आपकी आँखें हमारे लिए अनमोल हैं |
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
बुधवार, 31 जनवरी 2024
सर्दी पर भारी पड़ती, पाव भर की रजाई
बुधवार, 24 जनवरी 2024
समय चक्र पर लगती छाप
रविवार, 21 जनवरी 2024
गांव की हवा फुसफुसाती है
हालांकि दीवारों के भी कान होते हैं ! पर वे बोल नहीं सकतीं ! पर उन कानों से हो कर गुजरने वाली हवाओं की फुसफुसाहट सब कुछ बयान कर देती हैं ! गांव के एक छोर से दूसरे छोर तक ने बिना कहे हरिया की जिम्मेवारी संभाल ली थी और इधर महानगर में, देश की राजधानी में, मेरे एक ही मकान के चार फ्लोरों की सीमित सी जगह में तीन परिवारों को पता नहीं है कि चौथी मंजिल पर मैं हफ्ते भर से बाहर नहीं निकला हूँ, बीमार हूँ ..........!
#हिंदी_ब्लागिंग
अंधेरा गहराने लगा था ! शाम का पल्लू थामे रात धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ाते आ रही थी ! हरिया की तबियत पिछले कुछ दिनों से ठीक नहीं चल रही थी ! पर उठना तो था ही ! गांव-देहात में अभी भी संध्या समय बिस्तर पर पड़े रहना अच्छा नहीं समझा जाता ! वैसे भी घर में दीया-बाती भी तो करनी थी ! परबतिया को आज ही ना चाहते हुए भी हरिया को इस हालत में छोड़ जरुरी काम से मायके जाना पड़ गया था ! दो ही जनों का तो परिवार था !
हरिया पूजास्थल पर दीपक जला कर मुड़ा ही था कि खिड़की से उसे दूर से तपन माली आता दिखाई पड़ा ! गांव में इस समय ऐसे दिनों में बाहर निकलना अजूबा ही होता है ! हरिया खिड़की पर खड़ा हो उसे तकने लगा ! तपन के कुछ और नजदीक आने पर दिखा कि वह कंधे पर कंबल और हाथों में एक थैला और लालटेन भी लिए है ! गांव में बिजली थी पर कब चली जाए ठिकाना नहीं था ! कहीं जा रहा होगा जरुरी काम से, यह सोच हरिया वापस अपनी खाट पर आ बैठा ! वैसे भी इन दोनों परिवारों का कोई खास मेल-जोल नहीं था !
हरिया का घर गांव के पूर्वी छोर पर है और तपन का ठीक दूसरे पश्चिमी छोर पर ! गांव को मुख्य सड़क से तीन पगडंडिया जोड़ती हैं ! इसे सड़क तक जाना था तो बाजार के बीच से नजदीक पड़ता ! ठंड के दिनों में इस वक्त बिना काम कोई अपने घर से बाहर नहीं निकलता ! कंबल और लालटेन भी लिए है, कहीं दूर ही जा रहा होगा ! हरिया कमरे में आ तो गया था पर दिमाग उसका तपन में ही उलझा हुआ था ! इसी पेशोपेश में उसके घर के दरवाजे पर दस्तक हुई !
हरिया ने दरवाजा खोला ! सामने तपन खड़ा था ! उसने अभिवादन किया ! हरिया ने उसे अंदर आने को कहा ! हरिया के चेहरे की प्रश्नवाचक मुद्रा को देख तपन ने ही कहना शुरू किया ! काका, आपके लिए खाना लाया हूँ ! आपकी बहू कह रही थी कि पारबती काकी बाहर गईं हैं काका अकेले हैं उनकी तबियत भी ठीक नहीं है, सो रात को उनके पास ही रुक जाना ! सुबह ही उसने पता कर लिया था कि दोपहर का खाना और शाम की चाय रतनी बुआ पहुंचा गईं हैं ! इसीलिए मेरा अब आना हुआ ! हरिया अभिभूत था, उसने तपन और उसकी पत्नी को आशीर्वाद दिया और उसके आराम की व्यवस्था कर सोचने लगा प्रभु किसी को भी बेसहारा नहीं छोड़ते !
