शुक्रवार, 22 अप्रैल 2022

लम्बी उम्र और हुस्न का हुक्का

भगवान ने आज तक ऐसी कोई महिला नहीं बनाई जो अपनी प्रशंसा सुन अभिभूत ना हो जाए ! आपको बस इसी कमजोरी कहें या खूबी का लाभ उठाना है ! इसके लिए आपको अपने दिल पर पत्थर रख अपनी पत्नी की रोज प्रशंसा करनी है ! यदि, ''चौदहवीं का चाँद हो या आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो,'' यह गीत गा सकें तब तो आपकी खुशी घुटने मोड़ कर आपके घर बैठी रहेगी ! फिर ना रोटी जलेगी, ना दाल में नमक ज्यादा होगा, ना चाय फीकी रहेगी, ना नाश्ता बेस्वाद होगा ! घर का माहौल उत्सव भरा, बच्चे हंसते-खेलते-खिलखिलाते रहेंगे ! गमलों में फूल लहलहाते रहेंगे ! घर के दर ओ दीवार पर खुशी सदा नए पेंट की तरह चिपकी रहेगी......!

#हिन्दी_ब्लागिंग 
कुछ दिनों पहले मुझे एक समारोह शिरकत करने का मौका मिला ! मैं जब वहाँ पहुंचा तो मंच पर एक दिव्य पुरुष की वाणी से उम्रदराज होने का नुस्खा अवतरित हो रहा था ! वक्ता, महानुभाव कुछ ज्यादा ही दिव्य होने की कोशिश में थे ! वे बाजार में उपलब्ध सारे उम्र बढ़ाऊ टोटकों का घालमेल कर बनाए गए नुस्खे पर अपने नाम का ठप्पा लगा, सामने लंबी उम्र की आकांक्षा में बैठे मूढ़ श्रोताओं के कानों में उड़ेले जा रहे थे ! लोग ऐसे भाव विभोर हो सुन रहे थे जैसे हॉल से निकलते ही उनकी उम्र तीस साल बढ़ जाएगी ! भाषण तो कुछ देर बाद खत्म हो गया पर उपकृत लोग अपनी तालियां रोके ना रोक पा रहे थे ! उनके बाद ही मुझे उवाचना था !   

इतने हो-हल्ले के बाद मुझे लग रहा था कि अब मुझे कौन सुनेगा या अब कोई सुनना चाहेगा भी या नहीं ! पर वह लेखक, कवि या नेता ही क्या जो मंच पर खड़े हो माइक संभालने का लोभ संवरण कर जाए ! वैसे भी उपस्थितों की कमजोर नस मेरे हाथ लग ही गई थी ! तो अपन भी जा खडे हुए मंच पर ! मेरा सबसे पहला उद्देश्य था पूर्ववर्ती वक्ता के प्रभाव से श्रोताओं को मुक्त कर अपने वाक्जाल में उलझाना !

मैंने बिना किसी लाग-लपेट-भूमिका के अपना प्रवचन शुरू कर श्रोताओं से कहा कि मेरे मंच पर आने के पहले जरा सी भी करतल ध्वनि नहीं हुई, पर मेरा चैलेंज है कि मेरे जाते समय आपकी तालियां रुकेंगी नहीं ! इतना सुनते ही सारा जमघट शांत हो मेरी ओर मुखातिब हो गया ! मेरी आधी जीत हो चुकी थी ! बस स्टेज लूटना बाकी था !

मैंने कहा कि मैं भी आज आपको लम्बी उम्र जीने का ही राज बताने जा रहा हूँ, पर इसमें कोई हींग या फिटकरी नहीं लगती, बस आपकी कार्य कुशलता और क्षमता की जरुरत पड़ेगी ! इतना सुनते ही लोग उत्सुक हो अपनी सीटों पर कुछ आगे खिसक आए ! माहौल  बन चुका था ! मैंने कहा मेरे नुस्खे का राज है खुश रहना ! खुश रहिए और लम्बा जीवन पाइए ! पर यहां एक पेंच है ! शादी-शुदा इंसान के लिए खुश रह पाना इतना आसान नहीं होता ! इसके लिए खुद के बजाए आपको अपनी श्रीमती जी को खुश रखना पडेगा ! जो कि हर पुरुष के लिए टेढ़ी खीर है ! पर यहीं मेरा उपाय काम आता है !  

