गुरुवार, 7 सितंबर 2023

एक था भाई, नाम था, शकुनि

शकुनी ने जो कुछ भी किया, वह सब खुद के लिए नहीं किया बल्कि सारे बुरे कर्म, षड्यंत्र, छल, कपट अपनी बहन के साथ हुए अन्याय और अपने परिवार के अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए किया ! पर विडंबना यह रही कि जिस बहन के लिए उसने जमाने से, युगों-युगों की बदनामी, नफ़रत, कुत्सा, घृणा मोल ली, उसी बहन ने युद्धोपरांत अपने पुत्रों की मृत्यु का जिम्मेदार ठहराते हुए उसे श्राप दे डाला, वह भी ऐसा श्राप जो आज भी फलीभूत है............!

#हिन्दी_ब्लागिंग

आज तक देवता हो या इंसान, समय से ना हीं कोई पार पा सका, ना हीं उसे कोई समझ पाया ! इसके चक्र में कभी-कभी परिस्थितियां ऐसी करवट ले लेती हैं कि अच्छा-भला इंसान भी हैवान निरूपित कर दिया जाता है ! जिससे कभी देश-समाज की रक्षा की अपेक्षा होती है, वही अपने लोगों की मृत्यु का सबब बन जाता है ! हजारों साल पहले शायद ऐसा ही हुआ गांधार के राजकुमार शकुनि के साथ ! जिसे द्वापर में हुए महाभारत युद्ध के भीषण नरसंहार का मुख्य कारण मान, हजारों वर्षों बाद, आज भी द्वापर के सबसे बड़े खलनायक के रूप में जाना जाता है !  

शकुनि 
उन दिनों गांधार, आज के अफगानिस्तान का कंधार क्षेत्र, के राजा थे सुबल और उनकी पत्नी का नाम सुदर्मा था ! उनके सौ बेटे और एक बेटी गांधारी थी ! शकुनि उन सब में सबसे छोटे थे, सौवां पुत्र होने के कारण उनका नामकरण सौबाला के रूप में किया गया था ! बचपन से ही उनकी भगवान शिव में गहरी आस्था थी ! वे बहुत ही कुशाग्र, बुद्धिमान और मेधावी थे ! इसी कारण वे अपने पिता को सर्वाधिक प्रिय थे ! मान्यता है कि शकुनि के पासे उनके पिता की रीढ़ की हड्डी से बने थे ! पिता के स्नेह के कारण सदा शकुनि के मनोरूप ही परिणाम आता था ! उनके एक और नाम शकुनि का अर्थ भले ही षड्यंत्रकारी के रूप में लिया जाता हो, पर इसका एक अर्थ नभचर भी होता है, पर समय की गति, शकुनि कुटिलता का पर्याय बन कर रह गया ! पर शुरू में शकुनि बुरे ख्यालों या कुटिल नीतियों वाले व्यक्ति नहीं थे ! वे अपने परिवार और खास कर अपनी बहन गांधारी से अत्यधिक स्नेह रखते थे ! 

धृतराष्ट्र-गांधारी 
सब ठीक-ठाक ही चल रहा था ! पर समय कहां और कब एक सा रहा है ! गांधारी सुंदर, सुशील, कार्यनिपुण, विदुषी व आज्ञाकारी महिला थीं ! इसके अलावा उन्हें सौ पुत्रों का वरदान प्राप्त था ! इन्हीं गुणों के कारण भीष्म पितामह ने सोचा कि वह धृतराष्ट्र की अच्छी तरह से देखभाल करते हुए जीवन भर उसका साथ देगी, और उनके सौ पुत्र धृतराष्ट्र का संबल बनेंगे, इसीलिए उन्होंने एक तरह से जबरन यह विवाह करवाया ! जब भीष्म पितामह गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से करने का प्रस्ताव लेकर गांधार आए तो शकुनि नहीं चाहते थे कि उनकी बहन की शादी नेत्रहीन धृतराष्ट्र से हो और वे एक अंधे युग में धकेल दी जाएं ! लेकिन भीष्म के विरोध की क्षमता गांधार में नहीं थी, सो मजबूरीवश शकुनि को धृतराष्ट्र से अपनी बहन का विवाह करवाना पड़ा ! पर दवाब और मजबूरी के चलते इस बेमेल विवाह को वे जन्म भर स्वीकार नहीं कर पाए ! कुरु वंश के प्रति उनके मन में नफ़रत और विद्वेष ने गहरी जगह बना ली थी ! विवाहोपरांत ही शकुनि ने इस अपमान का बदला लेने के लिए कुरु वंश के समूल नाश का प्रण ले लिया था ! !उनका एकमात्र उद्देश्य भीष्म पितामह के पूरे परिवार को नष्ट करना था। उसी क्षण से उन्होंने कुरुवंश की जड़ को खोदना शुरू कर दिया और उसे कुरुक्षेत्र के महारण में उतार दिया !  

