बात कुछ दिनों पहले की है ! दोपहर करीब दो बजे का समय था ! रिमझिम फुहारें पड़ रही थीं ! सो उनका आनंद लेने के लिए पैदल ही ऑफिस से घर की ओर निकल पड़ा ! यही बात इंद्रदेव को पसंद नहीं आई कि एक अदना सा इंसान उनसे डरने की बजाय खुश हो रहा है ! बस, फिर क्या था ! उन्होंने उसी समय अपने सारे शॉवरों का मुंह एक साथ पूरी तरह खोल दिया। अचानक आए इस बदलाव ने मुझे अपनी औकात भुलवा मुझसे सौ मीटर की दौड़ लगवा दी ! उस समय तो कुछ महसूस नहीं हुआ, पर रात गहराते ही घुटने में दर्द ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दी ! जिसने मेरे नजरंदाजी रवैये के कारण अगले कुछ दिनों का अवकाश लेने पर मजबूर कर दिया ! पर इलाज करने और मर्ज बढ़ने के मुहावरे को मद्दे नजर रख, मैंने किसी ''डागदर बाबू'' को अपनी जेब की तलाशी नहीं लेने दी ! जुम्मा-जुम्मा करते 12-13 दिन हो गये पर दर्द महाशय घुटने के पेचो-ख़म में ऐसे उलझे कि निकलने का नाम ही नहीं ले रहे थे !
अब जैसा कि रिवाज है, तरह-तरह की नसीहतें, हिदायतें तथा उपचार मुफ्त में मिलने शुरू हो गए ! अधिकाँश सलाहें तो दोनों कानों में आवागमन की सुविधा पा हवा से जा मिले, पर कुछ अपने-आप को सिद्ध करने के लिए, दिमाग के आस-पास तंबू लगा बैठ गए ! सर्व-सुलभ उपायों को आजमाया भी गया ! ''फिलिप्स'' की लाल बत्ती का सेक भी दिया गया ! अपने नामों से मशहूर मलहमें भी खूब पोती गईं ! सेंधा नमक की सूखी-गीली गरमाहट को भी आजमाया गया,पर हासिल शून्य बटे सन्नाटा ही रहा ! फिर आए बाबा रामदेव अपनी ''पीड़ांतक" ले कर, उससे कुछ राहत भी मिली, हो सकता है कि शायद अब तक दर्द भी एक जगह बैठे-बैठे ऊब गया हो ! वैसे उसे और भी घुटने-कोहनियां देखनी होती हैं ! खाली-पीली मेरे यहां जमे रह कर उसकी दाल-रोटी भी तो नहीं चलने वाली, सो अब पूर्णतया तो नहीं पर काफी कुछ आराम है।
अब जो होना था, वह हुआ और अच्छा ही हुआ ! क्योंकि इससे एक सच्चाई तो सामने आ गई कि जो बहुत दिनों से, बहुत बार, बहुतों से बहुतों के बारे में सुनते आ रहे थे कि फलाने का दिमाग घुटने में है और इसको हलके-फुलके अंदाज में ही लिया जाता था तो अब पूरा विश्वास हो गया है कि यह मुहावरा यूं ही नहीं बना था, इसके पीछे पूरी सच्चाई निहित थी !सवाल उठता है, कैसे ? तो जनाब, इन 12-13 दिनों में बहुत कोशिश की ! बहुतेरा ध्यान लगाया ! हर संभव-असंभव उपाय कर देख लिया पर एक अक्षर भी लिखा ना जा सका। जिसका साफ़ मतलब था कि यह सब करने का जिसका जिम्मा है वह तो हालते-नासाज को लिए घुटने में बैठा था १ इस हालत में वह अपनी चोट संभालता कि मेरे अक्षरों पर ध्यान देता ! तो लुब्ब-ए-लुबाब यह रहा कि कभी, किसी के घुटने में दिमाग का जिक्र आए तो उसे हलके में मत लें !
@चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से
9 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा,आपने घुटनों के दर्द के साथ साथ इस कहावत को भी सच कर दिखाया अपने लेख में, आदरणीय शुभकामनाएँ अपने स्वास्थ्य का ख़्याल रखिए ।
वाह
मधुरिमा जी, सदा स्वागत है आपका🙏🏻
सुशील जी
हार्दिक आभार आपका🙏
वाह! चलिए अब आपका घुटना भी दर्द से आजाद हो गया और साथ में लेखन भी राइटर्स ब्लॉक से आजाद हो गई। स्वास्थ्य का ख्याल रखें।
अनेकानेक धन्यवाद, विकास जी 🌹🤗
तो लुब्ब-ए-लुबाब यह रहा कि कभी, किसी के घुटने में दिमाग का जिक्र आए तो उसे हलके में मत लें !
... बहुत सही बात .. .
आपका बात कहने का जो अंदाज होता है, वह हर समय निराला होता है.. अच्छा लगता है पढ़ना
हार्दिक आभार कविता जी, ब्लॉग पर आपका सदा स्वागत है 🙏
रवीन्द्र जी,
सम्मिलित कर सम्मान देने हेतु बहुत-बहुत आभार 🙏
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