हालांकि दीवारों के भी कान होते हैं ! पर वे बोल नहीं सकतीं ! पर उन कानों से हो कर गुजरने वाली हवाओं की फुसफुसाहट सब कुछ बयान कर देती हैं ! नहीं तो सुबह जाते समय पारबती ने किसी को कुछ बताया थोड़े ही था, पर उसे विश्वास था कि हरिया अकेला नहीं रहेगा ! वह भी तो ऐसे मौकों पर दूसरों के लिए सदा खड़ी रहती है ! सारा गांव एक परिवार ही तो है ! गांव के एक छोर से दूसरे छोर तक ने बिना कहे हरिया की जिम्मेवारी संभाल ली थी, बिना कोई एहसान जताए ! और इधर महानगर में, देश की राजधानी में, मेरे एक ही मकान के चार फ्लोरों की सीमित सी जगह में तीन परिवारों को पता नहीं है कि चौथी मंजिल पर मैं हफ्ते भर से बाहर नहीं निकला हूँ, बीमार हूँ ..........!
शुक्रवार, 19 जनवरी 2024
वही हो रहा है जो राम जी चाह रहे हैं
जिसने सारी कायनात बनाई है ! समय-काल बनाया है ! धर्म-ज्ञान बनाया है ! जिसके चाहे बिना पत्ता तक नहीं हिल पाता ! सूर्य-शनि जैसे ग्रह जिसके इशारे पर संचरण करते हैं ! जिसका नाम ही भवसागर पार करवा सकता है ! जो खुद अमंगलहारी हैं ! जिनके पिता के नाम का स्मरण ही दुःख दूर करने के लिए पर्याप्त है ! तुम उसके लिए मुहूर्त और इमारत में खामियां दिखलवा कर भ्रमित करना चाहते हो लोगों को ? वह भी अपनी तुच्छ कामनाओं के लिए ? तुम हो क्या ? तुम्हारा वजूद क्या है ? औकात क्या है तुम्हारी ! तुम.... तुम मुहूर्त बनाओगे उसके लिए जो खुद मुहूर्त बनाता है ! जो इतना शुभ है कि शुभ उसके चरणों में अपना शीश झुकाता है
#हिन्दी_ब्लागिंग
अयोध्या जाने से इंकार करने वालों की फोटो, उनके ब्यान मीडिया रोज ऐसे दिखा-बता रहा है जैसे कोई बहुत बड़ी घटना हो गई हो, यह बात तो देश की गलियों के कुत्ते-बिल्लियों को भी पता थी कि ये लोग मंदिर नहीं जाएंगे ! सारा देश जानता है कि ऐसे लोगों का ना कोई धर्म है, ना ईमान, ना नैतिकता है ना कोई विवेक ! इनका एक ही ध्येय है कुर्सी ! है तो बचाए रखो नहीं है तो उसको पाने के लिए देश तक की परवाह ना करो !
इनको अपने दंभ में पता ही नहीं चला कि यह कब एक इंसान से बैर के चक्कर में कैसे समाज, धर्म, देश और अब तो राम विरोधी भी बनते चले गए ! पर प्रभु की बेआवाज लाठी की चोट पर बिलबिलाते हुए आँख खुली तो एक एक तरफ तो खाई थी ही दूसरी तरफ और भी गहरी घाटी ! आसन्न संकट देख लगे चिल्लाने हम जाएंगे...हम जाएंगे..... ! पर 22 जनवरी के बाद ! क्यों भई ! तब क्या राम बदल जाएंगे ? स्थान बदल जाएगा ? मंदिर बदल जाएगा ? पूजा-अर्चना बदल जाएगी ? या जिन्होंने स्थापना करवाई उनके नाम बदल जाएंगे ?