ऐसी मान्यता है कि दुनिया में एक चेहरे जैसे कम से कम तीन लोग होते हैं ! पर यह निर्विवाद सत्य है कि करोड़ों बीवियों में कोई भी एक सी नहीं होती ! सबका अपना अलग ही स्वभाव होता है ! पर एक बात ऐसी भी है जो तमाम बीवियों में बिना अपवाद, निश्चित रूप से जरूर पाई जाती है और वह है प्रशंसा ! भगवान ने आज तक ऐसी कोई महिला नहीं बनाई जो अपनी प्रशंसा सुन अभिभूत ना हो जाए ! आपको बस इसी कमजोरी कहें या खूबी का लाभ उठाना है ! इसके लिए आपको अपने दिल पर पत्थर रख अपनी पत्नी की रोज प्रशंसा करनी है ! यदि, ''चौदहवीं का चाँद हो या आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो,'' यह गीत गा सकें तब तो आपकी खुशी घुटने मोड़ कर आपके घर बैठी रहेगी ! फिर ना रोटी जलेगी, ना दाल में नमक ज्यादा होगा, ना चाय फीकी रहेगी, ना नाश्ता बेस्वाद होगा ! घर का माहौल उत्सव भरा, बच्चे हंसते-खेलते-खिलखिलाते रहेंगे ! गमलों में फूल लहलहाते रहेंगे ! घर की दीवारें सदा आपके स्वागत को आतुर मिलेंगी ! घर के दर ओ दीवार पर खुशी सदा नए पेंट की तरह चिपकी रहेगी ! 

पर आपको तो पता रहेगा कि चाँद चौदहवीं का नहीं दूज का है ! मन कचोटेगा रोज-रोज झूठ बोलने पर ! ग्लानि से सर झुका रहेगा ! अपनी ही नजरों में आप मुजरिम बन जाओगे ! पर साथ ही खुश भी रहना है, लम्बी उम्र भी पानी है और नकारात्मकता से भी छुटकारा पाना है ! मुख्य बात भी यही है ! तो इसका भी उपाय लेकर ही मैं आपके सामने आया हूँ ! इसके लिए आपको रोज सोने के पहले, अकेले में एक मंत्र पढ़ना है जो आपको आपकी सारी दुश्चिंताओं से मुक्ति भी दिला देगा और आप ''वीर भोग्या वसुंधरा'' बन जाओगे ! अमोघ मंत्र के तीन बार का जाप आपको हर दुविधा से छुटकारा दिला सुबह फिर चापलूसी के लिए तैयार करवा देगा !  

तुम्हारे हुस्न का हुक्का तो बुझ चुका है जानम,                          
वह तो हम ही हैं, जो गुड़गुड़ाए जाते हैं ! 

जाहिर है, मैं उस दिन अपना चैलेंज जीत चुका था ! तालियों की गड़गड़ाती हुई तड़तड़ाहट हॉल के बाहर तक गूँज रही थी ! मैं स्वर्गीय के.पी. सक्सेना जी को मन ही मन नमन कर, बाग-बाग होते दिल को संभालते, सर झुकाए अपने स्थान को ग्रहण करने बढ़ा जा रहा था !

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2022

राम वन गए, राम बन गए

वनगमन के बाद ही श्री राम की धीर, वीर, स्थिर व गंभीर छवि उभर कर आई ! इसमें जिन गुणों की प्रमुख भूमिका रही, वे थे, धैर्य और सहनशीलता ! माता-पिता के वचनों की रक्षा हेतु पल भर में राजमहल का सुख और तमाम वैभव त्यागने वाले वाले युवराज राम वन से लौटने पर ही मर्यादा पुरषोत्तम राम कहलाए ! आज वे सिर्फ किसी प्रदेश, देश के नहीं बल्कि पूरी दुनिया के आदर्श और गौरव हैं..............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

