अक्ल के अंधे और गाँठ के पूरे, अपने को देश वासियों से अलग और ऊपर मानने वाले कुछ फिल्मी लोग भी अपनी समझदानी की डिबिया खोल ज्ञान बघारने लगे ! तुलना करने वालों को मुंह खोलते शर्म भी नहीं आई ! कहां पगड़ी और कहां हिजाब ! यह पगड़ी यानी दस्तार सिर्फ कपडे का टुकड़ा नहीं है ! सिक्ख धर्म का अनिवार्य हिस्सा है ! यह उस बहादुर कौम के शरीर का ही एक अंग है ! यह सबसे बड़ी पहचान है, सिक्खों की, जिसे वर्षों तक अत्याचारों, अन्यायों, शोषणों व ज्यादितियों के विरुद्ध असंख्य कुर्बानियों, शहादतों व त्यागों के बाद हासिल किया गया है ! गुरु आज्ञा से धारण किया जाने वाला दस्तार सिखों की मान-मर्यादा-सम्मान और गौरव का प्रतीक है.............. !
#हिन्दी_ब्लागिंग
देश के टुकड़े हो गए ! अंग्रेज स्थूल रूप से चले गए, पर जिन्होंने राज हथियाया, उन पर उनका प्रतीयमान सदा हावी रहा ! ''फूट डालो और राज करो'' को गुरु मंत्र की तरह अंगीकार कर लिया गया ! राज करने वालों की सिर्फ चमड़ी का रंग बदला, कार्य प्रणाली वही रही ! आजादी पाने की ख़ुशी में सब कुछ भूले अवाम को इस कदर अपने आभा मंडल से सम्मोहित कर दिया गया कि उसे "हर तरफ तू ही तू" नजर आने लगा ! धीरे-धीरे धर्म-जाति-भाषा रूपी अफीम चटाई जाने लगी ! लिहाजा वो अवाम जो कभी देश के लिए एक आवाज पर एकजुट हो कंधे से कंधा मिला खड़ा हो जाता था, अब बड़े से बड़े घटनाक्रम पर भी आँख मीचे अपने खोल में दुबका रहने लगा है ! सत्ता-पिपासु जो चाहते थे, वही हुआ !
अब चुनाव लियाकत की बजाय भीड़ की बदौलत जीते जाने लगे हैं ! उस भीड़ को बरगलाने के लिए तरह-तरह की शोशेबाजियों का सहारा लिया जाने लगा है ! कोई भी चुनाव आते ही तरह-तरह जुमले उछलने लगते हैं ! साधारण सी स्थानीय बात को कुछ लोगों की अज्ञानता का लाभ उठा, उनकी भावनाओं को भड़का, पैसे के बल पर राष्ट्रीय मुद्दा बना देश में अराजकता फैलाने का कुत्सित प्रयास शुरू हो जाता है ! हाल के पांच राज्यों के चुनाव में यह खेल फिर नजर आया है ! इस बार हिजाब का सहारा ले लोगों को भड़काने का कुचक्र रचा गया है ! मूर्खता की अति तो तब हो गई, जब इसकी तुलना सिक्खों की पगड़ी से कर दी गई ! जबकि दोनों कि कोई तुलना हो ही नहीं सकती ! क्योंकि एक है जो देश-दुनिया में शान से अपनी पहचान उजागर करवाती है तो दूसरी ओर वह है जो पहचान को छुपाने का काम करता है !
