समर ने इस बार लहसुन की अच्छी फसल ली थी सो वही ले कर वह विदेश रवाना हो गया। गंतव्य पर पहुंच कर उसने भी अपना सामान वहां के लोगों को दिखाया। भगवान की कृपा, लहसुन का स्वाद तो उन लोगों को इतना भाया कि वे सब प्याज को भी भूल गए ! इतने दिव्य स्वाद से परिचित करवाने के कारण वे सब अपने को समर का ऋणी मानने लग गए। पर उन लोगों के सामने एक धर्मसंकट आ खड़ा हुआ कि इतनी अच्छी चीज का मोल वे लोग किस कीमती वस्तु से चुकाएं....! उनके लिये सोने का कोई मोल तो था ही नहीं ! तो क्या करें ? तभी वहां के मुखिया ने सब को सुझाया कि सोने से कीमती चीज तो अभी उनके पास कुछ दिनों पहले ही आई है...........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
कहानी कुछ पुरानी जरूर है पर है बड़ी दिलचस्प। जो यह बताती है कि कर्म के साथ किस्मत का सांमजस्य होना कितना जरुरी होता है ! बात उन दिनों की है जब आधुनिक संचार व्यवस्था का नाम भी लोगों ने नहीं सुना था ! लोग आने-जाने वालों, व्यापारियों, घुम्मकड़ों, सैलानियों से ही देश विदेश की खबरें, जानकारियां प्राप्त करते रहते थे। ऐसे ही अपने आस-पास के व्यापारियों की माली हालत अचानक सुधरते देख छोटी-मोटी खेती-बाड़ी करने वाले जमुना दास ने अपने पड़ोसी की मिन्नत चिरौरी कर उसकी खुशहाली का राज जान ही लिया। पड़ोसी ने बताया कि दूर देश के राज में बहुत खुशहाली है। वहां इतना सोना है कि लोग रोज जरूरत की मामूली से मामूली आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भी सोने का उपयोग करते हैं। वहां हर चीज सोने की है। सोना मिट्टी के मोल मिलता है !
ऐसी बातें सुन जमुना दास भी उस देश की जानकारी ले, वहां जाने को उद्यत हो गया। पर उसके पास जमा-पूंजी तो थी नहीं। फिर भी इस बार उसकी प्याज की फसल ठीक-ठाक हुई थी ! भगवान् का नाम ले, उसी की बोरियां जहाज पर लदवा, वह अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गया। उसकी तकदीर का चमत्कार कि वहां के लोगों को मसाले वगैरह की जानकारी बिलकुल नहीं थी ! प्याज को चखना तो दूर उन्होंने उसका नाम तक भी नहीं सुना था। जब जमुना दास ने उसका उपयोग बताया तो उसका स्वाद चख कर वे लोग खूशी से पागल हो गए ! पलक झपकते, मिनटों में ही जमुना दास का सारा का सारा प्याज खत्म हो गया। बदले में वहाँ के लोगों ने उसकी बोरियों को सोने से भर दिया। जमुना दास वापस अपने घर लौट आया। उसके तो वारे-न्यारे हो चुके थे। अब वह जमुना दास नहीं सेठ जमुना दास कहलाने लग गया था।
यहाँ देखें तो जमुना दास और समर ने अपनी तरफ से पुरजोर कर्म किए किसी भी तरह की कोताही नहीं बरती ! विदेशियों ने भी अपनी और से बिना भेदभाव के भरपूर सहायता की, पर किस्मत
उसकी जिंदगी और हालात बदलते देख उसके पड़ोसी समर से भी नहीं रहा गया। एक दिन वह भी हाथ जोड़े जमुना दास के पास आया और एक ही यात्रा में मालामाल होने का राज पूछने लगा। उन दिनों लोगों के दिलों में आज की तरह द्वेष-भाव ने जगह नहीं बनाई थी। पड़ोसी, रिश्तेदारों की बढोत्तरी से, किसी की भलाई कर लोग खुश ही हुआ करते थे। जमुना दास ने भी समर को सारी बातें तथा हिदायतें विस्तार से बता-समझा दीं और उसे भी विदेश जाने को प्रोत्साहित किया। पर यहां भी वही बात थी, समर की जमा-पूँजी भी उसकी खेती ही थी। संयोग से उसने इस बार लहसुन की अच्छी फसल ली थी, सो उसी को ले कर वह भी स्वर्ण देश को रवाना हो गया।
गंतव्य स्थल पहुंच कर उसने भी अपना सामान वहां के लोगों को दिखाया। भगवान की कृपा, लहसुन का स्वाद तो वहाँ के लोगों को इतना भाया कि वे सब प्याज को भी भूल गए ! इतने दिव्य स्वाद से परिचित करवाने के कारण वे सब अपने को समर का ऋणी मानने लग गए ! उसका खूब मान-सम्मान हुआ ! पर उन लोगों के सामने एक धर्मसंकट आ खड़ा हुआ कि इतनी बेहतरीन, लाजवाब वस्तु का मोल वे किस वस्तु से चुकाएं.... ! उनके लिए सोने का कोई मोल नहीं था ! इतनी दिव्य और अच्छी चीज का मोल भी वे लोग किसी बेशकीमती चीज से चुकाना चाहते थे। वे लोग इसी पेशोपेश में थे कि करें तो क्या करें, जिससे इस व्यापारी के एहसान का बदला उचित रूप से चुकाया जा सके !