राम भगवान विष्णु का अवतार थे ! विष्णु तो गुणों का भंडार हैं ! पर उनका यह अवतार मर्यादित था ! गुणों को खुद सिद्ध होते हुए उभरना था ! हालांकि वनवास की घटना बहुत दुःखदाई, कष्टदाई और संतापदाई है ! पर यदि राम वनगमन ना होता तो क्या राम मर्यादा पुरषोत्तम बन पाते ! क्या सारे गुण उभर कर जगत के सामने आ पाते ! क्या वे सिर्फ युवराज राम या राजा राम बन कर ही ना रह जाते ! पर वे तो नारायणावतार थे और अवतार सिर्फ राजा बनने के लिए ही नहीं लिया गया था ! सब कुछ पहले से सुनिश्चित था ! सारी पटकथा सारे तथ्यों को, परिणामों को, परिस्थितों को, अंजामों को देख-भाल कर, बहुत निपुणता के साथ, सारे नियम-कानूनों को ध्यान में रख, न्याय-अन्याय को संतुलित करने और लिए-दिए गए वचनों को पूरा करने हेतु रची गई थी ! जिसमें राम वनगमन प्रमुख व अति आवश्यक अध्याय था ! 

राम जैसा धीरोदात्त व्यक्तित्व फिर ना कभी हुआ और शायद ना कभी हो भी पाएगा ! आलेखानुसार उनका वनगमन तो होना ही था ! उसी के परिणाम स्वरूप ही तो देश-दुनिया-समाज को मातृ-पितृ भक्ति, आदर्श भाई, भाई-बंधुओं-आत्मीयों पर स्नेह, त्याग, धैर्य, प्रेम, समर्पण, वियोग, स्थिर स्वभाव, सहनशीलता, दयालुता, श्रेष्ठ चरित्र, प्रबंधन कुशलता, सत्य का साथ, न्याय, उच्च नेतृत्व क्षमता, शरणागत रक्षा जैसे और भी अनेक, अनगिनत गुणों का अप्रतिम व सर्वोत्तम उदाहरण मिल पाया  ! 

वनगमन के दौरान ही उन्होंने हर जाति, हर वर्ग के व्यक्तियों के साथ मित्रता की ! हर रिश्ते को दिल से पूरी आत्मीयता और ईमानदारी से निभाया ! केवट हो या सुग्रीव, निषादराज हो या विभीषण सभी मित्रों के लिए उन्होंने स्वयं कई बार संकट झेल कर एक आदर्श संसार के सामने रखा ! इन सब के अलावा वर्षों पहले कहे गए कथन, वचन, वरदान, श्राप, सबका परिमार्जन भी किया जाना था ! कइयों को न्याय दिलवाना था ! कइयों को दंडित करना था ! देश-समाज में शान्ति स्थापित करनी थी ! इतना सब कुछ बिना वनगमन किए राजमहल में बैठ कर करना, अत्यधिक समय व रुकावटों का सबब बन सकता था !

वनगमन के बाद ही श्री राम की धीर, वीर, स्थिर व गंभीर छवि उभर कर आई ! इसमें जिन गुणों की प्रमुख भूमिका रही, वे थे, धैर्य और सहनशीलता ! माता-पिता के वचनों की रक्षा हेतु पल भर में राजमहल का सुख और तमाम वैभव त्यागने वाले वाले युवराज राम वन से लौटने पर ही मर्यादा पुरषोत्तम राम कहलाए ! आज वे सिर्फ किसी प्रदेश, देश के नहीं बल्कि पूरी दुनिया के आदर्श और गौरव हैं ! 

जय श्री राम !

