वनगमन के बाद ही श्री राम की धीर, वीर, स्थिर व गंभीर छवि उभर कर आई ! इसमें जिन गुणों की प्रमुख भूमिका रही, वे थे, धैर्य और सहनशीलता ! माता-पिता के वचनों की रक्षा हेतु पल भर में राजमहल का सुख और तमाम वैभव त्यागने वाले वाले युवराज राम वन से लौटने पर ही मर्यादा पुरषोत्तम राम कहलाए ! आज वे सिर्फ किसी प्रदेश, देश के नहीं बल्कि पूरी दुनिया के आदर्श और गौरव हैं..............!
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राम भगवान विष्णु का अवतार थे ! विष्णु तो गुणों का भंडार हैं ! पर उनका यह अवतार मर्यादित था ! गुणों को खुद सिद्ध होते हुए उभरना था ! हालांकि वनवास की घटना बहुत दुःखदाई, कष्टदाई और संतापदाई है ! पर यदि राम वनगमन ना होता तो क्या राम मर्यादा पुरषोत्तम बन पाते ! क्या सारे गुण उभर कर जगत के सामने आ पाते ! क्या वे सिर्फ युवराज राम या राजा राम बन कर ही ना रह जाते ! पर वे तो नारायणावतार थे और अवतार सिर्फ राजा बनने के लिए ही नहीं लिया गया था ! सब कुछ पहले से सुनिश्चित था ! सारी पटकथा सारे तथ्यों को, परिणामों को, परिस्थितों को, अंजामों को देख-भाल कर, बहुत निपुणता के साथ, सारे नियम-कानूनों को ध्यान में रख, न्याय-अन्याय को संतुलित करने और लिए-दिए गए वचनों को पूरा करने हेतु रची गई थी ! जिसमें राम वनगमन प्रमुख व अति आवश्यक अध्याय था !
राम जैसा धीरोदात्त व्यक्तित्व फिर ना कभी हुआ और शायद ना कभी हो भी पाएगा ! आलेखानुसार उनका वनगमन तो होना ही था ! उसी के परिणाम स्वरूप ही तो देश-दुनिया-समाज को मातृ-पितृ भक्ति, आदर्श भाई, भाई-बंधुओं-आत्मीयों पर स्नेह, त्याग, धैर्य, प्रेम, समर्पण, वियोग, स्थिर स्वभाव, सहनशीलता, दयालुता, श्रेष्ठ चरित्र, प्रबंधन कुशलता, सत्य का साथ, न्याय, उच्च नेतृत्व क्षमता, शरणागत रक्षा जैसे और भी अनेक, अनगिनत गुणों का अप्रतिम व सर्वोत्तम उदाहरण मिल पाया !
वनगमन के दौरान ही उन्होंने हर जाति, हर वर्ग के व्यक्तियों के साथ मित्रता की ! हर रिश्ते को दिल से पूरी आत्मीयता और ईमानदारी से निभाया ! केवट हो या सुग्रीव, निषादराज हो या विभीषण सभी मित्रों के लिए उन्होंने स्वयं कई बार संकट झेल कर एक आदर्श संसार के सामने रखा ! इन सब के अलावा वर्षों पहले कहे गए कथन, वचन, वरदान, श्राप, सबका परिमार्जन भी किया जाना था ! कइयों को न्याय दिलवाना था ! कइयों को दंडित करना था ! देश-समाज में शान्ति स्थापित करनी थी ! इतना सब कुछ बिना वनगमन किए राजमहल में बैठ कर करना, अत्यधिक समय व रुकावटों का सबब बन सकता था !वनगमन के बाद ही श्री राम की धीर, वीर, स्थिर व गंभीर छवि उभर कर आई ! इसमें जिन गुणों की प्रमुख भूमिका रही, वे थे, धैर्य और सहनशीलता ! माता-पिता के वचनों की रक्षा हेतु पल भर में राजमहल का सुख और तमाम वैभव त्यागने वाले वाले युवराज राम वन से लौटने पर ही मर्यादा पुरषोत्तम राम कहलाए ! आज वे सिर्फ किसी प्रदेश, देश के नहीं बल्कि पूरी दुनिया के आदर्श और गौरव हैं !
जय श्री राम !
7 टिप्पणियां:
यही कहा कि वनगमन के बाद ही श्री राम की धीर, वीर, स्थिर व गंभीर छवि उभर कर आई!
ज्योति जी
आपका सदा स्वागत है🙏
बहुत खूबसूरत रचना
शायद, इसलिए कहते हैं कि अग्नि में तप कर ही सोना कुन्दन बनता। संघर्षों के बाद ही तो व्यक्तित्व में निखार आता है।राम जी ने यही उदाहरण प्रस्तुत किया। बेहतरीन लेख,सादर नमन आपको 🙏
आभार कदम जी🙏
कामिनी जी
आपका सदा स्वागत है🙏
अनीता जी
सम्मिलित कर मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद🙏
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