एक और तरह के दादुर हैं जिन्होंने कुंठित मठाधीशों को भी बरगला दिया है ! वे मुहूर्त तथा मंदिर पर सवाल उठा रहे हैं ! कल एक चैनल पर एक ऐसे ही परपोषित मौलाना को भी लपेट लाए जिनका सनातन से कोई वास्ता नहीं है, वे भी मुहूर्त, आस्था, वास्तु पर अपना ज्ञान उगले जा रहे थे !
जिसने सारी कायनात बनाई है ! समय-काल बनाया है ! धर्म-ज्ञान बनाया है ! जिसके चाहे बिना पत्ता तक नहीं हिल पाता ! सूर्य-शनि जैसे ग्रह जिसके इशारे पर संचरण करते हैं ! जिसका नाम ही भवसागर पार करवा सकता है ! जो खुद अमंगलहारी हैं ! जिनके पिता के नाम का स्मरण ही दुःख दूर करने के लिए पर्याप्त है ! तुम उसके लिए मुहूर्त और इमारत में खामियां दिखलवा कर भ्रमित करना चाहते हो लोगों को ? वह भी अपनी तुच्छ कामनाओं के लिए ? तुम हो क्या ? तुम्हारा वजूद क्या है ? औकात क्या है तुम्हारी ! तुम.... तुम मुहूर्त बनाओगे उसके लिए जो खुद मुहूर्त बनाता है ! जो इतना शुभ है कि शुभ उसके चरणों में अपना शीश झुकाता है ! तुमने या तुम्हारे खानदान में भी किसी ने गीता पढ़ी है, जिसमें उसने ने खुद कहा है कि मैं इस सम्पूर्ण जगत का धारण-पोषण करने वाला हूं। पिता, माता, पितामह मैं ही हूं। देवताओं का गुरू भी मैं ही हूं। सबका स्वामी भी मैं ही हूं और तुम चले हो उसके लिए शुभ मुहूर्त की गणना करने .....!
अविवेक, अहम्, घमंड, सत्तामद जब सर पर सवार होते हैं, तो मनुष्य अधमावस्था को प्राप्त हो जाता है ! मदांधता में पतन अवश्यंभावी है चाहे वह कोई सम्राट हो, ऋषि हो, ज्ञानी हो, रावण हो या फिर शंकराचार्य ही क्यों ना हो ! आदि शंकराचार्य जी को यह कल्पना जरूर रही होगी कि भविष्य में मेरी धरोहर अयोग्य हाथों में भी जा सकती है पर उस वक्त पीठों का निर्माण भी अति आवश्यक था !
आज कल के विवाद में पामर लोगों द्वारा जिन प्रतिष्ठित नामों को भी घसीट लिया गया है उन आदरणीयों को भी तो एक बार जांच लेनी चाहिए थी कि हमारे नाम का कौन, कैसा, किस नियति से प्रयोग कर रहा है ? धर्म के बारे में उनका इतिहास क्या रहा है ? इतिहास ना खंगाल पाते तो सिर्फ तीन -चार महीनों का ही लेखा-जोखा देख लेते ! वर्षों की कमाई इज्जत, नाम, मर्यादा, प्रतिष्ठा दो दिनों में भू-लुंठित हो गई ! आज तो आम जनता यही समझ रही है कि पांच सौ सालों से भी ज्यादा समय तक महाराज ने प्रभु की सुध नहीं ली ! ठंड-गर्मी-आंधी-तूफान में एक टेंट में पड़े राम का ख्याल ना आया ! जबकि उसी राम की बदौलत खुद सोने के सिंहासनों पर विराजमान हो दुनिया भर की सुविधाओं का लाभ लेते रहे ! आज उन्हें निमत्रंण पर मान-अपमान नजर आ रहा है ! दुनिया को ज्ञान बांटने वाले खुद कैसे ऐसे अज्ञानी हो गए ! जब सारा देश राममय हुआ पड़ा है ! जड़-चेतन कोई भी विरोध का कोई स्वर सुनना नहीं चाहता तब ऐसा रवैया......! सब प्रभु की इच्छा है, वे यही चाहते होंगें !
जय श्री राम, जय-जय राम
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