बुधवार, 13 अप्रैल 2022

कर्म पर भारी पड़ती, किस्मत

समर ने इस बार लहसुन की अच्छी फसल ली थी सो वही ले कर वह विदेश रवाना हो गया। गंतव्य पर पहुंच कर उसने भी अपना सामान वहां के लोगों को दिखाया। भगवान की कृपा, लहसुन का स्वाद तो उन लोगों को इतना भाया कि वे सब प्याज को भी भूल गए ! इतने दिव्य स्वाद से परिचित करवाने के कारण वे सब अपने को समर का ऋणी मानने लग गए। पर उन लोगों के सामने एक धर्मसंकट आ खड़ा हुआ कि इतनी अच्छी चीज का मोल वे लोग किस कीमती वस्तु से चुकाएं....! उनके लिये सोने का कोई मोल तो था ही नहीं  ! तो क्या करें ? तभी वहां के मुखिया ने सब को सुझाया कि सोने से कीमती चीज तो अभी उनके पास कुछ दिनों पहले ही आई है...........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

कहानी कुछ पुरानी जरूर है पर है बड़ी दिलचस्प। जो यह बताती है कि कर्म के साथ किस्मत का सांमजस्य होना कितना जरुरी  होता है ! बात उन दिनों की है जब आधुनिक संचार व्यवस्था का नाम भी लोगों ने नहीं सुना था ! लोग आने-जाने वालों, व्यापारियों, घुम्मकड़ों, सैलानियों से ही देश विदेश की खबरें, जानकारियां प्राप्त करते रहते थे। ऐसे ही अपने आस-पास के व्यापारियों की माली हालत अचानक सुधरते देख छोटी-मोटी खेती-बाड़ी करने वाले जमुना दास ने अपने पड़ोसी की मिन्नत चिरौरी कर उसकी खुशहाली का राज जान ही लिया। पड़ोसी ने बताया कि दूर देश के राज में बहुत खुशहाली है। वहां इतना सोना है कि लोग रोज जरूरत की मामूली से मामूली आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भी सोने का उपयोग करते हैं। वहां हर चीज सोने की है। सोना मिट्टी के मोल मिलता है !

ऐसी बातें सुन जमुना दास भी उस देश की जानकारी ले, वहां जाने को उद्यत हो गया। पर उसके पास जमा-पूंजी तो थी नहीं। फिर भी इस बार उसकी प्याज की फसल ठीक-ठाक हुई थी ! भगवान् का नाम ले, उसी की बोरियां जहाज पर लदवा, वह अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गया। उसकी तकदीर का चमत्कार कि वहां के लोगों को मसाले वगैरह की जानकारी बिलकुल नहीं थी ! प्याज को चखना तो दूर उन्होंने उसका नाम तक भी नहीं सुना था। जब जमुना दास ने उसका उपयोग बताया तो उसका स्वाद चख कर वे लोग खूशी से पागल हो गए ! पलक झपकते, मिनटों में ही जमुना दास का सारा का सारा प्याज खत्म हो गया। बदले में वहाँ के लोगों ने उसकी बोरियों को सोने से भर दिया। जमुना दास वापस अपने घर लौट आया। उसके तो वारे-न्यारे हो चुके थे। अब वह जमुना दास नहीं सेठ जमुना दास कहलाने लग गया था।
यहाँ देखें तो जमुना दास और समर ने अपनी तरफ से पुरजोर कर्म किए किसी भी तरह की कोताही नहीं बरती ! विदेशियों ने भी अपनी और से बिना भेदभाव के भरपूर सहायता की, पर किस्मत
उसकी जिंदगी और हालात बदलते देख उसके पड़ोसी समर से भी नहीं रहा गया। एक दिन वह भी हाथ जोड़े जमुना दास के पास आया और एक ही यात्रा में मालामाल होने का राज पूछने लगा। उन दिनों लोगों के दिलों में आज की तरह द्वेष-भाव ने जगह नहीं बनाई थी। पड़ोसी, रिश्तेदारों की बढोत्तरी से, किसी की भलाई कर लोग खुश ही हुआ करते थे। जमुना दास ने भी समर को सारी बातें तथा हिदायतें विस्तार से बता-समझा दीं और उसे भी विदेश जाने को  प्रोत्साहित किया। पर यहां भी वही बात थी, समर की जमा-पूँजी भी उसकी खेती ही थी। संयोग से उसने इस बार लहसुन की अच्छी फसल ली थी, सो उसी को ले कर वह भी स्वर्ण देश को रवाना हो गया।

