बुधवार, 13 सितंबर 2023

बेगुनकोदर, एक भूतिया रेलवे स्टेशन

सच्चाई क्या है यह तो पता नहीं ! पर लगभग 42 सालों तक भूतिया डर के चलते बेगुनकोदर रेलवे स्टेशन बंद पड़ा रहा। यहाँ कोई भी नहीं आता था। पर फिर समय कुछ बदला ! लोगों की परेशानियों को देखते हुए 2009 में तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने अफवाहों के शिकार इस बदनसीब रेलवे स्टेशन को दुबारा से हरी झंडी दिखा दी। लेकिन आज भी सूरज ढलने के बाद वहाँ शायद ही कोई व्यक्ति दिखाई पड़ता हो........!     

#हिन्दी_ब्लागिंग 

भूत, इनके बारे में दावे तो बड़े-बड़े किए जाते हैं, पर ठीक या अच्छी तरह से देखा शायद ही किसी ने हो ! हमारे गांवों में ऐसे कुछ लोग जरूर मिल जाएंगे, जिन्होंने भूतों से कुश्ती लड़ी हो या उनसे भूत ने बीड़ी मांगी हो ! पर वे लोग यह नहीं बता पाते कि उस अशरीरी ने बीड़ी कैसे पी या कुश्ती में कौन सा दांव लगाया ! पर इसके साथ ही भूतों पर एक सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि दुनिया में करीब 45% लोग इन पर विश्वास करते हैं ! इसका कारण भी है, इस विस्मय भरे संसार में हजारों चीजें, बातें, घटनाएं, वारदातें ऐसी हैं या होती रहती हैं, जिनका कोई तर्कसम्मत जवाब या हल नहीं मिल पाता ! जिन्हें महसूस तो किया जाता है पर परिभाषित नहीं किया जा सकता ! विदेशों की बात नाहीं करें, अपने देश में ऐसी दसियों जगहें हैं जो भूतिया नाम से विख्यात हैं ! उन्हीं में से एक है पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में बेगुनकोदर नाम का एक रेलवे स्टेशन !  


पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से करीब 260 किमी दूर, पुरुलिया जिले में 1960 में भारतीय रेलवे ने एक सुनसान व वीरान सी जगह में अपना एक स्टेशन बनाया जिसका नाम रखा गया बेगुनको
दर रेलवे स्टेशन ! हालांकि यह पैसेंजर हॉल्ट था, इसलिए यहां टिकट घर तथा प्रतीक्षालय तो था पर प्लेटफॉर्म नहीं था ! पर पहले स्थानीय लोगों को शहर जाने के लिए तक़रीबन पचास किमी चल कर ट्रेन पकड़नी पड़ती थी, इसके बनने पर इस मुसीबत से उन्हें छुटकारा मिला और समय की बचत भी हुई ! कुछ सालों तक सब ठीक-ठाक चलता रहा पर इसके बनने के करीब सात साल के बाद 1967 में वहाँ तरह-तरह की अफवाहें फैलने लगीं ! दरअसल एक रेलवे कर्मचारी के वहां एक महिला भूत होने के दावे पर लोगों ने विश्वास नहीं किया ! कुछ दिनों बाद ही उस कर्मचारी की मौत हो गई ! लोगों ने उसका संबंध उस भूत से जोड़ दिया ! जिसके बाद कहा जाने लगा कि शाम ढलने के बाद मुसाफिरों को यहां सफ़ेद साड़ी पहने एक महिला नजर आती है, जो ट्रैन के साथ दौड़ लगाती है ! कभी-कभी तो वह गाड़ी से भी तेज दौड़ कर आगे निकल जाती है ! कुछ लोगों ने ट्रैन के सामने पटरी पर भी उसे चलते देखने का दावा किया ! हालांकि किसी भी बात की कभी भी कोई पुष्टि नहीं हुई !

इन सब बातों से डर इतना फैल गया कि लोग शाम होते ही स्टेशन और उसके पास के इलाके से ही दूर चले जाते थे ! सुरज ढलने के बाद यहां कोई रुकना नहीं चाहता था ! शाम पांच-छह बजे के बाद वहां कोई भी इंसान नजर नहीं आता था ! बेगुनकोद रेलवे स्टेशन पर भूत का खौफ धीरे-धीरे इतना बढ़ गया कि कोई भी व्यक्ति सूरज ढलने के बाद वहाँ नहीं उतरता था, चढ़ने की तो बात ही दूर ! गाड़ियां वहाँ से जरूर गुजरती थीं पर उनकी रफ़्तार बढ़ा दी जाती थी ! स्टेशन आने के पहले यात्री ट्रेन की खिड़कियाँ बंद कर लिया करते थे, उनका मानना था कि इस स्टेशन को देखना भी खतरे से खाली नहीं है ! वहाँ काम करने वाले कर्मचारी भी विभाग में अपना ट्रांसफर करने की अर्जी देने लग गए। कोई भी कर्मचारी बेगुनकोदर रेलवे स्टेशन पर काम करने को तैयार नहीं था। जो भी नए कर्मचारी यहाँ आते वो भी जल्दी ही वापस लौट जाते थे । कर्मचारियों के बिना किसी भी रेलवे स्टेशन को चलाना कैसे संभव हो पाता सो इन सबके चलते स्टेशन को ही बंद कर दिया गया ! बेगुनकोदर भूतिया रेलवे स्टेशन के रूप में कुख्यात हो चुका था ! 



ऐसे
ही लगभग 42 सालों तक अफवाहों के चलते बेगुनकोद
 रेलवे स्टेशन बंद पड़ा रहा। यहाँ कोई भी नहीं आता था। पर फिर समय कुछ बदला ! लोगों की परेशानियों को देखते हुए 2009 में तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने अफवाहों के शिकार इस बदनसीब रेलवे स्टेशन को दुबारा से हरी झंडी दिखा दी। लेकिन आज भी सूरज ढलने के बाद वहाँ शायद ही कोई व्यक्ति दिखाई पड़ता हो ! 

@सौजन्य अंतर्जाल 

2 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर जानकारी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनेकानेक धन्यवाद, सुशील जी🙏🏻

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