तुलना करने वाली इस जमात में तथाकथित बुद्धिजीवी, सदा से देश के खिलाफ रहे साम्यवादी, मौकापरस्त राजनीतिज्ञ, पैसे के गुलाम न्याय-भक्षक या देश विरोधी ताकतें तो शामिल थी हीं, साथ ही अक्ल के अंधे और गाँठ के पूरे, अपने को देश वासियों से अलग और ऊपर मानने वाले कुछ फिल्मी लोग भी अपनी समझदानी की डिबिया खोल ज्ञान बघारने लगे ! तुलना करने वालों को मुंह खोलते शर्म भी नहीं आई ! कहां पगड़ी और कहां हिजाब ! यह पगड़ी यानी दस्तार सिर्फ कपडे का टुकड़ा नहीं है ! सिक्ख धर्म का अनिवार्य हिस्सा है ! यह सबसे बड़ी पहचान है सिक्खों की, जिसे वर्षों तक अत्याचारों, अन्यायों, शोषणों व ज्यादितियों के खिलाफ असंख्य कुर्बानियों, शहादतों व त्यागों के बाद हासिल किया गया है ! यह उस बहादुर कौम के शरीर का ही एक अंग है ! गुरु आज्ञा से धारण किया जाने वाला दस्तार सिखों की मान-मर्यादा-सम्मान और गौरव का प्रतीक है !
दूसरी तरफ हिजाब महिलाओं द्वारा लोगों से बात करते समय ओट के लिए काम आने वाला एक पर्दा है ! ठीक है, कई तरह के लोगों से महिलाओं का वास्ता पड़ता है, इससे अवांछित लोगों से आड़ बनी रहती है ! इससे आज तक किसी को कोई परेशानी भी नहीं थी ! पर अब इसी की आड़ में असमाजिक तत्वों द्वारा अपनी पहचान छुपा देश-समाज में अराजकता फैलाने की कोशिश हो रही है ! इसीलिए यह अब विवाद का विषय बन गया है ! वैसे इसे किसी के निजी जीवन से हटाने की किसी की मंशा नहीं है पर विद्यालय-महाविद्यालय जैसी जगहों में जहां अनुशासन प्राथमिकता है वहां के लिए जिद करना बेमानी है ! यदि इसके पक्ष में खुद के परिधान पहनने की मौलिक अधिकार की दुहाई दी जा रही है, तो "एमयू" के द्वारा जारी ड्रेस-कोड को क्या कहा जाएगा, जिसमें वहां की छात्राओं को सिर्फ सलवार-कमीज और दुपट्टा ही पहनना अनिवार्य है ! इसे क्या कहेंगे ! वहां क्यों नहीं विरोध होता ? दोहरी मानसिकता तो कबूल नहीं की जा सकती !
जिनका है वे तो हिजाब के पक्ष में खड़े होंगे ही, शुरू से ही उन्हें इसकी आदत है ! पर सिर्फ अपने मतलब के लिए इस विवाद को हवा दे, उनका साथ देने वाले विघ्नसंतोषी, मौकापरस्त ! क्या उन्हें अपना इतिहास नहीं मालुम ? क्या उन्हें सिक्ख धर्म की स्थापना क्यों और कैसे हुई, इसका ज्ञान नहीं ? क्या भूल गए ये लोग गुरुओं की परपरा को, उनकी वाणी को, उनके त्याग को, उनकी कुर्बानियों को ? क्या इन कुटिलों को पगड़ी की महत्ता का एहसास नहीं है ? क्या उन्हें नहीं मालुम की एक सिक्ख जान दे सकता है पर अपनी पगड़ी अपने दस्तार पर आंच नहीं आने दे सकता ! एक बार मुंह खोलते समय तनिक भी हिचकिचाहट नहीं हुई इन लोगों को तुलना करते हुए कि मैं क्या बोलने जा रहा हूँ ! क्रोध नहीं, घिन्न आती है ऐसे लोगों पर !
सही बात तो यह है कि अब आम देशवासी भी सब देखने समझने लग गया है ! उसे पहले की तरह भरमा या बेवकूफ बना कर नहीं रखा जा सकता ! इस खेल को भी सब समझ रहे हैं कि कौन-कैसे अपनी ओछी मानसिकता और लिप्सा के कारण क्यों और क्या कर रहा है ! किसको देश-समाज-सर्वहारा की चिंता है और किसे सिर्फ और सिर्फ अपनी ! आशा है हाशिए पर सरका दिए जाने के बावजूद अपने गुमान के नशे में खोए लोग जल्द असलियत की धरती पर उतर उसकी कठोरता का आभास पा सकेंगे !