काफी सोच-विचार के बाद वहां के मुखिया को एक उपाय सूझा ! उसने सबको सुझाया कि हमारे पास सोने से भी कीमती चीज तो अभी कुछ दिनों पहले ही आई है। उसी को इस व्यापारी को दे देते हैं। क्योंकि इतनी स्वादिष्ट चीज के बदले किसी अनमोल वस्तु को दे कर ही इस व्यापारी का एहसान चुकाया जा सकता है। सभी को यह सलाह बहुत पसंद आई और उन्होंने समर के थैलों को प्याज से भर अपने आप को ऋण मुक्त कर लिया।
अब यहाँ देखें तो जमुना दास और समर ने अपनी तरफ से पुरजोर कर्म किए किसी भी तरह की कोताही नहीं बरती ! विदेशियों ने भी अपनी और से बिना भेदभाव के भरपूर सहायता की, पर किस्मत, किस पर, किस तरह मुस्कुराई............!!
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बेचारा समर !!
16 टिप्पणियां:
भाग्य का कर्म के साथ संयोग हो तो रंक भी राजा बन जाता है और उसके अभाव में कर्म करने के बाद भी संघर्ष पल्लू से बंधा रहता है ।बहुत सुन्दर सृजन ।
मीना जी
हार्दिक आभार🙏
शायद यही है भाग्य...
बहुत ही सुंदर कहानी गूढ़ अर्थ समेटे।
सुधा जी
सदा स्वागत है🙏🙏
कर्म पर किस्मत भारी
आपकी कहानी पढ़कर दादी की कही बात याद आ गई कि-कर्म के साथ भाग्य का गठबंधन हो तभी सफलता मिलती है।
कुछ कहानी कभी कभी सोच में दाल देती है कि-जब भाग्य साथ ना दे तब क्या करें ?
सादर नमन आपको
कदम जी
ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका
कामिनी जी
कर्म से कई बार भाग्य बदलते देखा गया है पर किस्मत अक्सर भारी पड़ती रही है कर्म पर
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-4-22) को "कोटि-कोटि वन्दन तुम्हें, पवनपुत्र हनुमान" (चर्चा अंक 4403) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
कामिनी जी
मान देने हेतु हार्दिक आभार🙏
गगन भाई, कहा जाता है कि सब अपनी अपनी किस्मत का खाते है। सुंदर कहानी।
लेकिन एक सवाल मन में उठ रहा है कि पहले यातायात के उतने साधन नहीं थे। अतः जमनालाल के वापस घर आने से लेकर समर के दूसरे देश में जाने तक बहुत लंबा समय बीत चुका होगा इतने समय तक प्याज अच्छा कैसे रह सकता है? यह बात समझ मे नहीं आई।
अच्छी कहानी
बहुत शानदार, अपना अपना भाग्य कहानी याद आ गई,
लाजबाब कथानक महोदय
ज्योति जी
तीन बातें हो सकती हैं....!
जमुनादास प्याज जल्दी खराब न हो इसकी तरकीब बता कर आया हो. वैसे भी प्याज जल्दी खराब नहीं होता!
समर और जमुनादास मालदीव तक ही गए हों. उन दिनों वह भी दूर देश ही कहलाता था.
(वैसे भारत के पास द्रुतगामी जहाज थे यह वास्कोडिगामा ने अपने यात्रा विवरणों में लिखा है)
तीसरी अहम बात ......कहानी है, कुछ छूट तो मिलनी चाहिए 😅😅😂😂😂😂😂😂
अनीता जी
अनेकानेक धन्यवाद🙏
बलबीर सिंह जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है आपका
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