वे अपने ठाठ-बाट का, बिना किसी अफसोस या शर्मिंदगी के प्रदर्शन करते हुए अपनी नाकामियों को निर्लज्जता से दूसरों की गलतियों से ढकने की अहमकाना हरकतें करते नजर आने लगे ! ऐसी ही एक जगह किसी ने पूछ लिया, भइया जी, बगीची तो पूरी तहस-नहस हो गई ! भैया जी बोले, क्या फर्क पड़ता है, जमीन तो बाकी है ! तभी एक युवक बोला, भइया जी आपके तो ठाठाम-ठाठ हैं, आपके तो जूतों की रखवाली भी बंदूक वाला करता है ! भैया जी खटिया पर और पसरते हुए बोले, अरे बेवकूफ ये घड़ियाल के चमड़े के जूते हैं, बहुत मंहगे होते हैं, तू तो कीमत का अंदाज भी नहीं लगा सकता ! इतना कह एक जोरदार ठहाका लगा दिया............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
एक बहुत सुंदर बागीचा था। उसमें तरह-तरह के देसी-विदेशी पेड़-पौधे, लता-गुल्म, फूल-पत्तियां करीनेवार लगे हुए थे ! इसका कोई दूसरा उदाहरण देश में कहीं और नहीं था ! इसकी साज-संभार के लिए दसियों निपुण लोग तन-मन-धन से लगे रहते थे। दूर-दूर तक इस बागीचे की सुंदरता और रख-रखाव की ख्याति फैली हुई थी ! पता नहीं कहाँ-कहाँ से लोग इसे देखने के लिए आते थे ! उसकी साज-सज्जा, उसमें उत्पन्न विभिन्न किस्में, उनकी उपयोगिता बागीचे को सदा खास बनाए रखती थीं ! एक तरह से उसको देश की धरोहर माना जाने लगा था !
उसकी सुरक्षा और देखभाल के लिए वहाँ काम करने वालों में से ही एक माली को बागीचे के मध्य में एक कक्ष बना कर दे दिया गया था। समय बीतता गया, पुराने लोग एक के बाद एक दिवंगत होते चले गए ! जिसे पहरेदारी के लिए कक्ष दिया गया था, वह भी परलोक सिधार गया पर उसके कुनबे के लोगों ने वह जगह हथिया कर घर और बागीचे दोनों का स्वंय को मालिक और पर्याय घोषित कर दिया ! उनकी दबंगई, अहम, अदूरदर्शिता, अज्ञान देख कर्मठ और समर्पित लोग धीरे-धीरे अलग होते चले गए ! उनकी जगह नाकाबिल, चापलूस, चारण व मतलबपरस्त जैसों का जमावड़ा हो गया ! जो बागीचे का भला चाहते थे उनकी कोई पूछ नहीं थी !
काम उन्हीं लोगों को दिया गया जो जमीन के नहीं, जी-हुजूरी में माहिर थे ! सड़क पर गिट्टी डालने वाले को जमीन पर हल चलाने का काम दे दिया गया ! मच्छर मारने की दवा छिड़कने वाले को पौधों की सुरक्षा संभलवा दी गई ! जिनको काली-पीली दाल का भी फर्क मालुम नहीं था, उन्हें बीजों के अंकुरण की जिम्मेदारी सौंप दी गई ! बड़बोले मौकापरस्तों को बाड़ की सुरक्षा हेतु तैनात कर दिया गया और तो और जिसके खुद की जमीन उसकी अज्ञानता से बंजर हो गई थी उसे ही बागीचे सौंदर्यीकरण का जिम्मा दे दिया गया
बागीचे की अब किसी को चिंता नहीं थी ! माली की वर्तमान पीढ़ी इस काम से पूरी तरह नावाकिफ व लापरवाह थी ! खुद तो क्या, वहाँ काम करने वालों पर भी कोई ध्यान नहीं दिया जाता था ! सिर्फ नाम और दाम की चाहत रह गई थी ! इसका फायदा उठा कुछ भ्रष्ट कर्मचारी लाभ कमाने और अपना घर भरने की ताक में रहने लगे ! कुछ कारिंदों ने तो बागीचे की जमीन के टुकड़े कर उन पर अपना हक जमा लिया ! ऐसे में जो होना था वही हुआ ! बिना उचित रख-रखाव के बागीचे का सौंदर्य नष्ट होने लगा ! बात फैली तो मालिक परिवार ने खुद को बचाते हुए सारी जिम्मेदारी अपने कारिंदों पर डाल दी ! बताया गया कि खाद-पानी ठीक नहीं मिल रहा पर कुछ ही दिनों में हालत सुधर जाएंगे ! बात आई गई हो गई ! कुछ दिनों बाद भी कुछ सुधार ना होता देख, फिर मीटिंग बुलाई गई, कुटिल कारिंदों ने समझा दिया कि औजार वगैरह पुराने हो गए हैं, नए आते ही सब ठीक हो जाएगा ! पर फिर भी सब जस का तस रहा ! समर्पित लोग इस दुर्दशा से परेशान सिर्फ हाथ मलते रह जाते थे ! पर किसी में हिम्मत नहीं थी कि कहे कि मुझे जिम्मेदारी दे दीजिए मैं सुधार ला दूंगा ! ऐसा इसलिए भी क्योंकि वे जानते थे कि ऐसा कहते ही चरणसेवक व चापलूस यह भ्रम फैला देंगे कि कुछ लोग जिम्मेदारी पा जमीन हड़पना चाहते हैं और कान के कच्चे उनके आका इस बात का विश्वास भी कर लेंगे !