शकुनि के पासे 
पौराणिक कथा के अनुसार ज्योतिषियों और विद्वानों का मत था कि गांधारी का पहला विवाह बेहद अशुभ परिणाम लाएगा ! इसीलिए उनका पहला विवाह एक बकरे के साथ कर दिया गया था, जिसकी बाद में बलि दे दी गई ! जिससे बाद में उनका जीवन सुरक्षित और निरापद रहे ! धृतराष्ट्र को इस घटना के बारे में उनकी शादी के बहुत बाद पता चला और अपने को गांधारी का दूसरा पति मान वे अत्यंत क्रोधित हो गए और सजा के रूप में, उन्होंने राजा सुबल को परिवार सहित कारागार में डाल दिया ! इतना ही नहीं उनमें से प्रत्येक को प्रतिदिन खाने के लिए सिर्फ एक मुट्ठी चावल दिया जाता था, जिससे भूख के कारण उन सब की मृत्यु हो जाए ! अंत को सामने देख राजा सुबल और उनका समस्त परिवार अपना सारा भोजन सबसे छोटे शकुनि को देने लगे, जिससे वह उनकी मौत का बदला लेने के लिए जीवित रह सके ! यह सुनिश्चित करने के लिए कि वह बदला लेना हमेशा याद रखेगा, उनके पिता ने उनका एक पैर तोड़ उसे स्थायी रूप से लंगड़ा बना दिया ! अंतिम सांस लेने से पहले सुबल ने धृतराष्ट्र से शकुनि को मुक्त करने की विनती की तथा वादा किया कि उनका बेटा, बदले में, हमेशा धृतराष्ट्र के बेटों की देखभाल और रक्षा करेगा। उस समय तक धृतराष्ट्र सौ पुत्र और एक पुत्री के पिता बन चुके थे ! उन्हें अपने श्वसुर पर दया आ गई और उन्होंने  शकुनि को रिहा कर अपने पास ही नहीं रखा बल्कि उनकी बुद्धिमत्ता देख अपना सलाहकार भी बना लिया ! धीरे-धीरे शकुनि ने  दुर्योधन को वश में कर पूरे हस्तिनापुर को अपने कब्जे में ले लिया ! उनका प्रभाव इतना ज्यादा था कि विदुषी गांधारी सब समझते हुए भी विवश हो कर रह गई थी ! शायद समय की भी यही मंशा थी ! 

फिर जो हुआ उसे तो सारा संसार जानता है ! पर शकुनी ने जो कुछ भी किया, वह सब खुद के लिए नहीं किया, बल्कि सारे बुरे कर्म, षड्यंत्र, छल, कपट अपनी बहन के साथ हुए अन्याय और अपने परिवार के अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए किया ! पर समय ने फिर भी उसके साथ न्याय नहीं किया ! यह विडंबना ही रही कि जिस बहन के लिए उसने जमाने से युगों-युगों की बदनामी, नफ़रत, कुत्सा, घृणा मोल ली, उसी बहन ने युद्धोपरांत अपने कुल के नाश का जिम्मेदार ठहराते हुए उसे श्राप दे डाला कि मेरे 100 पुत्रों को मरवाने वाले गांधार नरेश तुम्‍हारे राज्‍य में भी कभी शांति नहीं रहेगी ! वह हमेशा युद्धों में ही उलझा रहेगा ! तुम्हारी प्रजा कभी चैन की सांस नहीं ले पाएगी ! लोगों को मानना है कि गांधारी के उसी श्राप के चलते आज भी अफगानिस्तान में शान्ति स्थापित नहीं हो पा रही है !

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

8 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आभार, सुशील जी 🙏🏻

Jyoti khare ने कहा…

विचारपरक और बहुत कुछ सोचने समझने की ललक जगाता रोचक आलेख

बहुत अच्छी प्रस्तुति

शुभकामनाएं

Anita ने कहा…

बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

शानदार लेख। बिलकुल सही और एक दम सत्य बात है , यवनों के आक्रमण के समय भी वहा कुछ स्थिर नहीं था।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

खरे जी,
सदा स्वागत है, आपका🙏🏻

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनीता जी,
बिलकुल सही, भले ही किसी भी नियत से किया गया हो🙏🏻

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शिवम जी
हार्दिक आभार आपका🙏

विशिष्ट पोस्ट

दीपक, दीपोत्सव का केंद्र

अच्छाई की बुराई पर जीत की जद्दोजहद, अंधेरे और उजाले के सदियों से चले आ रहे महा-समर, निराशा को दूर कर आशा की लौ जलाए रखने की पुरजोर कोशिश ! च...