यहां इंजीनियरिंग या एम.बी.ए. की तरह भारी-भरकम फीस लेकर बच्चों को चौर्य कला में पारंगत किया जाता है ! ये बच्चे वहां अपहरण या फुसला कर नहीं लाए जाते बल्कि बच्चों के माँ-बाप अपने बच्चों को खुद वहाँ दाखिला दिलवाते हैं, अच्छी-खासी, भारी-भरकम रकम अदा कर के ! यहां छोटी उम्र से ही बच्चों को अपराधों की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी जाती है। इनके भी बाकायदा कोर्स होते हैं ! शुरूआती तरकीबों के लिए दो से तीन लाख और पूरे कोर्स के लिए पांच लाख रुपये तक देने होते हैं ...........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
भारतीय गौरवशाली संस्कृति में किसी समय चोरी करना भी एक कला मानी जाती थी। सेंधबाज ऐसी-ऐसी कलाकारी से अपने काम को अंजाम देते थे कि लोग दांतो तले उंगलियां दबा लेते थे। उनका अंदाज, उनके काम करने का तरीका, उनको एक विशेष पहचान प्रदान करवा देता था ! पहुंचे हुए चोरों को अपने ऊपर इतना विश्वास होता था कि वे भी चोरी करने के बाद अपनी कोई न कोई निशानी छोड़ जाते थे, एक चुनौत्ती की तरह कि लो खोज लो मुझे यदि हो सके तो ! एक तरह से ये उनके "ट्रेड मार्क" भी हुआ करते थे। जाहिर है इतनी निपुणता पाने के लिए कहीं न कहीं से शुरूआती प्रशिक्षण तो लेना ही पड़ता होगा, शुरू में कोई तो उन्हें प्रशिक्षित करता ही होगा ! जिसकी पूर्णता फिर उन्हें अपने अनुभव से प्राप्त होती होगी ! यह सब बीते दिनों की बातें हैं ! वैसे भी चोरी तो चोरी ही होती है ! इसीलिए इसे दुष्कर्मों में गिना जाने लगा और यह दंडात्मक कार्यों में शुमार हो गया !
परंतु राज व समाज द्वारा लाख जुर्माना, सजा, हिकारत, बदनामी, घृणा मिलने के बावजूद भी इसका खात्मा नहीं किया जा सका ! यह आदत इंसान में बरकरार ही रही। इसीलिए लगता है कि प्राचीन समय में इसे मिलने वाला प्रशिक्षण व संरक्षण दबे-ढके रूप से विद्यमान रहता चला आया है ! इसका प्रमाण तब मिला जब मध्य प्रदेश के कड़िया, हुलखेड़ी और गुलखेड़ी जैसे गांवों का नाम सामने आया ! ये वे गांव हैं जहां इंजीनियरिंग या एम.बी.ए. की तरह भारी भरकम फीस ले कर बच्चों को चौर्य कला में पारंगत किया जाता है ! ये बच्चे वहां अपहरण या फुसला कर नहीं लाए जाते बल्कि बच्चों के माँ-बाप अपने बच्चों को वहाँ दाखिला दिलवाते हैं, अच्छी-खासी, भारी-भरकम रकम अदा कर के ! यहां छोटी उम्र से ही बच्चों को अपराधों की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी जाती है। इनके भी बाकायदा कोर्स होते हैं ! शुरूआती तरकीबों के लिए दो से तीन लाख और पूरे कोर्स के लिए पांच लाख रुपये तक देने होते हैं ! इसमें मुख्य पाठ्यक्रम शादी-ब्याहों से कीमती सामान पार करने में प्रशिक्षित करता है ! जिसमें आठ-दस साल के बच्चों को प्रमुखता दी जाती है, जिससे यदि पुलिस पकड़ भी ले नाबालीगता का सहारा ले उन्हें छुड़वाने में आसानी रहती है ! काम को अंजाम देने के लिए दो-तीन लोग बड़ा सा उपहार का पैकेट और चार-पांच बच्चों को एक बड़ी सी गाडी में ले कर किसी शादी या भव्य समारोह में पहुँचते हैं ! वहाँ वे उपस्थित लोगों से घुल-मिल जाते हैं और बच्चे आपस में खेलने के बहाने उसी जगह का चक्कर लगाते रहते हैं जहां कीमती सामान रखा होता है और मौका पाते ही सामान को गाड़ी में पहुंचा दिया जाता है ! पकड़े जाने पर उन्हें रोने-धोने, तेजी से भागने, भीड़ की पिटाई से बचने आदि में भी ट्रेंड किया जाता है ! इसके अलावा इन गिरोहों की अपने वकीलों की टीम भी होती है !