गंतव्य स्थल पहुंच कर उसने भी अपना सामान वहां के लोगों को दिखाया। भगवान की कृपा, लहसुन का स्वाद तो वहाँ के लोगों को इतना भाया कि वे सब प्याज को भी भूल गए ! इतने दिव्य स्वाद से परिचित करवाने के कारण वे सब अपने को समर का ऋणी मानने लग गए ! उसका खूब मान-सम्मान हुआ ! पर उन लोगों के सामने एक धर्मसंकट आ खड़ा हुआ कि इतनी बेहतरीन, लाजवाब वस्तु का मोल वे किस वस्तु से चुकाएं.... ! उनके लिए सोने का कोई मोल नहीं था ! इतनी दिव्य और अच्छी चीज का मोल भी वे लोग किसी बेशकीमती चीज से चुकाना चाहते थे। वे लोग इसी पेशोपेश में थे कि करें तो क्या करें, जिससे इस व्यापारी के एहसान का बदला उचित रूप से चुकाया जा सके ! 

काफी सोच-विचार के बाद वहां के मुखिया को एक उपाय सूझा !  उसने सबको सुझाया कि हमारे पास सोने से भी कीमती चीज तो अभी कुछ दिनों पहले ही आई है। उसी को इस व्यापारी को दे देते हैं। क्योंकि इतनी स्वादिष्ट चीज के बदले किसी अनमोल वस्तु को दे कर ही इस व्यापारी का एहसान चुकाया जा सकता है। सभी को यह सलाह बहुत पसंद आई और उन्होंने समर के थैलों को प्याज से भर अपने आप को ऋण मुक्त कर लिया।  

अब यहाँ देखें तो जमुना दास और समर ने अपनी तरफ से पुरजोर कर्म किए किसी भी तरह की कोताही नहीं बरती ! विदेशियों ने भी अपनी और से बिना भेदभाव के भरपूर सहायता की, पर किस्मत, किस पर, किस तरह मुस्कुराई............!!  
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बेचारा समर !!

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

लाखों की फीस लगती है, चोरी की कला सीखने के लिए

यहां इंजीनियरिंग या एम.बी.ए. की तरह भारी-भरकम फीस लेकर बच्चों को चौर्य कला में पारंगत किया जाता है ! ये बच्चे वहां अपहरण या फुसला कर नहीं लाए जाते बल्कि बच्चों के माँ-बाप अपने बच्चों को खुद वहाँ दाखिला दिलवाते हैं, अच्छी-खासी, भारी-भरकम रकम अदा कर के ! यहां छोटी उम्र से ही बच्चों को अपराधों की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी जाती है। इनके भी बाकायदा कोर्स होते हैं ! शुरूआती तरकीबों के लिए दो से तीन लाख और पूरे कोर्स के लिए पांच लाख रुपये तक देने होते हैं ...........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

भारतीय गौरवशाली संस्कृति में किसी समय चोरी करना भी एक कला मानी जाती थी। सेंधबाज ऐसी-ऐसी कलाकारी से अपने काम को अंजाम देते थे कि लोग दांतो तले उंगलियां दबा लेते थे। उनका अंदाज, उनके काम करने का तरीका, उनको एक विशेष पहचान प्रदान करवा देता था ! पहुंचे हुए चोरों को अपने ऊपर इतना विश्वास होता था कि वे  भी चोरी करने के बाद अपनी कोई न कोई निशानी छोड़ जाते थे, एक चुनौत्ती की तरह कि लो खोज लो मुझे यदि हो सके तो ! एक तरह से ये उनके "ट्रेड मार्क" भी हुआ करते थे। जाहिर है इतनी निपुणता पाने के लिए कहीं न कहीं से शुरूआती प्रशिक्षण तो लेना ही पड़ता होगा, शुरू में कोई तो उन्हें प्रशिक्षित करता ही होगा ! जिसकी पूर्णता फिर उन्हें अपने अनुभव से प्राप्त होती होगी ! यह सब बीते दिनों की बातें हैं ! वैसे भी चोरी तो चोरी ही होती है ! इसीलिए इसे दुष्कर्मों में गिना जाने लगा और यह दंडात्मक कार्यों में शुमार हो गया !   