समय बीतता गया ! बुहाई-चुहाई का मौसम फिर आ गया ! इस बार माली परिवार के एक सदस्य पूरे अहम, दिखावे और ठसक के साथ साज-संभार की जिम्मेदारी ले ली ! सबको बता दिया कि अब मैं ही मुखिया हूँ ! मेरे आते ही आमूलचूल परिवर्तन आ जाएगा ! पर इस भार को संभालने का कारण जमीन की बदहाली की चिंता से ज्यादा उसकी आड़ में अपनी वंश बेल का आधिपत्य बरकरार रखने का भी गुप्त इरादा ही था शायद ! जो भी हो, तन और धन से काम शुरू कर दिया गया ! प्रचार भी खूब किया गया कि इस बार की पैदावार अप्रतिम होगी ! जमीन उर्वरा होते ही सिर्फ स्थानीय लोगों को उसका उपयोग करने दिया जाएगा ! उसकी पैदावार लोगों को मुफ्त दी जाएगी, इत्यादि-इत्यादि ! पर काम उन्हीं लोगों को दिया गया जो जमीन के नहीं, जी-हुजूरी में माहिर थे ! सड़क पर गिट्टी डालने वाले को जमीन पर हल चलाने का काम दे दिया गया ! मच्छर मारने की दवा छिड़कने वाले को पौधों की सुरक्षा संभलवा दी गई ! जिनको काली-पीली दाल का भी फर्क मालुम नहीं था, उन्हें बीजों के अंकुरण की जिम्मेदारी सौंप दी गई ! बड़बोले मौकापरस्तों को बाड़ की सुरक्षा हेतु तैनात कर दिया गया और तो और जिसके खुद की जमीन उसकी अज्ञानता से बंजर हो गई थी उसे ही बागीचे सौंदर्यीकरण का जिम्मा दे दिया गया ! यूं ही नहीं कहा गया कि जिसका काज उसी को साजे और करे तो डंडा बाजे ! सो यहां भी डंडा ही बजता नजर आया......!
कहावत है कि कोई भी काम करते समय नियत भी नेक होनी चाहिए ! आप लोगों को धोखा दे सकते हो पर ईश्वर को नहीं ! और सबसे बड़ी बात, आप जो काम कर रहे हैं उस काम का पूरा इल्म होना चाहिए ! यहां भी यही हुआ ! जुताई-बुताई के दौरान ही एक भयंकर झंझावात आ गया ! अब इन लोगों की अज्ञानता और अदूरदर्शिता के कारण ऐसी परिस्थितियों से निबटने का कोई प्रबंध किया ही नहीं गया था ! लिहाजा बागीचे के दो-तीन पेड़ों को छोड़ बाकी सब कुछ नेस्तनाबूद हो गया ! बिना सोचे-समझे, बिना किसी जानकार के मार्गदर्शन के, बिना परिस्थितियों के आकलन के वही हुआ जो होना था ! सब मटियामेट हो कर रह गया !
पर अभी भी किसी ने माली परिवार को गलत नहीं ठहराया ! सारी असफलता का ठीकरा दूसरों के सर फुड़वा दिया गया ! खुद लुटिया डुबोने में अग्रणी रहे गपोड़शखों ने फिर नासमझ आकाओं को आश्वस्त कर दिया कि भविष्य में सब दुरुस्त हो जाएगा ! मालिकों ने भी इस पयाम के साथ बयानवीर सेवकों को गांव-कस्बों की चौपालों पर सैर-सपाटे के लिए भेज दिया ! जहां वे अपने ठाठ-बाट का, बिना किसी अफसोस या शर्मिंदगी के प्रदर्शन करते हुए अपनी नाकामियों को निर्लज्जता से दूसरों की गलतियों से ढकने की अहमकाना हरकतें करते नजर आने लगे ! ऐसी ही एक जगह किसी ने पूछ लिया, भइया जी, बगीची तो पूरी तहस-नहस हो गयी ! भैया जी बोले, क्या फर्क पड़ता है जमीन तो बाकी है ! तभी एक युवक बोला, भइया जी आपके तो ठाठाम-ठाठ हैं, आपके तो जूतों की रखवाली भी बंदूक वाला करता है ! भैया जी खटिया पर और पसरते हुए बोले, अरे बेवकूफ वह घड़ियाल के चमड़े के जूते हैं, बहुत मंहगे होते हैं, तू तो कीमत का अंदाज भी नहीं लगा सकता ! इतना कह जोरदार ठहाका लगा दिया !
किसी को भी अपनी समझदानी पर ज्यादा जोर डालने की आवश्यकता नहीं है ! शीशे की तरह साफ है कि वे कौन लोग हैं जो अभी भी चाहते हैं कि बागीचे की जिम्मेदारी माली परिवार के पास ही रहे ! घड़ियाली जूते तो सभी को चाहिएं......... और अभी तो बागीचा ही उजड़ा है, जमीन तो बची हुई है ना !
4 टिप्पणियां:
नारे बचे तो हैं और झंडे भी। लाजवाब।
हार्दिक आभार, सुशील जी🙏
बहुत ही सटीक व्यंग,गगन भाई। बराबर कहा आपने की अभी तो जमीन बची है। चाहे तो अभी भी बगीचा हरा भरा हो सकता है।
ज्योति जी
उल्टा भी हो सकता है ! दीमक की तरह चिमटे लोग जमीन को भी बेच खाएंगे
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