इन गांवों में अधिकाँश परिवार जरायम पेशे से जुड़े रह कर देश भर में सक्रिय हैं ! इन गांवों में प्रवेश करना भी आफत को दावत देने के समान है ! बच्चों के अलावा इनके गिरोह में महिलाओं का भी जमावड़ा रहता है जिन्हें आसानी से जमानत मिल जाती है ! वही बच्चे जो पैसा दे कर ''हुनर'' सीखते हैं, जब निपुण हो जाते हैं तो गिरोह के सरगना उनके माँ-बाप को उनके काम के एवज में लाखों का भुगतान करते हैं ! जैसे इंजीनियरिंग या एम बी ए की डिग्री हासिल करने पर प्लेसमेंट होता है !
इन सब बातों का खुलासा तब हुआ जब हाल ही में राजस्थान में हुई 10 लाख की चोरी के बाद मामले की जांच-पड़ताल की गई ! जहां एक पूर्व सैनिक के दस लाख रुपए चुरा लिए गए ! लेकिन सीसीटीवी फुटेज से मिले सुराग के आधार पर आरोपियों की पहचान हो गई। इसके बाद इनकी गिरफ्तारी भी हो गई। विचित्र है मानव उसकी प्रकृति और हमारा देश................!!
आभार - श्री एन. रघुरामन जी
16 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-04-2022) को चर्चा मंच "हे कवि! तुमने कुछ नहीं देखा?" (चर्चा अंक-4395) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार, शास्त्री जी 🙏🏼
अच्छी जानकारी
आभार, ओंकार जी 🙏🏼
ऐसा भी हो रहा है , अच्छी जानकारी । आदरणीय ।
वही तो, सोच कर ही आश्चर्य होता है, दीपक जी,
अविश्वसनीय ! पर बेहद दिलचस्प !
हैरान करने वाले तथ्यों के साथ सुन्दर पोस्ट ।
नूपुरं 🙏🏼
लम्बे समय से चले आने के बावजूद रोक नहीं लग पा रही
मीना जी
विडंबना देखिए, नाजायज काम और खतरनाक भविष्य के बावजूद लोग लाखों खर्च करने में नहीं हिचकिचा रहे
मेरे लिए नयी जानकारी
धन्यवाद लेखन हेतु
विभा जी
ब्लॉग पर आपका सदा स्वागत है
पहले के वक्त में ठग होते थे जिनका काम डकैती छिनैती यही होता था। ये काम पीढ़ी दर पीढ़ी चला आता था। मुझे लगा था आधुनिक समय में ये खत्म हो गया होगा लेकिन अब लग रहा है ये तो फल फूल रहा है। रोचक जानकारी से परिचय कराता आलेख। वैसे दिल्ली एन सी आर में भी कुछ वर्ष पहले ऐसी गैंग सक्रिय थी लेकिन वो बच्चे छत्तीसगढ़, बिहार से लाए जाते थे। उनके अभिभावक फीस भरते थे या नहीं ये नहीं पता।
विकास जी
मुफ्त में और तुरंत धन हासिल करने की प्रवृत्ति शायद कभी खत्म नहीं होगी
अच्छी जानकारी
संजय जी,
स्वागत है आपका 🙏🏼
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