सोमवार, 9 अक्तूबर 2023

अथ रसगुल्ला कथा

रसगुल्ले की प्रसिद्धि का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस मिठाई पर अपना हक़ जताने के लिए दो प्रांतों, बंगाल और ओडिसा में सालों कानूनी जंग चलती रही। ओड़िसा का कहना था कि इसकी पैदाइश उनके यहां हुई थी और वर्षों से उसका भोग जगन्नाथ जी को लगता आ रहा है। 2017 में सरकार द्वारा बनाई गई कमिटी ने ''बांग्लार रोशोगोल्ले'' को Geographical Indications (GI) Tag  प्रदान कर दिया है। उस दिन बंगाल में ऐसी ख़ुशी मनाई गयी जैसे कोई बहुत बड़ी जंग जीत ली हो। इस मिठाई की प्रसिद्धि का यह आलम था कि इसके आविष्कारक नविनचंद्र दास की जीवनी पर एक फिल्म भी बन चुकी है..........!


#हिन्दी_ब्लागिंग  

"नोवीन दा !  किछू नोतून कोरो, डेली एकई धरनेर मिष्टी आर भालो लागे ना."    

"हें, चेष्टा कोच्छि (कोरछि), दैखो की होय."   
 
1866, कलकत्ता के बाग बाजार इलाके की एक मिठाई की दुकान। शाम का समय, रोज की तरह ही दुकान पर युवकों की अड्डेबाजी जमी हुई थी। मिठाईयों के दोनो के साथ तरह-तरह की चर्चाएं, विचार-विमर्श चल रहा था। तभी किसी युवक ने दुकान के मालिक से यह फर्माइश कर डाली कि नवीन दा, कोई नयी चीज बनाओ। (नोवीन दा ! किछू नोतून कोरो)।  नवीन बोले, कोशिश कर रहा हूं। और सच में वे कोशिश कर भी रहे थे कुछ नया बनाने की जिसमें उनका भरसक साथ दे रही थीं उनकी पत्नी, खिरोदमोनी । उसी कुछ नया के बनाने के चक्कर में एक दिन उनके हाथ से छेने का एक टुकड़ा चीनी की गरम चाशनी में गिर पड़ा। उसे निकाल कर जब नवीन ने चखा तो उछल पड़े, यह तो एक नरम और स्वादिष्ट मिठाई बन गयी थी। उन्होंने इसे और नरम बनाने के लिए छेने में "कुछ" मिलाया, अब जो चीज सामने आई, उसका स्वाद अद्भुत था ! खुशी के मारे नवीन को इस मिठाई का कोई नाम नहीं सूझ रहा था तो उन्होंने इसे रशोगोल्ला यानि रस का गोला कहना शुरु कर दिया। इस तरह रसगुल्ला जग में अवतरित हुआ।
नवीन चंद्र दास 
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कलकत्ता वासियों ने जब इस नयी चीज का स्वाद चखा तो जैसे सारा शहर ही पगला उठा। बेहिसाब रसगुल्लों की खपत रोज होने लग गई। इसकी लोकप्रियता ने सारी मिठाईयों की बोलती बंद करवा दी। हर मिठाई की दुकान में रसगुल्लों का होना अनिवार्य हो गया। जगह-जगह नयी-नयी दुकानें खुल गयीं। पर जो खूबी नवीन के रसगुल्लों में थी वह दुसरों के बनाये रस के गोलों में ना थी। इस खूबी की वजह थी वह  "चीज"  जो छेने में मिलाने पर उसको और नरम बना देती थी। जिसका राज नवीन को छोड़ उनके कारिगरों को भी नहीं था।
रस के गोले 
नवीन और उनके बाद उनके वंशजों ने उस राज को अपने परिवार से बाहर नहीं जाने दिया। आज उनका परिवार कोलकाता के ध्नाढ्य परिवारों में से एक है, पर कहते हैं कि रसगुल्लों के बनने से पहले परिवार का एक सदस्य आज भी अंतिम "टच" देने दुकान जरूर आता है। इस गला काट स्पर्द्धा के दिनों में भी इस परिवार ने अपनी मिठाई के स्तर को कभी भी गिरने नहीं दिया है।  

खीरमोहन 
बंगाल के रसगुल्ले जैसा बनाने के लिये देश में हर जगह कोशिशें हुईं, पर उस स्तर तक नहीं पहुंचा जा सका। हार कर अब कुछ शहरों में बंगाली कारिगरों को बुलवा कर बंगाली मिठाईयां बनवाना शुरु हो चुका है। पर अभी भी बंगाल के रसगुल्ले का और वह भी नवीन चंद्र की दुकान के "रोशोगोल्ले" का जवाब नहीं। इसकी प्रसिद्धि का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस मिठाई पर अपना हक़ जताने के लिए दो प्रांतों बंगाल और ओडिसा में सालों कानूनी जंग चलती रही। ओडिसा का कहना था कि इसकी पैदाइश उनके यहां हुई थी और वर्षों से उसका भोग जगन्नाथ जी को लगता आ रहा है। पर वहां के ''रसगोले'' का रंग भूरापन लिए होता है और उसे खीरमोहन नाम से जाना जाता रहा है। जो थोड़ा सा कड़ापन लिए होता है। जबकि बंगाल का ''रोशोगुल्ला'' मुलायम, स्पॉन्जी और दूडिया सफ़ेद रंग का होता है। वैसे भी दोनों मिठाइयों के रंग के अलावा उनके स्वाद, चाशनी, प्रकृति और बुनावट में भी काफी फर्क होता है। 
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जो भी हो रसगुल्ले का जन्म तब के ईस्ट इंडिया का ही माना जाता है, जिसे आज बंगाल और ओड़िसा के नाम से जानते हैं। वैसे 2017 में सरकार द्वारा बनाई गई कमिटी ने ''बांग्लार रोशोगोल्ले'' को Geographical Indications (GI) Tag  प्रदान कर दिया है। उस दिन बंगाल में ऐसी ख़ुशी मनाई गयी जैसे कोई बहुत बड़ी जंग जीत ली हो। इस मिठाई की प्रसिद्धि का यह आलम था कि इसके आविष्कारक नविनचंद्र दास की जीवनी पर एक फिल्म भी बन चुकी है !  
रसगोल्ला फिल्म का पोस्टर 
उजान गांगुली, जिन्होंने नवीन चंद्र का किरदार निभाया 
यह है इस मिठाई का ''क्रेज़''। हालांकि आजकल बदलते समय के साथ कई लोग इसके नाम का सहारा ले उल्टी-सीधी मिठाइयां, जैसे पान रसगुल्ला, मिर्ची रसगुल्ला, गुलाब रसगुल्ला, चॉकलेट रसगुल्ला जैसे सौ स्वादों वाले रसगुल्ले बनाने का दावा कर नाम और दाम कमाने से नहीं हिचकिचा रहे। यह सही है कि किसी को कुछ बनाने की रोक नहीं है पर किसी की ख्याति को भुनाना भी उचित नहीं होता। देखना है कि बंगाल का, अपनी परंपराओं से लगाव रखने वाला, भद्रलोक किसे सर-माथे पर बिठाए रखता है।   
तो यदि कभी कोलकाता जाना हो तो बड़े नामों के विज्ञापनों के चक्कर में बिना पड़े, बाग बाजार के नवीन बाबू की दुकान का पता कर, इस आलौकिक मिठाई का आनंद जरूर लें।

@लेख के सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से  

2 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर| मुंह में पानी आ गया|

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी, चीज ही ऐसी है 😀

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