार फ्लोरों की सीमित सी जगह में तीन परिवारों को पता नहीं है कि चौथी मंजिल पर मैं हफ्ते भर से बाहर नहीं निकला हूँ, बीमार हूँ ..........! 

13 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर | हरिया के बारे में बिल्लियों को पता नहीं था ?

Sweta sinha ने कहा…

समूचा गाँव एक परिवार है और शहर में असंख्य फ्लैटों से भरी सोसायटी में अपने फ्लैट में सिमटा अकेला परिवार।
प्रणाम सर
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २३ जनवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

Sudha Devrani ने कहा…

सही कहा आपने ऐसी आत्मीयता गाँवों में ही रह गई ...शहर में तो कोशिश करो भी तो लोगों को लगता है पता नहीं क्या मतलब होगा ।
बहुत सुन्दर सार्थक सृजन ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी
बिल्लियां मेरी बीमारी का हाल जानने आई हुईं थीं 😅

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

श्वेता जी
दस दिनों से नीचे नहीं उतरा, किसी को कोई खबर नहीं

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुधा जी
आभार, अपना ख्याल रखें, स्वस्थ-प्रसन्न रहें

Onkar ने कहा…

बहुत सुंदर

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

गाँव में आत्मीयता है लेकिन इसका कारण भी है। कई पीढ़ियों से गाँव में परिवार बसा रहता है और इस कारण गाँव वालों से रिश्ते पीढ़ियों पुराने होते हैं। शहरों में भी निम्न मध्यमवर्गीय सोसाइटी या मोहल्लों में आपको ये आत्मीयता दिख जाएगी। चाहें वहाँ इमारत ही क्यों न हो। हाँ, जैसे जैसे व्यक्ति आर्थिक रूप सम्पन्न सोसाइटी में जाता रहता है वैसे वैसे आत्मीयता घटती रहती है। ये इसलिए भी है क्योंकि अक्सर किसी को दूसरे की जरूरत कम ही पड़ती है और इस कारण लोग अपने में रमे रहते हैं।

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

*इमारत बहुमंजिली ही क्यों न हो..

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत सुंदर सृजन।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ओंकार जी
हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ऐसा नहीं है कि शहरों में आत्मीयता नहीं है, भाईचारा नहीं है सब है पर समय नहीं है ! आपा-धापी, भागदौड़ कहीं ना कहीं संवेदना पर चोट तो पहुंचाते ही हैं !
हरिया के साथ क्या हुआ नहीं हुआ, वह तो कल्पना है, पर मेरी आपबीती तो मेरे सामने है 😀

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनीता जी
सदा स्वागत है आपका🙏🏻

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