परंतु राज व समाज द्वारा लाख जुर्माना, सजा, हिकारत, बदनामी, घृणा मिलने के बावजूद भी इसका खात्मा नहीं किया जा सका ! यह आदत इंसान में बरकरार ही रही। इसीलिए लगता है कि प्राचीन समय में इसे मिलने वाला प्रशिक्षण व संरक्षण दबे-ढके रूप से विद्यमान रहता चला आया है ! इसका प्रमाण तब मिला जब मध्य प्रदेश के कड़िया, हुलखेड़ी और गुलखेड़ी जैसे गांवों का नाम सामने आया ! ये वे गांव हैं जहां इंजीनियरिंग या एम.बी.ए. की तरह भारी भरकम फीस ले कर बच्चों को चौर्य कला में पारंगत किया जाता है ! ये बच्चे वहां अपहरण या फुसला कर नहीं लाए जाते बल्कि बच्चों के माँ-बाप अपने बच्चों को वहाँ दाखिला दिलवाते हैं, अच्छी-खासी, भारी-भरकम रकम अदा कर के ! यहां छोटी उम्र से ही बच्चों को अपराधों की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी जाती है। इनके भी बाकायदा कोर्स होते हैं ! शुरूआती तरकीबों के लिए दो से तीन लाख और पूरे कोर्स के लिए पांच लाख रुपये तक देने होते हैं ! इसमें मुख्य पाठ्यक्रम शादी-ब्याहों  से कीमती सामान पार करने में प्रशिक्षित करता है ! जिसमें आठ-दस साल के बच्चों को प्रमुखता दी जाती है, जिससे यदि पुलिस पकड़ भी ले नाबालीगता का सहारा ले उन्हें छुड़वाने में आसानी रहती है ! काम को अंजाम देने के लिए दो-तीन लोग बड़ा सा उपहार का पैकेट और चार-पांच बच्चों को एक बड़ी सी गाडी में ले कर किसी शादी या भव्य समारोह में पहुँचते हैं ! वहाँ वे उपस्थित लोगों से घुल-मिल जाते हैं और बच्चे आपस में खेलने के बहाने उसी जगह का चक्कर लगाते रहते हैं जहां कीमती सामान रखा होता है और मौका पाते ही सामान को गाड़ी में पहुंचा दिया जाता है ! पकड़े जाने पर उन्हें रोने-धोने, तेजी से भागने, भीड़ की पिटाई से बचने आदि में भी ट्रेंड किया जाता है ! इसके अलावा इन गिरोहों की अपने वकीलों की टीम भी होती है !

इन गांवों में अधिकाँश परिवार जरायम पेशे से जुड़े रह कर देश भर में सक्रिय हैं ! इन गांवों में प्रवेश करना भी आफत को दावत देने के समान है ! बच्चों के अलावा इनके गिरोह में महिलाओं का भी जमावड़ा रहता है जिन्हें आसानी से जमानत मिल जाती है ! वही बच्चे जो पैसा दे कर ''हुनर'' सीखते हैं, जब निपुण हो जाते हैं तो गिरोह के सरगना उनके माँ-बाप को उनके काम के एवज में लाखों का भुगतान करते हैं ! जैसे इंजीनियरिंग या एम बी ए की डिग्री हासिल करने पर प्लेसमेंट होता है !  

इन सब बातों का खुलासा तब हुआ जब हाल ही में राजस्थान में हुई 10 लाख की चोरी के बाद मामले की जांच-पड़ताल की गई ! जहां एक पूर्व सैनिक के दस लाख रुपए चुरा लिए गए ! लेकिन सीसीटीवी फुटेज से मिले सुराग के आधार पर आरोपियों की पहचान हो गई। इसके बाद इनकी गिरफ्तारी भी हो गई। विचित्र है मानव उसकी प्रकृति और हमारा देश................!! 

आभार - श्री एन. रघुरामन जी 

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"मोबिकेट" यानी मोबाइल शिष्टाचार

आज मोबाइल शिष्टाचार पर बात करना  करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो ! अधिकाँश लोग इन सब ...